अपना जीवन, समाज, राज्य और देश बदलना है, तो जयप्रकाश नारायण और लोकसत्ता आंदोलन को जानिए, मदद कीजिए!
-हरिवंश- कन्फ्यूज न हों, लोकनायक जयप्रकाश नारायण की बात हम नहीं कर रहे. यह जयप्रकाश नारायण भिन्न हैं. पर लोकनायक के बिहार आंदोलन-मूल्यों से प्रभावित. बिहार आंदोलन के दिनों में इस जयप्रकाश नारायण की भी सक्रिय भागीदारी रही.यह जयप्रकाश नारायण, एमबीबीएस डॉक्टर हैं. फिर आइएएस बने. आंध्र के मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव रहे. गौर कीजिए, […]
-हरिवंश-
कन्फ्यूज न हों, लोकनायक जयप्रकाश नारायण की बात हम नहीं कर रहे. यह जयप्रकाश नारायण भिन्न हैं. पर लोकनायक के बिहार आंदोलन-मूल्यों से प्रभावित. बिहार आंदोलन के दिनों में इस जयप्रकाश नारायण की भी सक्रिय भागीदारी रही.यह जयप्रकाश नारायण, एमबीबीएस डॉक्टर हैं. फिर आइएएस बने. आंध्र के मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव रहे. गौर कीजिए, चंद्रबाबू नायडू के प्रधान सचिव. किसी ऐरे-गैरे राज्य या उसके मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव नहीं.
उस मुख्यमंत्री के सबसे मनपसंद अफसर, जो 1996 के बाद केंद्र में ‘प्रधानमंत्रियों’ के चयन में सबसे निर्णायक राजनीतिज्ञ है और भारत की राजनीति को विकास की गंगा में पुनरुद्धार कर नया विजन देनेवाला मुख्यमंत्री. उनके साथ ताकतवर और प्रभावी पद पर. किसी भी नौकरशाह के लिए ‘इच्छित पद’. पर डॉ जयप्रकाश नारायण को यह पद भी नहीं बांध सका. उन्होंने लोकनायक के नेतृत्व में चले आंदोलन में एक नये भारत का सपना देखा था. उन्होंने मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव और आइएएस, दोनों से इस्तीफा दे दिया. चुपचाप बिना प्रचार-प्रसार के. शहीद होने का दिखावा किये बिना. आज हर राज्य में टॉप सिविल सर्वेंट, अपढ़ नेताओं के सामने पद पाने के लिए. सबकुछ दावं पर लगा देते हैं.
इन आम चुनावों में कई राज्यों से खबरें आ रही हैं कि बड़े-बड़े नौकरशाह (भरपूर सत्ता सुख भोगने और धन लूटने के बाद या सेवामुक्त होने के बाद) चुनावों में टिकट के लिए अपढ़ नेताओं के सामने हाथ जोड़े खड़े हैं. वहीं एक आइएएस ने अपने कैरियर के बीच में टॉप पद पर रहते हुए, इस्तीफा दे दिया. उनके कैरियरिस्ट कलीग इसे अव्यावहारिक कदम मानते रहे. उनका मानना था कि प्रतिभाशाली डॉ जयप्रकाश नारायण, अपनी निष्ठा, विजन और प्रमुखता से भारतीय नौकरशाही के टॉप पर पहुंचेंगे. पर डॉ जेपी के सपने अलग थे.
उन्होंने लोकसत्ता आंदोलन शुरू किया. ‘इकानामिक टाइम्स’ समेत देश के मशहूर प्रकाशनों में उनके नियमित स्तंभ छपते हैं. बिल्कुल मौलिक बातों-तथ्यों के साथ. वह देश के गिने-चुने मौलिक विचारकों में से हैं. स्टार-एनडीटीवी वगैरह द्वारा आयोजित गंभीर बहसों में वह अपनी अलग छाप छोड़ जाते हैं. प्रभात खबर में भी उन्होंने लिखना स्वीकार किया है.
