<p><strong>हरिवंश</strong></p> <div>इस देश में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ! 1974 में सांसद तुलमोहन राम पर एक कंपनी को फेवर के आधार पर मालगाड़ी वैगन आवंटित कराने का आरोप लगा. चर्चा यह थी कि उक्त कंपनी ने इस फेवर के लिए तुलमोहन राम को डेढ़ लाख रुपये दिये. इस एक घटना ने बिहार आंदोलन की आग में घी का काम किया. संसद से सड़क तक भ्रष्टाचार का सवाल गूंजा. 1977 के चुनावों में जनता ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर पहली बार दिल्ली का तख्त उलट दिया.</div> <div> </div> <div>हाल में दुनिया स्तर पर भ्रष्टाचार की जांच करनेवाली ट्रांसप्रेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट आयी. रिपोर्ट में उल्लेख है कि निजी कंपनियों ने पिछले एक साल में भारत में 32,000 करोड़ रुपये बतौर घूस सरकारी अफसरों को दिये हैं.</div> <div> </div> <div>आश्चर्य है कि एक सांसद द्वारा फेवर प्रक्रिया से डेढ़ लाख कमीशन पाने की चर्चा इस देश में संसद से सड़क तक गूंजी. लेकिन 32,000 करोड़ सरकारी ठेके पाने के लिए निजी कंपनियां, सरकारी अफसरों को घूस देती है, पर एक आवाज नहीं उठती. न भाकपा, न माकपा और न कोई अन्य दल बोलता है. भाजपा और उसके सहयोगी दल चुप हैं, क्योंकि यह उनके कार्यकाल की घटना है. भ्रष्टाचार पर कांग्रेस का मौन समझ में आता है, क्योंकि भ्रष्टाचार की नदियों का उद्गम स्रोत वह रही है. अतीत के अपने घोटालों की गठरी और चारा घोटाला के बोझ उठाने से उसकी नजरें झुकी हैं.</div> <div> </div> <div>मांग तो यह होनी चाहिए कि कैसे प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर विभिन्न मंत्रालयों के वरिष्ठ अफसर रिटायर होते ही या रिटायरमेंट लेकर बड़े उद्योग घरानों की नौकरी में चले जाते हैं. यह नियमत: गलत है, पर देखनेवाला कौन है? सरकारी कार्यालयों में काम करनेवाले निजी कंपनियों के पेरोल पर रहते हैं, पर सब चुप हैं. बड़े नौकरशाहों के बेटे-बेटियां कैसे बहुराष्ट्रीय कंपनियों में बड़े पदों पर चले जाते हैं, यह राज नहीं है. आजादी बचाओ के लोगों ने एक सूची जारी की थी. कुछ वर्षों पहले. इसमें भारत सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर रहे लोगों की संतानें कहां कार्यरत हैं, बताया गया था. जनता के नाम पर जनता के सेवक (नेता-अफसर) यह कर रहे हैं, लेकिन सवाल नहीं उठ रहे.</div> <div> </div> <div>भ्रष्टाचार ने सामान्य लोगों का जीवन बंधक बना लिया है. इस पर सार्वजनिक मौन देशद्रोह है. महज बेरोजगार युवकों की तादाद इसके खिलाफ उतर जाये, तो नयी राह मिलेगी. विधायक यात्रा किये बिना यात्रा की बात करते हैं. कोई राजनीतिक दल या लोक संगठन ऐसा नहीं, जो राजनीति में इस सफाई का अभियान छेड़े, धरना दे. घर-घर घूम कर, इस राजनीति और इसके पात्रों के प्रति नफरत की आग लगाये. झारखंड के एक जिले में (हजारीबाग) ग्रामीण विकास के कामों में अलग राज्य बनने के बाद, चार वर्षों में 40 करोड़ कमीशन में बंट जाता है. पूरे राज्य में हुए कमीशन राशि को जोड़ दें, तो हजारों करोड़ रुपये ऐसे ही बंट रहे हैं. बीसीसीएल का मुख्यालय धनबाद में है. कंपनी बीमार है. पिछले 20 वर्षों में 