क्या अब भाजपा के आंगन में लालकृष्ण आडवाणी की नहीं है जरूरत?

नयी दिल्ली : भारतीय जनता पार्टी ने अपने नये संस्करण के सोमवार को 35 साल पूरे कर लिये. पुराने जनसंघ का जनता पार्टी में विलय और फिर अलगाव के बाद भारतीय जनता पार्टी के रूप में इस संगठन का छह अप्रैल 1980 में अवतरण हुआ था. अटल बिहारी वाजपेयी भाजपा के संस्थापक अध्यक्ष बने थे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 6, 2015 6:51 PM
नयी दिल्ली : भारतीय जनता पार्टी ने अपने नये संस्करण के सोमवार को 35 साल पूरे कर लिये. पुराने जनसंघ का जनता पार्टी में विलय और फिर अलगाव के बाद भारतीय जनता पार्टी के रूप में इस संगठन का छह अप्रैल 1980 में अवतरण हुआ था. अटल बिहारी वाजपेयी भाजपा के संस्थापक अध्यक्ष बने थे और लालकृष्ण आडवाणी पार्टी के शिल्पकार के रूप में दूसरे सबसे अहम नेता, जिन्हें राज्यसभा में विपक्ष के नेता का पद भी मिला था. पर, भाजपा ने अपने शिल्पकार लालकृष्ण आडवाणी को पार्टी के स्थापना दिवस के कार्यक्रम में औपचारिक रूप से आमंत्रित भी नहीं किया.
हालांकि इस कार्यक्रम में पार्टी के कई बडे नेता उपस्थित थे, पर आडवाणी मौजूद नहीं थे. पार्टी अध्यक्ष अमित शाह, वरिष्ठ नेता वेंकैया नायडू, थावर चंद गहलौत जैसे नेता कार्यक्रम में शामिल हुए.
उल्लेखनीय है कि तीन दिन पहले ही समाप्त हुई भाजपा की बेंगलुरु कार्यकारिणी में लालकृष्ण आडवाणी के संबोधन को लेकर दो दिन तक उहापोह की स्थिति रही. आमतौर पर उनका मार्गदर्शन संबोधन पार्टी के लिए होता है, लेकिन इस बार वह परंपरा भी टूट गयी. इसके लिए उनके स्वास्थ्य को कारण बताया गया.
हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालकृष्ण आडवाणी की अपने संबोधन में जमकर तारीफ की थी और कहा था कि उन्हीं के बताये रास्ते पर चल कर पार्टी इस मुकाम तक पहुंची है. हालांकि पूरी कार्यकारिणी वे मौन ही रहे.दरअसल, आडवाणी जब बोलते हैं तो वे अपनी ही पार्टी के नये खेवनहार के लिए बगलें झांकने की स्थिति खडी कर देते हैं, जो उन्हें असहज बना देता है. शायद इसलिए उनके मार्गदर्शन से भी पार्टी की नयी पीढी बचती है.
गौरतलब है कि आडवाणी ने पिछले आम चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने से रोकने के लिए हर संभव कोशिश की थी, लेकिन कुछ ही समय बाद उन्हें निर्णयात्मक भूमिका से बेदखल कर दिया गया. आडवाणी के साथ ही मुरली मनोहर जोशी की भी निर्णय लेने वाले मंडल से छुट्टी कर दी गई थी. बाद में सभी नेताओं को ‘मार्गदर्शक मंडल’ में डाल दिय गया, जो पार्टी को सुझाव देने का काम करते हैं, हालांकि विपक्षी पार्टियां कहती रही हैं कि वरिष्ठ नेताओं को बीजेपी ने रिटायरमेंट होम में डाल दिया है.

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