सरकार जाति आधारित जनगणना के आंकडे जारी करे: पूनिया

नयी दिल्ली : लालू प्रसाद, नीतीश कुमार और कुछ दूसरे ओबीसी नेताओं की ओर से जाति आधारित जनगणना के आंकडे जारी करने की मांग का समर्थन करते हुए राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष पीएल पूनिया ने आज कहा कि इन आंकडों के सामने आने से सभी वर्गों की आबादी की सही तस्वीर का पता […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 9, 2015 10:36 AM
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नयी दिल्ली : लालू प्रसाद, नीतीश कुमार और कुछ दूसरे ओबीसी नेताओं की ओर से जाति आधारित जनगणना के आंकडे जारी करने की मांग का समर्थन करते हुए राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष पीएल पूनिया ने आज कहा कि इन आंकडों के सामने आने से सभी वर्गों की आबादी की सही तस्वीर का पता चल सकेगा और इस आधार पर उनकी हिस्सेदारी में बढोतरी भी संभव हो सकेगी.

कांग्रेस नेता पूनिया ने कहा, ‘‘जाति आधारित जनगणना से सभी वर्गों की वास्तविक आबादी का पता चल सकेगा। सभी वर्गों के साथ अनुसूचित जातियों के आंकडे भी स्पष्ट हो जाएंगे। फिलहाल अनुसूचित जाति को 16 फीसदी से कुछ अधिक संख्या के आधार पर 15 फीसदी आरक्षण मिलता है. दलित आबादी का यह आंकडा बहुत पहले का है, लेकिन इसके बाद दलित वर्ग की आबादी में काफी इजाफा हुआ है. नया आंकडे सामने के बाद आरक्षण को बढाया जाना संभव हो सकता है.’’ गौरतलब है कि पिछले दिनों लालू प्रसाद और नीतीश कुमार ने जाति आधारित जनगणना के आंकडों को जारी करने की मांग जोरशोर से उठाई। लालू की पार्टी ने इस मांग को लेकर बिहार बंद भी किया था.

पूनिया ने केंद्र सरकार पर दलित हितों को लेकर ‘गंभीर नहीं होने’ का आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार को पदोन्नति में आरक्षण से जुडा विधेयक लाना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘‘यह सरकार दलितों के हितों को लेकर गंभीर नहीं है. बीते 14 महीने के उसके व्यवहार से ऐसा ही लगता है. इतने महीने के बाद वह अनुसूचित जाति एवं जनजाति के विरुद्ध अत्याचार की रोकथाम संबंधी विधेयक लाई। पदोन्नति में आरक्षण की मांग बहुत महत्वपूर्ण है और हमारी मांग है कि सरकार इस पर ध्यान दे.’’

सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के उम्मीदवारों को आरक्षण की पुरजोर मांग करते हुए पूनिया ने कहा, ‘‘हमारे समय :संप्रग सरकार: यह विधेयक राज्यसभा में पारित हुआ था, लेकिन कुछ दलों के विरोध के बाद यह लोकसभा में पारित नहीं हो सका। पिछली लोकसभा का कार्यकाल खत्म होने के बाद इस विधेयक की भी मियाद खत्म हो गई. इस सरकार को अब यह विधेयक नए सिरे से लाना है, लेकिन अभी उसने इस बारे में अपना रुख तक स्पष्ट नहीं किया है.’’ अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के लोगों के लिए पदोन्नति में आरक्षण से जुडे संविधान (117वें संशोधन) विधेयक को दिसंबर, 2012 में शीतकालीन सत्र के दौरान राज्यसभा में पारित किया गया था। उस समय सपा और शिवसेना जैसे कुछ दलों ने इसका विरोध किया था और बाद में यह विधेयक लोकसभा में पारित नहीं हो पाया.

अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष ने देश में ‘दलित विरोधी घटनाओं में बढोतरी’ को लेकर भी चिंता प्रकट की और इसके लिए सख्त कानून के साथ सामाजिक जागरुकता पर भी जोर दिया. उन्होंने कहा, ‘‘हाल के महीनों में दलितों के खिलाफ घटनाएं बढी हैं. इन घटनाओं लिए सरकारें भी जिम्मेदार हैं, लेकिन इसका सबसे बडा कारण समाज की अपनी सामंतवादी सोच है. हमें इस सोच को बदलना होगा. इसके लिए सामाजिक जागरुकता जरुरी है. साथ ही कानूनी प्रतिरोध भी इसको रोकने में मददगार हो सकता है.’’

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