आजाद भारत में जन्मीं पहली राष्ट्रपति होंगी द्रौपदी मुर्मू, पार्षद से प्रथम नागरिक तक का ऐसा रहा है सफर
भारत की 15वीं निर्वाचित राष्ट्रपति वाली द्रौपदी मुर्मू (64) स्वतंत्रता के बाद पैदा होने वाली भारत की पहली राष्ट्रपति भी होंगी. वह 25 जुलाई को शपथ लेंगी. चमक-दमक और प्रचार से दूर रहने वाली मुर्मू ब्रह्मकुमारियों की ध्यान तकनीकों की गहन अभ्यासी हैं.
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ओड़िशा में पार्षद के रूप में अपना सार्वजनिक जीवन शुरू करने वाली एक आदिवासी नेता अब देश की निर्वाचित राष्ट्रपति हैं. वह राष्ट्रपति बनने वाली भारत की पहली आदिवासी महिला हैं, जबकि इस पद पर पहुंचने वाली दूसरी महिला राष्ट्रपति हैं. झारखंड की पूर्व राज्यपाल और राष्ट्रपति पद के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू ने विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा पर आसान जीत हासिल की.
चमक-दमक और प्रचार से दूर रहती हैं द्रौपदी मुर्मू
भारत की 15वीं निर्वाचित राष्ट्रपति वाली द्रौपदी मुर्मू (64) स्वतंत्रता के बाद पैदा होने वाली भारत की पहली राष्ट्रपति भी होंगी. वह 25 जुलाई को शपथ लेंगी. चमक-दमक और प्रचार से दूर रहने वाली मुर्मू ब्रह्मकुमारियों की ध्यान तकनीकों की गहन अभ्यासी हैं. उन्होंने यह गहन अध्यात्म और चिंतन का दामन उस वक्त थामा था, जब उन्होंने 2009 से लेकर 2015 तक की छह वर्षों की अवधि में अपने पति, दो बेटों, मां और भाई को खो दिया था.
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द्रौपदी मुर्मू ने कहा था- मैं बर्बाद हो गयी थी, अवसाद से पीड़ित थी
भाजपा नेता और कालाहांडी से लोकसभा सदस्य बसंत कुमार पांडा ने कहा, ‘वह बहुत आध्यात्मिक और मृदुभाषी व्यक्ति हैं.’ फरवरी 2016 में दूरदर्शन को दिये एक साक्षात्कार में, द्रौपदी मुर्मू ने अपने जीवन से जुड़े संघर्ष के बारे में बताते हुए कहा था कि उन्होंने 2009 में अपने बेटे को खो दिया था. मुर्मू ने कहा था, ‘मैं बर्बाद हो गयी थी और अवसाद से पीड़ित थी. अपने बेटे की मौत के बाद मेरी रातों की नींद उड़ गयी. जब मैं ब्रह्म कुमारियों से मिलने गयी, तो मुझे अहसास हुआ कि मुझे आगे बढ़ना है और अपने दो बेटों और बेटी के लिए जीना है.’
इन दलों ने दिया द्रौपदी मुर्मू को समर्थन
राष्ट्रपति पद के लिए 21 जून को एनडीए उम्मीदवार के रूप में नामित होने के बाद से, उन्होंने कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया है. उनकी जीत निश्चित लग रही थी और बीजू जनता दल (बीजद), शिवसेना, झारखंड मुक्ति मोर्चा, वाईएसआर कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी (बसपा), तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) जैसे विपक्षी दलों के समर्थन से उनका पक्ष मजबूत हुआ था. मुर्मू ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए पूरे देश में प्रचार किया और राज्य की राजधानियों में उनका गर्मजोशी से स्वागत किया गया था.
