‘राज्यों के पास फ्रीबीज के लिए धन हैं, जजों की सैलरी-पेंशन के लिए नहीं’, सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
नयी दिल्ली : अलगाववादी नेता मसरत आलम की रिहाई पर बढ़ता विवाद कम होने का नाम नहीं ले रहा. इस मामले ने अब नयास्वरूपले लिया है. एनडीटीवी ने खुलासा किया है कि मसरत की रिहाई का फैसला पीडीपी और भाजपा की सरकार बनने से पहले लियागया था. जम्मू कश्मीर में जिस वक्त राज्यपाल शासन था उसी वक्त यह फैसला लिया गया. इस मामले में अब एक चिट्ठी सामने आयी है जिसमें यह खुलासा किया गयाहै कि राज्य के गृह सचिव ने रिहाई के लिए चिट्ठी लिखी थी.
इस नये खुलासे के बाद विरोधियों के हमले और तेज हो गये हैं. कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने टि्वट किया कि क्यों मुफ्ती मोहम्मद सईद को दोष दिया जा रहा है जबकि मसरत की रिहाई का फैसला पहले ही कर लिया गया था. मनीष तिवारी ने भी भाजपा के दोहरे रवैये पर निशाना साधते हुए कहा, भाजपा अपने बयान पर कायम नहीं रहती. अलगाववादियों से मुलाकात के बाद विदेश सचिव स्तर की वार्ता रद्द कर दी गयी, लेकिन दोबारा हुई मुलाकात पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है.
गौरतलब है कि कांग्रेस ने पहले ही आशंका जतायी थी कि मसरत की रिहाई का फैसला किसी गुप्त समझौते के तहत किया गया है. ऐसे में राज्य के गृह सचिव द्वारा लिखी चिट्ठी ने कांग्रेस की आशंका को बल दिया है. सरकार अब सिर्फ मसरत की रिहाई पर ही नहीं घिरी है, बल्कि गलतबयानी पर भी सरकार घिरती नजर आ रही है.
सूत्रों का कहना है कि राज्यपाल शासन के दौरान जम्मू कश्मीर के वरीय नौकरशाह सुरेश कुमार ने जम्मू के डीसी को अलगाववादी मसरत अली पर नये सिरे से चार्ज लगाने को कहा था, लेकिन इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. हालांकि इन खबरों के बीच यह भी खबर है कि जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने गृह मंत्री राजनाथ सिंह को आश्वस्त किया है कि अब केंद्र से सहमति के बैगर किसी कैदी को नहीं छोड़ा जायेगा.