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पंजाब यूनिवर्सिटी के मानवशास्त्र विभाग में हाल ही हुए शोध से आज़ादी की लड़ाई के नए तथ्य का पता चला है. शोध में पता चला है कि पंजाब के अजनाला गुरुद्वारे के कुएं से जो कंकाल मिले थे, वे बंटवारे के वक्त हुए दंगों में मारे गए लोगों के नहीं, बल्कि भारतीय सैनिकों के थे. 1857 की क्रांति में अंग्रेजों का हुक्म नहीं मानने पर इन सैनिकों की हत्या कर के उनके शव इसी कुएं में फेंक दिए गए थे .
अमृतसर में तैनात रहे तत्कालीन ब्रिटिश कमिश्नर फेडरिक हेनरी कूपर ने एक किताब लिखी थी – ‘द क्राइसिस ऑफ़ पंजाब’. इस किताब में उन्होंने इस नरसंहार की ज़िक्र किया है. पंजाब की एक शोधार्थी ने इंग्लैण्ड में यह किताब पढ़ने पर यह ब्योरा मिला कि 1857 की क्रांति में अंग्रेज़ अफ़सरों की हुक्मउदूली करने की सज़ा के तौर 282 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया गया था. इनके शव पंजाब के अजनाला गांव में बने गुरुद्वारे के कुएं में फेंक दिए गए थे.
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इसके पहले समझा जाता था कि ये कंकाल 1947 में दंगों में मारे गए लोगों के हैं. ‘द क्राइसिस ऑफ़ पंजाब’ के दिए गए तथ्य का पता चलने के बाद पंजाब यूनिवर्सिटी के मानवशास्त्र विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. जेएस सहरावत पिछले छह वर्षों से इस पर शोध कर रहे हैं ताकि सैनिकों के बारे में पता लगाया जा सके.
कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में सैनिकों की खोपड़ी में मिले दांतों की स्टेबल आइसोटोप तकनीक के ज़रिये जांच कराई गई, जिससे पता लगा कि मारे गए सैनिक किस राज्य के थे. लखनऊ के बीरबल साहनी इंस्टीटयूट ऑफ़ पेलियो साइंसेज़ में माइटोकॉंड्रियल डीएनए की जांच में यह भी पता चला कि इन सभी की उम्र 20 से 50 साल के बीच रही होगी.
डॉ. सहरावत ने अवशेषों की रेडियो कार्बन डेटिंग हंगरी में कराई, जिसमें इन सैनिकों के जन्म और मृत्यु के वर्ष का भी पता चल गया है. बकौल डॉ. सहरावत, जांच का मकसद मारे गए सैनिकों की पहचान करना है ताकि उनके अवशेष परिवार वालों को सौंपे जा सकें.
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अपने शोध में डॉ. सहरावत काफी हद तक कामयाब भी रहे हैं. शोध के नतीजे के मुताबिक मारे गए सैनिक पश्चिमी उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, बंगाल, ओडिशा, मेघालय आदि राज्यों के थे और अर्से से अपनी तैनाती वाली जगह पर रह रहे थे.
Posted By – Pankaj Kumar Pathak