आरटीआइ अधिनियम में संशोधन की कोई जरुरत नहीं : विजय शर्मा
नयी दिल्ली : नये मुख्य सूचना आयुक्त विजय शर्मा ने कहा है कि सूचना का अधिकार अधिनियम में संशोधन करने की कोई जरुरत नहीं है क्योंकि यह कानून बिल्कुल सही है. शर्मा ने लोक प्राधिकारों से अपील की कि वे अपनी आंतरिक मशीनरी चुस्त-दुरुस्त करें ताकि आरटीआइ याचिकाओं की कोई जरुरत नहीं हो. मुख्य सूचना […]
नयी दिल्ली : नये मुख्य सूचना आयुक्त विजय शर्मा ने कहा है कि सूचना का अधिकार अधिनियम में संशोधन करने की कोई जरुरत नहीं है क्योंकि यह कानून बिल्कुल सही है. शर्मा ने लोक प्राधिकारों से अपील की कि वे अपनी आंतरिक मशीनरी चुस्त-दुरुस्त करें ताकि आरटीआइ याचिकाओं की कोई जरुरत नहीं हो. मुख्य सूचना आयुक्त ने यह बात तब कही जब आरटीआइ अधिनियम के तहत लाने के आयोग के आदेश के बावजूद छह राजनीतिक दलों की अवहेलना की मिसाल पेश करते हुए उनसे पूछा गया कि क्या अधिनियम में कोई कमी-खामी है.
जिससे गलती करने वाले लोक प्राधिकारी छूट जाते हैं और क्या आयोग को अधिक शक्ति देने की जरुरत है. आयोग की पूर्ण पीठ ने स्वीकार किया था कि चूंकि राजनीतिक पार्टियां कोई सूचना अधिकारी नियुक्त नहीं करती हैं, पैनल उनपर कोई जुर्माना नहीं लगा सकता क्योंकि इस तरह की कार्यवाही सिर्फ केंद्रीय जनसूचना अधिकारी के खिलाफ शुरू की जा सकती है. शर्मा इस पीठ में शामिल थे. शर्मा ने पीटीआइ-भाषा के साथ एक खास मुलाकात में कहा, ‘हम यहां अधिनियम को उसके मूल रूप में लागू करने के लिए हैं. मेरा अनुभव है कि मैं ऐसा (संशोधन की जरुरत) नहीं महसूस करता. अधिनियम जैसा है वैसा ही ठीक है.’
उन्होंने कहा, ‘अभी तक आरटीआइ के उद्देश्य का सरोकार है सूचना तक पहुंच आसान बनाना सुनिश्चित करना. आज हमारे पास जो अधिनियम है वह ठीक है और अपना उद्देश्य पूरा करता है.’ शर्मा से जब पूछा गया कि राजनीतिक दलों के सीआइसी के आदेश नहीं मानने से क्या कोई गलत नजीर नहीं बनेगी क्योंकि अन्य लोक प्राधिकार भविष्य में उसके आदेश नजरअंदाज कर सकते हैं तो उन्होंने कहा कि अनेक उच्च न्यायालयों ने आयोग को एक न्यायाधिकरण करार दिया है जहां वह दोनों पक्षों को सुनता है और कानून के आधार पर अपनी राय देता है.’
मुख्य सूचना आयुक्त ने कहा कि जहां ‘नजीर’ अहम है, अलग-अलग मामलों में हालात अलग-अलग हो सकते हैं. शर्मा ने कहा कि लोक प्राधिकारियों को अपनी आंतरिक मशीनरी चुस्त-दुरुस्त करनी चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा सूचना सार्वजनिक दायरे में लाई जा सके और आरटीआइ याचिकाओं से बचा जा सके. उनसे जब उन लोक प्राधिकारियों के बारे में पूछा गया जो मंत्रियों की यात्रा खर्चे सार्वजनिक दायरे में नहीं लाते तो उन्होंने कहा कि ऐसे किसी भी लोक प्राधिकारी को ‘दंडित’ करने की जरुरत है जो आदेश को लागू नहीं करते.
आयोग के आदेशों और कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के आदेशों के बावजूद मोदी सरकार मंत्रियों के यात्रा खर्चे सार्वजनिक मंच पर नहीं रख रहे हैं. पूर्ववर्ती मनमोहन सरकार अपने मंत्रियों के यात्रा खर्चे सार्वजनिक मंच पर रखा करती थी. शर्मा ने कहा कि जब सूचना का कोई याचक किसी लोक प्राधिकारी के पास जाता है तो उसे समय-काल के अनुरुप सूचना प्रदान करने में सक्षम होना चाहिए और सूचना प्रासंगिक होनी चाहिए.