78,000 करोड़ रुपये वहां लूटे गये हैं. इस लूट में 12 हजार श्रमिक नेता भी हैं, जो गरीब मजदूर बन कर गये, पर अपनी दबंगता-उदंडता से अरबपति-करोड़पति बने. हजारों ऐसे श्रमिक नेता हैं, जो कागज पर काम कोयला खदानों में करते हैं, पर झकास सफेद कुरता-पायजामा पहन कर नेतागीरी करते हैं. बिना काम किये पांच सितारा भोग का जीवन जीते हैं. रोज वामपंथी-मजदूर नेता बयानबाजी करते हैं कि घाटे की सरकारी कंपनियों को सरकार पैसा दे. सरकार यह पैसा कहां से देगी? टैक्स लगा कर या विकास का काम रोक कर. इसका बोझ भी गरीब उठा रहे हैं. पिछले 30-35 वर्षों में बैड एंड डाउट फुल (डूबी राशि) खाते में लगभग 85, 000 करोड़ रुपये डूबे हैं. यह पैसा डुबानेवालों में देश के वे बड़े घराने भी हैं, जो हर सरकार के प्रियपात्र हैं. एक किसान 20-25 हजार कर्ज नहीं चुका पाने के कारण आत्महत्या के लिए विवश हो जाता है, पर जो हजारों करोड़ सरकारी उधार डकार जानेवाले हैं, विदेशी बैंकों में वह भारतीय पूंजी जमा करा लेते हैं, वे इस समाज में पूज्य-प्रतिष्ठित और वीआइपी हैं.</div> <div> </div> <div>15 नवंबर 1999 को स्विस दूतावास के एक बड़े अफसर डॉ पीरे हेला ने मुंबई में बताया कि स्विस बैंकों में 2500 बिलियन डालर भारतीय कालाधन जमा है. भारतीय रुपये में इसे बदलिए, स्तब्ध रह जायेंगे आप. यह पैसा वापस आये, तो भारत अपना पूरा विदेशी कर्ज, उतार सकता है. बजट घाटा पूरा कर सकता है. समृद्ध देश बन सकता है.</div> <div>विभिन्न घोटालों की राशि जोड़ दें, तो घोटालेबाज दंग रह जायेंगे. 2001 जुलाई में यूटीआइ में घोटाला हुआ. 285 ऐसी कंपनियों में अरबों निवेश हुआ, जिनका अस्तित्व नहीं था. कौन थीं ये कंपनियां? कौन लोग इसके पीछे थे? देश के सामान्य नागरिकों को किन ताकतों ने लूटा? इन सवालों पर न संसद में बहस होती है, न मीडिया में. भारत में भ्रष्टाचार पर मौन की संस्कृति के पीछे आम सहमति का बोध है.</div> <div>लोग कहते हैं, भ्रष्टाचार मुद्दा नहीं है. एक गरीब इसलिए दो रुपये कप (एक अर्थशास्त्री का आकलन) चाय पीता है, क्योंकि 1.50 रुपये बड़े लोगों के भ्रष्टाचार-घूस की कीमत देता है. अन्यथा 50 पैसे में एक चाय पीता. पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त एन विठ्ठल ने एक अध्ययन का हवाला दे कर (द सिटीजंस गाइड टू प्रमोट इंटिग्रिटी) कहा है कि भ्रष्टाचार में 15 फीसदी कमी हो, तो भारत के कुल घरेलू उत्पाद में 1.3 फीसदी की वृद्धि होगी और 2.9 फीसदी निवेश बढ़ेगा.</div> <div> </div> <div>दरअसल भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाना आज नैतिक प्रश्न नहीं, बल्कि त्वरित आर्थिक विकास की पहली शर्त है.</div> <div> </div>
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<p><strong>हरिवंश</strong></p> <div>इस देश में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ! 1974 में सांसद तुलमोहन राम पर एक कंपनी को फेवर के आधार पर मालगाड़ी वैगन आवंटित कराने का आरोप लगा. चर्चा यह थी कि उक्त कंपनी ने इस फेवर के लिए तुलमोहन राम को डेढ़ लाख रुपये दिये. इस एक घटना ने बिहार आंदोलन की आग […]
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