शनि शिंगनापुर मंदिर : हाइकोर्ट के आदेश के बाद भी महिलाओं को दर्शन से रोका

पुणे : शनि शिंगनापुर मंदिर के चबूतरे में प्रवेश से तृप्ति देसाई और उनकी महिला ब्रिगेड को स्थानीय लोगों ने रोक दिया है. तृप्ति ने कहा, हम मुख्यमंत्री के खिलाफ एफआईआर दर्ज करायेंगे हमें मंदिर के अंदर आने की अनुमति नहीं दी गयी. तृप्ति देसाई को प्रवेश से मंदिर ट्रस्ट और स्थानीय लोगों ने रोका […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 2, 2016 12:29 PM

पुणे : शनि शिंगनापुर मंदिर के चबूतरे में प्रवेश से तृप्ति देसाई और उनकी महिला ब्रिगेड को स्थानीय लोगों ने रोक दिया है. तृप्ति ने कहा, हम मुख्यमंत्री के खिलाफ एफआईआर दर्ज करायेंगे हमें मंदिर के अंदर आने की अनुमति नहीं दी गयी.

तृप्ति देसाई को प्रवेश से मंदिर ट्रस्ट और स्थानीय लोगों ने रोका है. मंदिर ट्रस्ट ने पहले ही इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटायेगा. तृप्ति ने कहा कि पुलिस क्या कर रही है उन्हें प्रवेश में मदद करनी चाहिए . ये लोग हमारा विरोध नहीं कर रहे ये कोर्ट के फैसले का विरोध कर रहे हैं . हमें प्रवेश करने नहीं दिया गया हम गृहमंत्री और मुख्यमंत्री के खिलाफ एफआईआर दर्ज करायेंगे.

भूमाता ब्रिगेड के रवाना होने के बाद स्थिति बिगड़ने के अंदेशे के कारण सुरक्षा के पुख्‍ता इंतजाम किये गये हैं. अब मंदिर प्रशासन का कहना है कि शनि मंदिर के चबूतरे पर सिर्फ पुजारी ही जाते हैं. पुरुष और महिलाएं दोनों ही चबूतरे के नीचे ही रहते हैं.

तृप्ति देसाई ने कहा कि वह शिंगणापुर मंदिर जाकर पूजा करनेवाली हैं. हाई कोर्ट के आदेश से हमारी जीत हुई है. उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि कोई पूजा करने से हमें रोकेगा. अगर किसी ने ऐसी कोशिश की तो उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई जाएगी. तृप्ति देसाई लंबे समय से मंदिर में महिलाओं को पूजा करने और चबूतरे पर जाने के हक के लिए आंदोलन कर रही थीं.

देसाई ने अन्य मंदिरों में लैंगिक समानता लडाई लडने का संकल्प लिया

मंदिरों में लैंगिक समानता के लिए आंदोलन का नेतृतव करने वाली भूमाता रणरागिनी ब्रिगेड की प्रमुख तृप्ति देसाई ने आज बंबई उच्च न्यायालय के इस आदेश का स्वागत किया कि महिलाओं को अब महाराष्ट्र में मंदिरों में प्रवेश से नहीं रोका जा सकता क्योंकि यह उनका मौलिक अधिकार है. इस आदेश से खुश देसाई ने कहा कि वे लोग अपने अभियान को देश भर के अन्य मंदिरों में ले जाएंगी जहां नियमित तौर पर ऐसे लैंगिक भेदभाव होते हैं.

उन्होंने कहा कि वे अब कल अहमदनगर स्थित शनि शिंगणापुर मंदिर जाने की तैयारी कर रही हैं. ‘हम आश्वस्त हैं कि उच्च न्यायालय के आदेश के बाद पुलिस महिलाओं को नहीं रोकेगी और हमें पवित्रस्थल में जाने की इजाजत दी जाएगी.’ अदालत के फैसले के बाद इस संगठन को आपस में मिठाइयां बांटते देखा गया. देसाई ने कहा, ‘हम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात करेंगे और उनसे एक कानून बनाने को कहेंगे ताकि पूजा पर ऐसे प्रतिबंधों को खत्म किया जा सके.’

गौरतलब है कि शिंगणापुर और त्रम्बकेश्वर मंदिर तक मार्च करने के दौरान उन्हें और उनके समर्थकों को दो बार हिरासत में लिया गया था. देसाई ने कहा कि उनकी लडाई इन दो मंदिरों तक सीमित नहीं है बल्कि पूजा के उस हर स्थान के लिए है जहां महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध है. सामाजिक कार्यकर्ता विद्या बल की याचिका पर अदालत का आदेश आया है. देसाई ने दावा किया कि विद्या उनसे मिली थी और लैंगिक भेदभाव खत्म करने की उनकी कोशिशों की सराहना की थी. देसाई ने बताया, ‘उन्होंने मुझसे कहा था कि यदि हम कानूनी रास्ते पर आगे बढने को तैयार नहीं होंगे तो उनका (बल का) संगठन अदालत जाएगा और अब दोनों ने लडाई जीत ली है.’

जानें क्या था अदालत के आदेश में

महाराष्ट्र में महिलाओं को अब मंदिरों में प्रवेश से रोक पर बंबई उच्च न्यायालय ने कहा कि पूजास्थलों पर जाना उनका मौलिक अधिकार है और इसकी रक्षा करना सरकार का कर्तव्य है. वरिष्ठ अधिवक्ता नीलिमा वर्तक एवं सामाजिक कार्यकर्ता विद्या बल द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश डी एच वाघेला और न्यायमूर्ति एम एस सोनक की खंडपीठ ने ये निर्देश दिये. इस याचिका में महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर जैसे मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी को चुनौती दी गयी थी.

याचिका में महाराष्ट्र हिन्दू पूजा स्थल (प्रवेश अधिकार) अधिनियम 1956 के प्रावधानों को लागू करने की मांग की गयी. महाराष्ट्र सरकार ने कहा कि वह कानून को लागू करके आदेश के अनुरुप सभी कदम उठाएगी. अदालत के आदेश का स्वागत करते हुए मंदिरों में लैंगिक समानता के अभियान का नेतृत्व कर रही सामाजिक कार्यकर्ता तृप्ति देसाई ने कहा कि वह और उनकी साथी कल ही शनि शिंगणापुर जाएंगी.

मुख्य न्यायाधीश वाघेला ने कहा, ‘कानून को पूरी तरह लागू करने के लिए सरकार सभी जरुरी कदम उठायेगी. आखिरकार यह महिला का मौलिक अधिकार है और सरकार का मूल कर्तव्य उनके (महिलाओं के) अधिकारों की रक्षा करना है.’ न्यायमूर्ति वाघेला ने कहा, ‘कार्यवाहक महाधिवक्ता ने न्यायालय को आश्वस्त किया है कि राज्य सरकार लिंग के आधार पर भेदभाव के खिलाफ है और संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 25 को ध्यान में रख रही है.

मौलिक अधिकारों की रक्षा को सुनिश्चित करने और किसी भी अधिकारी द्वारा इस पर अधिकार जमा लेने से रोकने के लिए सरकार एहतियाती कदम उठा सकती है.’ अदालत ने कहा कि वह सरकार को एक सामान्य निर्देश जारी कर सकती है और किसी भी व्यक्तिगत और खास मुद्दे में नहीं जा सकती है. अदालत ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति को लगता है कि कानून का पालन नहीं हो रहा है तो वह अपनी शिकायत स्थानीय अधिकारी के समक्ष दर्ज करा सकता है.

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