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नयी दिल्ली: दो हजार वर्षो के विफल प्रयोग से दुनिया के निराश होने का जिक्र करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने आज कहा कि भारत को समाज सेवा से शांतिपूर्ण समाज का सृजन करते हुए दुनिया के समक्ष ऐसा उदाहरण पेश करना है जो सबको संबल प्रदान करते हुए सभी को साथ लेकर चलने, सबकी खुशी और समृद्धि लिए हो. सरसंघचालक ने कहा कि ऐसे भारत के सृजन के लिए संघ से जुडे समाज सेवी संगठनों का अगले पांच साल में और अधिक विस्तार और व्यवस्थित होना आवश्यक है.
संघ के जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत लगभग 800 संगठनों के प्रतिनिधियों के यहां आयोजित ‘राष्ट्रीय सेवा संगम’ नामक तीन दिवसीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा, ‘‘पूरी दुनिया पर समग्र दृष्टि डालते हैं तो यह दो हजार वर्षो के विफल प्रयोग से निराश हो गई है और यहां शांतिपूर्ण, भाइचारे भरे समाज और सभी को साथ लेकर चलने की दृष्टि.. ऐसी दुनिया का सृजनकर्ता भारत हो, ऐसा समाज हमें बनाना है.’’ ‘राष्ट्रीय सेवा भारती’ के तहत इस संगम का आयोजन हर पांच साल पर होता है. सरसंघचालक ने ‘‘2000 साल की निराशा’’ के बारे में किसी का सीधा उल्लेख नहीं किया.
भागवत ने कहा, सेवा कार्य करते समय ‘‘हिन्दू है कि नहीं, हम ऐसी भावना नही रखते. हम मानते हैं कि जो भी दुखी है और कठिनाई में है वह सेवा का पात्र है.’’ उन्होंने आरएसएस के समाज सेवी संगठनों के नाम में संघ नाम नहीं जोडे जाने का कारण बताते हुए कहा कि क्योंकि ऐसा होने पर कुछ लोगों को हिचक हो सकती है कि इनसे जुडने पर वे ‘‘संघ के कहलाने लगेंगे.’’ इस अवसर पर समाज कार्य से जुडे विप्रो प्रमुख अजीम प्रेमजी, जीएमआर समूह के जीएम राव और एस्सेल ग्रुप के प्रमुख सुभाष चन्द्रा ने भी भागवत के मंच को साझा किया.