उनके जनसमर्थक अभियानों और राजनीति की सफाई से प्रेरित आंदोलनों पर फिर कभी चर्चा होगी. ‘इलेक्शन वाच’ अवधारणा के वही जनक हैं. पिछले पांच वर्षों से आप ऐसी सूचनाएं लगातार पढ़ रहे हैं कि चुनाव लड़नेवाले कितने प्रत्याशियों का अतीत आपराधिक है या दागदार है. इस काम में उनका, उनकी संस्था की भूमिका सबसे सराहनीय है. उनके अभियान का नाम है,
लोकसत्ता आंदोलन. डॉ जयप्रकाश इसी लोकसत्ता आंदोलन के राष्टीय कोऑर्डिनेटर हैं. वह हैदराबाद में ही रहते हैं. लोकसत्ता का मुख्यालय वहीं है. लोकसत्ता यानी सत्ता, जनता को. देश के कई हिस्सों में डॉ जयप्रकाश अभियान चला रहे हैं. उनका मोटो है, जनभागीदारी और नयी राजनीति. इसमें लोकसत्ता के अलावा कई समूह शामिल हैं. मसलन कैटेलिस्ट टेस्ट, सिटिजन एक्शन नेटवर्क, कर्नाटक में जनाग्रह, जनवेदिक, महाराष्ट में अग्नि, जिसके अगुआ बीजे देशमुख हैं. अण्णा हजारे, अहमदाबाद में मनुभाई शाह आदि मिल कर चुनाव सुधार अभियान चलाने जा रहे हैं. पहले चरण में आठ शहरों (दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बेंगलूर, हैदराबाद, पुणे और अहमदाबाद) में यह अभियान चलेगा.
गौर करिए, जिन राज्यों में ऐसे आंदोलन चल रहे हैं, वे आगे बढ़ते राज्य हैं. हिंदी इलाकों में ऐसे आंदोलन या डॉ जयप्रकाश जैसे लोगों से ही अविकास, निराशा या पिछड़ेपन की तस्वीर दूर हो सकती है. बहरहाल लोकसत्ता के बारे में कुछ और चीजें. 1999 में आंध्र लोकसभा व विधानसभा चुनाव में डॉ जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में ‘इलेक्शन वाच’ अभियान चला. इसका नाम था, ‘इलेक्शन वाच मूवमेंट 1999’. पुन: आंध्रप्रदेश में हो रहे लोकसभा-विधानसभा चुनावों में यह अभियान चल रहा है. इस अभियान का मकसद है, कोई भी दल, अपराधियों को टिकट न दे. चुनाव प्रक्रिया की सफाई की जाये. इस संस्था ने मतदाताओं को जागरूक बनाने का अभियान चलाया. कहा कि 1996 में चुनाव आयोग ने माना कि 1500 प्रत्याशी, आपराधिक चरित्र के थे, जिनमें से 40, 11वीं लोकसभा में चुनाव जीते. पूरे देश के 4072 विधायकों में से तब 700 आपराधिक पृष्ठभूमि के थे. ऐसे तथ्यों के साथ ‘इलेक्शन वाच’ ने राजनीतिक सफाई अभियान चलाया. 1999 के आंध्र चुनावों में लोकसत्ता ने 45 आपराधिक प्रत्याशियों की सूची जारी की, जिसकी देशव्यापी चर्चा हुई.
इसका परिणाम? पिछले तीन वर्षों से आंध्र में राजनीति के अपराधीकरण की प्रक्रिया धीमी हो रही है. लोकसत्ता आंदोलन के कारण कोई बड़ा दल, अपराधियों को प्रश्रय देने के लिए तैयार नहीं है. डॉ जयप्रकाश का मानना है कि ‘बिल्ड प्रेशर फार बेटर पालिटिक्स’ (अच्छी राजनीति के लिए जन दबाव बनाइए). आंध्र प्रदेश में ‘इलेक्शन वाच कमेटी 2004’ के चेयरमैन हैं, न्यायमूर्ति वीपी जीवन रेड्डी (ला कमीशन के पूर्व चेयरमैन, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज). इस समिति में 22 सदस्य हैं. अपने-अपने क्षेत्र के शीर्ष के लोग. ईमानदारी, नाम और निष्ठा में बड़े-बड़े पदों पर हैं. विभिन्न क्षेत्रों से हैं. पर सारे लोग अपने राज्य की राजनीति (आंध्र) की क्वालिटी (स्तर) सुधारने में एक साथ लगे हैं. अब सोचिए! उस राज्य (आंध्र) की राजनीति नहीं सुधरेगी, वह राज्य विकास नहीं करेगा, तो क्या हम अकर्मण्य लोगों के हिंदी, राज्य दुनिया में अपनी जगह बनायेंगे.