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संदर्भ ललितगेट व व्यापमं : क्या ध्वस्त हो जायेंगे भाजपा के क्षत्रप?

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अज्ञात भारतीय जनता पार्टी स्पष्ट बहुमत और सहयोगी दलों के समर्थन से केंद्र में तीन दशक बाद सबसे मजबूत सरकार चला रही है. बावजूद, इसके वह पिछले छह सालों के अपने सबसे कठिन दौर में है. भाजपा का एक संक्षिप्त मुश्किल भरा दौर 2009 में लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में चुनाव में मिली जबरदस्त पराजय […]

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अज्ञात
भारतीय जनता पार्टी स्पष्ट बहुमत और सहयोगी दलों के समर्थन से केंद्र में तीन दशक बाद सबसे मजबूत सरकार चला रही है. बावजूद, इसके वह पिछले छह सालों के अपने सबसे कठिन दौर में है. भाजपा का एक संक्षिप्त मुश्किल भरा दौर 2009 में लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में चुनाव में मिली जबरदस्त पराजय के बाद शुरू हुआ था. उस समय, भाजपा में आपसी कलह चरम पर था. मजबूत नेतृत्व और नेतृत्व की स्पष्टता दोनों का अभाव था. संघ प्रमुख मोहन भागवत ने उस समय प्रेस कान्फ्रेंस कर कहा था कि भाजपा राख से भी उठ खडी होगी. हुई भी. पिछले दो सालों से भाजपा के पास नरेंद्र मोदी जैसा मजबूत नेतृत्व है और भाजपा भी मजबूत है. पर, हाल में ललित मोदी प्रकरण, व्यापमं घोटाले और तथाकथित छत्तीसगढ के चावल घोटाले (जैसा की कांग्रेस का आरोप है) के बाद यह सवाल उठ गया है कि क्या भाजपा के वसुंधरा राजे, शिवराज सिंह चौहान व डॉ रमण सिंह जैसे मजबूत क्षत्रप विपक्ष के राजनीतिक हमलों से ध्वस्त हो जायेंगे?
कहां से आयी भाजपा में मजबूती और क्या सोचती है कांग्रेस?
किसी भी राजनीतिक दल में मजबूती कहां से आती है, यह एक अहम सवाल है. राष्ट्रीय राजनीतिक दलों में मजबूती राज्यों के मजबूत नेतृत्व से आती है. कांग्रेस के पतन की शुरुआत तभी हुई, जब उसकी राज्य इकाइयों के मजबूत नेता धीरे-धीरे खत्म होते गये. बिहार, उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों में कांग्रेस का पतन यहीं से शुरू हुआ, जहां आज भी उसके पास कोई स्पष्ट, मजबूत और ठोस चेहरा नहीं है. उसी, तरह भाजपा का राजनीतिक उदय राज्य इकाइयों से ही हुआ. भाजपा के पास नरेंद्र मोदी, शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे, डॉ रमन सिंह जैसे बेहद मजबूत क्षत्रप हुए, जिनकी अपने-अपने राज्य में जबरदस्त लोकप्रियता है. इनके अलावा, उसके पास दूसरी श्रेणी के भी कई क्षत्रप हैं. भाजपा की पहली श्रेणी के इन्हीं में से एक मोदी ने बाद में राष्ट्रीय नेतृत्व हासिल किया. आज भाजपा के वसुंधरा, शिवराज व डॉ रमन सिंह जैसे क्षत्रपों पर ही कांग्रेस हमलावर है. भले ही कांग्रेस को यह मौका भाजपा की गलतियों से मिला हो, लेकिन उसे यह महसूस हो रहा है कि अगर वह भाजपा के इन तीन मजबूत क्षत्रपों की निष्ठा, ईमानदारी व पारदर्शिता पर उंगली उठाकर जनता को यह अहसास करा देगी वे गलत हैं और कांग्रेस जो कर रही है वह सच है, तो भाजपा के पतन व उसके (कांग्रेस) उदय की शुरुआत हो जायेगी.
अब भाजपा के लिए आगे की राह क्या है?
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह मुंबई में गुरुवार का अपने कार्यकर्ताओं से रू-ब-रू हुए. इस दौरान पार्टी के प्रमुख नेताओं पर उठ रही उंगलियों के मद्देनजर उन्होंने कार्यकर्ताओं का मनोबल बढाया. सूत्रों के हवाले से खबर आयी कि अमित शाह ने अपने कार्यकर्ताओं से कहा कि भाजपा के अंदर बवंडर को ङोलने की ताकत है. उनका तात्पर्य था कि वसुंधरा-शिवराज सरीखे अहम नेताओं पर उठ रही उंगलियों को भाजपा ङोल लेगी. खबर यह भी आयी कि महज एक साल में बहुत सारे बदलाव नहीं हो सकते हैं और ठोस बदलाव के लिए मोदी सरकार को 10 सालों का समय चाहिए.
वसुंधरा राजे भले ही ललित मोदी के साथ अपने संबंधों को निजी व पारिवारिक बता रही हैं, लेकिन सवाल यह है कि राजनीतिक व सार्वजनिक जीवन में रहने वाले क्या ऐसा कहकर जनता के सवालों से बच सकते हैं? उसी तरह शिवराज भले ही यह दावा कर रहे हों कि वही व्यापमं घोटाले के पहले विह्सब्लोवर हैं, लेकिन जनता के मन में तो सवाल यह है कि घोटाला तो आपके ही राजपाट में हुआ और आपने उसे होने कैसे दिया? कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह तो यही कह रहे हैं. भाजपा इन अहम सवालों का जवाब भविष्य में कथनी से नहीं बल्कि करनी व नैतिकता से ही दे सकती है न. भारत की जनता को शब्दजाल में बहुत समय तक उलझाये तो नहीं ही रखा जा सकता है. इसके कई नजीर हमारे पास हैं.

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