नयी दिल्ली: दिवंगत राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के प्रति थोडे से शंकित थे. उन्होंने कहा था कि हालांकि यह अभियान ‘काफी महत्वाकांक्षी’ है लेकिन यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि भारत कहीं दुनिया का कम लागत वाला और सस्ता निर्माण केंद्र न बनकर रह जाए.
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‘मेक इन इंडिया” को लेकर कलाम ने किया था सावधान
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नयी दिल्ली: दिवंगत राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के प्रति थोडे से शंकित थे. उन्होंने कहा था कि हालांकि यह अभियान ‘काफी महत्वाकांक्षी’ है लेकिन यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि भारत कहीं दुनिया का कम लागत वाला और सस्ता निर्माण केंद्र न बनकर रह जाए. डिजिटल इंडिया के बारे में उन्हें […]

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डिजिटल इंडिया के बारे में उन्हें लगता था कि इसमें गांवों और सुदूर इलाकों में जरुरी ज्ञान संपर्क को सक्रिय करने की क्षमता है और ‘‘हमें साक्षरता, भाषा और विशिष्ट सामग्री के निचले स्तर के कारण उपजे अंतर को पाटने की जरुरत है.’ ये विचार कलाम द्वारा अपने सहयोगी सृजन पाल सिंह के साथ लिखी गईं अंतिम पुस्तकों मेें से एक ‘एडवांटेज इंडिया: फ्रॉम चैलेंज टू ऑप्र्च्युनिटी’ में व्यक्त किए गए हैं. यह पुस्तक जल्दी ही प्रकाशित होने वाली है.
हार्पर कॉलिन्स इंडिया द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक में 27 जुलाई को कलाम का आईआईएम-शिलंाग में दिया जा रहा अधूरा रह गया भाषण भी है. भाषण देने के दौरान ही वह लडखडाकर गिर गए थे, जिसके कुछ समय बाद उनके निधन की घोषणा कर दी गई थी.राजग सरकार ने पिछले साल सितंबर में ‘मेक इन इंडिया’ की शुरुआत की थी. इस कार्यक्रम का उद्देश्य भारत को निवेश के लिहाज से एक महत्वपूर्ण स्थान और निर्माण, डिजाइन एवं नवाचार का वैश्विक केंद्र बनाना है.
कलाम ने लिखा, ‘‘जरा इसपर स्पष्ट हो जाते हैं. ‘मेक इन इंडिया’ काफी महत्वाकांक्षी है लेकिन हमें कुछ उंची महत्वाकांक्षाओं की जरुरत है. मैं अवसंरचना संबंधी चिंता पर सहमत हूं.’ उन्होंने लिखा, ‘‘भारत का अवसंरचनात्मक विकास असंतुलित रहा है- विभिन्न राज्यों और विभिन्न सेक्टरों में काफी भारी भिन्नताएं हैं. जैसे कि दूरसंचार एवं इंटरनेट सेक्टर ने महत्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन कई गांवों तक अभी भी सडकें और बिजली नहीं है.
निर्माण वृद्धि के लिए भौतिक अवसंरचना को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।’ उनके पास एक सलाह थी: ‘‘हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम कहीं दुनिया में कम लागत वाला और सस्ता निर्माण केंद्र बनकर न रह जाएं। यदि हम उस रास्ते पर जाते हैं तो विकास के बदले जनता को एक बडी कीमत चुकानी पडेगी और परेशानी सहनी पडेगी।’ उनका सुझाव था कि हमें भारत में डिजाइन, विकास और निर्माण के लिए युवाओं के विचारों, प्राचीन समझदारी और लोकतंत्र की जीवंतता का इस्तेमाल करते हुए मूल शोध करना चाहिए.
कलाम के अनुसार, एक अलग ही अनुभव हो रहा है कि राजनीति तेजी से ‘म्यूजिकल चेयर्स’ के खेल में बदल रही है, जहां कुछ नेताओं का समूह या उनके पसंदीदा कुछ लोग सत्ता में सीटें हासिल कर लेते हैं और दूसरों के प्रवेश के लिए बडे-बडे अवरोधक लगा देते हैं.
उन्होंने लिखा, ‘‘इस समूह के नेताओं में ईमानदारी की कमी है. मशाल को एक भ्रष्ट नेता द्वारा इसी समूह के दूसरे किसी नेता के हाथ में सौंप दिया जाता है. राजनीति में लोगों के लिए सुव्यवस्थित प्रक्रियाएं होनी चाहिए ताकि भ्रष्ट व्यक्ति को निकाला जा सके और स्थायी तौर पर हटाया जा सके। इसके साथ ही एक ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए, जिसके जरिए नए कुशल एवं रचनात्मक नेताओं को नैतिक तरीकों से व्यवस्था में आने का मौका मिल सके।’ चुनाव प्रक्रिया पर उन्होंने लिखा कि दलों के प्रसार के कारण देश पर चुनावों का भार बढ गया है और इसके कारण चुनावों के बाद के राजनीतिक समीकरण भी विकृत हो गए हैं, जिससे भ्रष्टाचार का प्रसार हुआ है.
उन्होंने लिखा, ‘‘राजनीतिक नेताओं की लंपटता शायद नागरिकों को किसी भी अन्य प्रकार के भ्रष्टाचार से ज्यादा चोट पहुंचाती है. जब नेतृत्व उदासीन, भ्रष्ट या संवेदनहीन हो जाता है तो यह विश्वास का उल्लंघन और उम्मीद को तोडना है.’ उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन बेपरवाही और बेरुखी कभी भी न तो जवाब थी और न ही कभी होगी.यह समझना मुश्किल नहीं है कि राजनीतिक भ्रष्टाचार इसके सभी रुपों में से सबसे अधिक खतरनाक है.
किसी भी परिपक्व या उभरते लोकतंत्र में राजनीतिक नेतृत्व की गुणवत्ता एक कल्याणकारी राष्ट्र और एक दिवालिया राष्ट्र के बीच अंतर का माध्यम बन सकती है.’ हालांकि कलाम आशावादी थे. ‘‘हालांकि समय के साथ हमारी राजनीतिक व्यवस्था की नैतिकता में गिरावट आने की बात पर कोई संदेह नहीं है फिर भी ऐसे बहुत से मामले हैं, जहां राजनीतिक नेतृत्व ने अक्षमता एवं भ्रष्टाचार के प्रकोप से निपटने के लिए क्षमता एवं संकल्प दिखाया है
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