‘राज्यों के पास फ्रीबीज के लिए धन हैं, जजों की सैलरी-पेंशन के लिए नहीं’, सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
नयी दिल्ली : अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने तीन तलाक पर उच्चतम न्यायालय में दायर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के हलफनामे को महज ‘आंखों में धूल झोंकने’ वाला बताया और कहा कि यह ‘समुदाय के बीच कानूनी वैधता’ हासिल करने का प्रयास है.
अटॉर्नी जनरल ने तीन तलाक की प्रथा के खिलाफ कोई भी परामर्श जारी करने के एआईएमपीएलबी के अधिकार क्षेत्र पर भी सवाल उठाया और कहा कि यह शीर्ष अदालत का ध्यान भटकाने का हताशापूर्ण प्रयास है. शीर्ष अदालत ने पहले ही इस मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.
शीर्ष अदालत में सोमवार को दायर हलफनामे में एआईएमपीएलबी ने कहा था कि जो लोग तीन तलाक का सहारा लेंगे, वो सामाजिक बहिष्कार का सामना करेंगे और ‘काजियों’ को परामर्श जारी किया जायेगा कि वे दूल्हों से कहें कि वे तलाक के इस तरह के तरीके का सहारा नहीं लेंगे.
रोहतगी ने कहा कि मुस्लिम निकाय, जिसने शीर्ष अदालत में माना है कि तीन तलाक की प्रथा ‘सही नहीं’ है, उसे पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को तीन तलाक को अवैध करार देने के लिए समझाना चाहिए था.
तीन तलाक मामले में शीर्ष अदालत की सहायता करनेवाले रोहतगी ने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि एआईएमपीएलबी का हलफनामा आंखों में धूल झोंकने वाला है. यह स्पष्ट नहीं है कि कितने लोगों के लिए वे बोलते हैं. उनका कोई प्रबोधक प्राधिकार नहीं है.’ अटॉर्नी जनरल ने कहा कि यह स्पष्ट नहीं है कि कितने काजी उसे मानेंगे और पर्सनल लॉ बोर्ड के परामर्श से सहमत होंगे और उसे समझेंगे.
उन्होंने कहा, ‘‘यह भी स्पष्ट नहीं है कि कितने काजी दूल्हे को निकाह के समय तीन तलाक का सहारा नहीं लेने के लिए सूचित करेंगे. इस बात को देखने के लिए कोई तंत्र नहीं है कि कैसे काजी ने दूल्हे को तीन तलाक का सहारा नहीं लेने की सलाह दी है और क्या दूल्हे वास्तव में उसके परामर्श का पालन करेंगे.’ अटॉर्नी जनरल ने कहा कि निरक्षरता दर और समुदाय में पुरुषों के वर्चस्ववादी स्थिति को देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि कितनी दुल्हनें यह कहने के लिए आगे आयेंगी कि वास्तव में वो क्या कहना चाहती हैं.
रोहतगी ने कहा, ‘‘इसलिए, पूरी बात अदालत का ध्यान भटकाने का हताशापूर्ण प्रयास है. अगर एआईएमपीएलबी कहता है कि प्रथा सही नहीं है, तो उन्हें तीन तलाक को अवैध करार देने के लिए अदालत को समझाना चाहिए था.’