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रायरंगपुर से भाजपा के साथ शुरू की राजनीति
रायरंगपुर से ही उन्होंने भाजपा के साथ राजनीति के सोपान पर पहला पहला कदम रखा था. वह 1997 में रायरंगपुर अधिसूचित क्षेत्र परिषद में पार्षद बनायी गयीं और 2000 से 2004 तक ओड़िशा की बीजद-भाजपा गठबंधन सरकार में मंत्री भी रहीं. उन्हें 2015 में झारखंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया और वह 2021 तक इस पद पर रहीं. भाजपा की ओड़िशा इकाई के पूर्व अध्यक्ष मनमोहन सामल ने कहा, ‘वह (मुर्मू) बहुत तकलीफों और संघर्षों से गुजरी हैं, लेकिन (वह) विपरीत परिस्थितियों से नहीं घबराती हैं.’
उत्कृष्ट वक्ता हैं द्रौपदी मुर्मू
सामल ने कहा कि संथाल परिवार में जन्मी, वह संथाली और ओड़िया भाषाओं में एक उत्कृष्ट वक्ता हैं. उन्होंने कहा कि उन्होंने क्षेत्र में सड़कों और बंदरगाहों जैसे बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए बड़े पैमाने पर काम किया है. ओड़िशा में अपने पैर जमाने का प्रयास कर रही भाजपा का ध्यान आदिवासी बहुल मयूरभंज पर हमेशा से रहा है. बीजद ने 2009 में भाजपा से नाता तोड़ लिया था और तब से इसने ओड़िशा पर अपनी पकड़ मजबूत कर रखी है.
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झारखंड के राज्यपाल का कार्यकाल किया पूरा
द्रौपदी मुर्मू ने 2014 का विधानसभा चुनाव रायरंगपुर से लड़ा था, लेकिन वह बीजद उम्मीदवार से हार गयीं थीं. झारखंड के राज्यपाल के रूप में अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद, मुर्मू ने अपना समय रायरंगपुर में ध्यान और सामाजिक कार्यों में लगाया. मुर्मू ने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में अपने चयन के बाद कहा था, ‘मैं हैरान और खुश भी हूं. मयूरभंज जिले की एक आदिवासी महिला के रूप में, मैंने शीर्ष पद के लिए उम्मीदवार बनने के बारे में नहीं सोचा था.’
भुवनेश्वर के रमादेवी महिला कॉलेज से की थी पढ़ाई
देश के सबसे दूरस्थ और अविकसित जिलों में से एक मयूरभंज की रहने वाली मुर्मू ने भुवनेश्वर के रमादेवी महिला कॉलेज से कला में स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी और ओड़िशा सरकार में सिंचाई तथा बिजली विभाग में एक कनिष्ठ सहायक के रूप में नौकरी भी की. उन्होंने रायरंगपुर स्थित ‘श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन सेंटर’ में मानद सहायक शिक्षक के रूप में भी काम किया.
2007 में चुनी गयीं सर्वश्रेष्ठ विधायक
मुर्मू को 2007 में ओड़िशा विधानसभा द्वारा वर्ष के सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. उनके पास ओड़िशा सरकार में परिवहन, वाणिज्य, मत्स्य पालन और पशुपालन जैसे मंत्रालयों को संभालने का विविध प्रशासनिक अनुभव है. भाजपा में, मुर्मू उपाध्यक्ष और बाद में ओड़िशा में अनुसूचित जनजाति मोर्चा की अध्यक्ष रह चुकी हैं.
2010 में भाजपा की जिलाध्यक्ष बनीं
वह 2010 में भाजपा की मयूरभंज (पश्चिम) इकाई की जिला अध्यक्ष चुनी गयीं और वर्ष 2013 में फिर से चुनी गयीं. उन्हें उसी वर्ष भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी (एसटी मोर्चा) का सदस्य भी नामित किया गया था. उन्होंने अप्रैल 2015 तक जिला अध्यक्ष का पद संभाला, जब उन्हें झारखंड के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया था. मुर्मू की बेटी इतिश्री ओड़िशा के एक बैंक में काम करती हैं.
भाषा इनपुट