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नेताजी की 64 फाइलें सार्वजनिक, मोदी पर ममता-स्वामी का दोहरा दबाव

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विष्णु कुमार पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने आज देश के वीर सपूत नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन से जुडी 64 फाइलें सार्वजनिक कर दीं. ममता बनर्जी की स्वाभाविक आक्रमकता के कारण उनके इस फैसले ने लोगों को चौंकाया तो नहीं, लेकिन इस निर्णय ने उनकी जिज्ञासा बढा दी है. ममता बनर्जी सरकार […]

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विष्णु कुमार
पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने आज देश के वीर सपूत नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन से जुडी 64 फाइलें सार्वजनिक कर दीं. ममता बनर्जी की स्वाभाविक आक्रमकता के कारण उनके इस फैसले ने लोगों को चौंकाया तो नहीं, लेकिन इस निर्णय ने उनकी जिज्ञासा बढा दी है. ममता बनर्जी सरकार ने आज नेताजी की जो 64 फाइलें जारी की हैं, वे 1937 से 1947 के बीच की हैं. 12, 744 पन्ने की इन फाइलों में नेताजी की जिंदगी से जुडे कई राज हैं, जो आम लोगों के लिए डिजीटल फॉर्म में भी पश्चिम बंगाल सरकार ने उपलब्ध कराये हैं.
अब इन फाइलों का आम जनता के साथ, इतिहासकार, लेखक, स्तंभकार, पत्रकार व शायद फिल्मकार भी अध्ययन करेंगे और अपने-अपने संचार माध्यम के द्वारा उसके बारे में लोगों तक जानकारी पहुंचायेंगे, जिससे देश में एक जनमत बनेगा. यह देखना दिलचस्प होगा कि यह जनमत भविष्य में किस विचारधारा को लाभ और किसे नुकसान पहुंचायेगा. यह तो निश्चित है कि इससे जो तथ्य सामने आयेंगे, उससे नेताजी के नायकत्व का कद देश में और बढेगा, यानी एक राष्ट्र नायक के रूप में उनका कद कई गुणा बढेगा और अपने समकालीन कई नेताओं को लोकप्रियता में पीछे छोडते हुए नयी पीढी के अंतस्थ में और गहरे समाहित होंगे. पर, इन फाइलों का देश की राजनीति पर और राष्ट्रनायकों के आकलन पर भी आने वाले सालों में बडा असर होगा.
ममता बोलीं, केंद्र भी सार्वजनिक करे फाइलें
ममता बनर्जी ने गेंद अब मोदी सरकार के पाले में डाल दी है. ममता बनर्जी आज नेताजी की फाइलें कोलकाता के पुलिस म्यूजियम में सार्वजनिक होने के बाद उसका अवलोकन करने पहुंची. इस दौरान उन्होंने कहा कि उनके पास जो फाइलें थीं, उसे उन्होंने सार्वजनिक कर दिया है, अब केंद्र सरकार भी फाइलें सार्वजनिक करे. केंद्र के पास नेताजी से जुडी 150 फाइलें हैं. जब भाजपा सत्ता से बाहर थी, तब वह हमेशा नेताजी की फाइलें सार्वजनिक करने की मांग उठाती थी, लेकिन सत्ता में आने के बाद उसके बोल बदल गये हैं. इस संबंध में इस आशय की खबरें भी मीडिया में आयी हैं कि वे फाइलें सार्वजनिक किये जाने से कुछ देशों से कूटनीतिक रिश्ते खराब हो सकते हैं.
बहरहाल, ममता बनर्जी ने कहा है कि नेताजी, सरदार पटेल, मौलाना आजाद, भगत सिंह आदि हमारे राष्ट्र नायक हैं. ऐसे में हम उनसे जुडे किसी सत्य को जनता से क्यों छिपायें. उन्होंने कहा कि यह लॉ एंड ऑर्डर का प्राब्लम नहीं है और और कोई समस्या होगी तो हम उसे हैंडल कर लेंगे. उन्होंने कहा कि अपने महापुरुषों से जुडे तथ्यों को हम छिपा नहीं सकते हैं. अत: केेंद्र भी अपने पास से नेताजी की फाइल व चिट्ठियों को सार्वजनिक करे.
नेताजी के प्रपौत्र चंद्र वर्मा ने भी नेताजी की फाइलें सार्वजनिक किये जाने पर खुशी जाहिर की. उन्होंने कहा कि अब केंद्र भी उनकी 150 फाइलें सार्वजनिक करे. उन्होंने कहा कि अब नेताजी की जासूसी का राज खुलेगा.

