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Jammu and Kashmir: साल 2019 में जम्मू-कश्मीर का केंद्र शासित प्रदेश बनने और अनुच्छेद 370 के हटने के बाद, अपने पहले विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रहा है। 90 सीटों के लिए तीन चरणों में होने वाले इस चुनाव के नतीजे 4 अक्टूबर को आएंगे। यह पहला मौका होगा जब 2014 के बाद जम्मू-कश्मीर के लोग विधानसभा चुनाव में अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे।
2022 में निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण के बाद जम्मू-कश्मीर की विधानसभा सीटों की संख्या बढ़कर 90 हो गई है, जिनमें कश्मीर घाटी की 47 और जम्मू की 43 सीटें शामिल हैं। 2019 में केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद से जम्मू-कश्मीर की प्रमुख शक्तियां उपराज्यपाल के पास हैं, जिससे निर्वाचित विधानसभा के अधिकार सीमित हो गए हैं।
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सियासी परिवर्तन की पहली परीक्षा
यह चुनाव जम्मू-कश्मीर में विशेष दर्जा समाप्त होने के बाद राजनीतिक परिदृश्य में आए बदलाव की पहली महत्वपूर्ण परीक्षा होगी। इस चुनाव के नतीजे इस बात का संकेत देंगे कि पिछले एक दशक में हुए बदलावों के बीच क्षेत्र की राजनीतिक भावना क्या है।
2014 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में 87 सीटों के लिए मतदान हुआ था। अब परिसीमन के बाद सीटों की संख्या बढ़कर 90 हो गई है। 2024 के लोकसभा चुनाव में जम्मू-कश्मीर में 65.52 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया था।
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2014 का विधानसभा चुनाव
2014 के विधानसभा चुनाव में 65.52 प्रतिशत का उच्च मतदान दर्ज किया गया था। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) 28 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी, जबकि भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने 25 सीटों पर जीत हासिल की थी। नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) को 15 और कांग्रेस को 12 सीटें मिली थीं, जबकि सात सीटें अन्य छोटी पार्टियों और निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीती थीं। हालांकि, किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला, जिसके चलते गठबंधन सरकार बनी थी।
जानें 2014 के बाद से अब तक क्या बदला?
जम्मू-कश्मीर का राजनीतिक परिदृश्य 2014 के बाद से काफी बदल चुका है। 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त हो गया और इसे केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया। 2022 में हुए परिसीमन के बाद विधानसभा सीटों की संख्या बढ़कर 90 हो गई। जम्मू के सांबा, राजौरी और कठुआ जिलों में नए निर्वाचन क्षेत्र जोड़े गए हैं, जबकि कश्मीर के कुपवाड़ा को एक अतिरिक्त सीट मिली है।
उपराज्यपाल की शक्तियां बढ़ी
2019 के बाद से उपराज्यपाल के पास पुलिस और भूमि संबंधित निर्णयों सहित कई अहम क्षेत्रों में प्रमुख शक्तियां हैं। निर्वाचित विधानसभा के अधिकार सीमित कर दिए गए हैं और अधिकांश निर्णयों को उपराज्यपाल की मंजूरी की आवश्यकता होती है।
जम्मू-कश्मीर के भविष्य की दिशा
जम्मू-कश्मीर का यह विधानसभा चुनाव राजनीतिक इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ेगा। चुनाव आयोग के अनुसार, “क्षेत्र की संवेदनशीलता को देखते हुए कश्मीर के उत्तरी जिलों में चुनाव कराना चुनौतीपूर्ण होगा।” नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने चुनाव आयोग के इस फैसले का स्वागत किया है और इसे लंबे समय से लंबित बताया है। उन्होंने कहा, “जम्मू-कश्मीर के लोग इस दिन का लंबे समय से इंतजार कर रहे थे। लेकिन जैसा कि कहते हैं, देर आए दुरुस्त आए।”
चुनाव की तैयारियां जैसे-जैसे आगे बढ़ रही हैं, विश्लेषक परिसीमन से प्रभावित क्षेत्रों में मतदाताओं के रुझान पर नजर बनाए हुए हैं। इस चुनाव के परिणाम से यह तय होगा कि जम्मू-कश्मीर का भविष्य केंद्र शासित प्रदेश के रूप में कैसा होगा। एक दशक के राजनीतिक बदलाव के बाद, जम्मू और कश्मीर की जनता अपनी विधानसभा का चुनाव करेगी, और इसके नतीजे यह बताएंगे कि यहां के लोग अपनी नई सरकार और नई शासन संरचना को कैसे देखते हैं।