सुब्रमण्यन स्वामी ने भी मोदी पर बढाया दबाव
वरिष्ठ भाजपा नेता सुब्रमण्यन स्वामी ने ममता बनर्जी सरकार के इस फैसले के बाद केंद्र की अपनी ही पार्टी की सरकार पर फाइलें सार्वजनिक करने का दबाव बढा दिया. नयी दिल्ली में उन्होंने मीडिया से कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की फाइलें सार्वजनिक करे, नहीं तो मैं इस मुद्दे को कोर्ट लेकर जाउंगा. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार देश के नायक की फाइलें आम आदमी से दबा कर नहीं रख सकती है. उन्होंने कहा कि नौकशाह इसके लिए बहाना बनाते हैं कि दूसरे देश से रिश्ते खराब हो जायेंगे. सोवियत संघ तो अब अस्तित्व में ही नहीं है, जबकि ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार सत्ता में नहीं है. ऐसे में ये तर्क बेजा हैं. उन्होंने कहा कि फाइलें सार्वजनिक होने पर कांग्रेस व पंडित जवाहर लाल नेहरू की बदनामी होगी.
संघ परिवार व आमजन की धारणा
न सिर्फ ममता बनर्जी, बल्कि केंद्र में सत्तासीन नरेंद्र मोदी व उनकी पार्टी के दूसरे बडे नेता भी नेताजी के नायकत्व का हमेशा उल्लेख करते रहे हैं. भाजपा के पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं संघ में यह सामान्य मत है कि अबतक नेताजी को इतिहास में वह जगह नहीं दी गयी है, जिसके वे स्वाभाविक हकदार हैं. यह भी धारणा है कि नेताजी के साथ तत्कालीन राजनीतिक नेतृत्व में न्याय नहीं हुआ था. नयी पीढी के मन में भी यह धारणा है कि नेताजी पंडित जवाहर लाल नेहरू के पक्षपात के शिकार हुए थे. हालांकि विद्वानों एक एक वर्ग यह मानता है कि कुछ बिंदुओं पर मतभेद होने के बावजूद नेताजी व पंडितजी के बीच गहरे आत्मीय रिश्ते थे.
बंगाल की राजनीति पर असर
नेताजी की फाइलों का असर पश्चिम बंगाल की राजनीति पर भी पडेगा. हमारे राजनेता भले ही कितना भी दावा करें कि वे महापुरुषों के नाम पर राजनीति नहीं करते, लेकिन इस सच को खारिज नहीं किया जा सकता कि श्रद्धा व सम्मान के साथ-साथ उनके नाम का उपयोग राजनीतिक लाभ के लिए भी करते हैं. 2016 में पश्चित बंगाल में चुनाव है. अगर केंद्र सरकार नेताजी की फाइलें सार्वजनिक नहीं करती है, तो वहां येन केन प्राकरेण यह मुद्दा बन सकता है कि आखिर जोर-शोर से नेताजी का नाम लेने वाली भाजपा ने केंद्र में सरकार में होने के बाद उनकी फाइलें क्यों सार्वजनिक नहीं की है.
कुछ बडे अनुत्तरित सवाल
एक आम भारतीय के मन में नेताजी जी जुडे हजार अनुत्तरित सवाल हैं. सबसे पहले तो लोग यह जानना चाहते हैं कि नेताजी की मौत कैसे हुई और कब हुई. क्या नेताजी 1964 में भी जीवित थे. क्या नेताजी ही फैजाबाद के गुमनामी बाबा थे, क्या नेताजी पर रूस व नेहरू जी में पत्राचार हुआ था, क्या नेताजी की मौत ताइपे में विमान दुर्घटना में हुई थी, नेताजी क्या किसी राजनीतिक-कूटनीतिक षड्यंत्र के शिकार थे, क्या नेताजी अपने समाकलीन किसी कद्दावर नेता की उपेक्षा के शिकार थे, नेताजी ने देश को स्वतंत्रा दिलाने के लिए किस तरह की सामरिक व कूटनीतिक रणनीति तैयार की थी, आदि-आदि. अब हम और आप प्रतीक्षा कीजिए आने वाले दिनों में ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब का!

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