21.1 C
Ranchi
Saturday, February 8, 2025 | 12:36 pm
21.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

देश के नाम राष्ट्रपति का संबोधनः समावेशी विकास के माध्यम से गरीबी दूर करने का संकल्प लेना होगा

Advertisement

नयी दिल्लीः राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम संदेश दिया. उन्होंने अपने संदेश में गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर देशवासियों को बधाई दी. उन्होंने विशेष तौर पर सशस्त्र सेनाओं, अर्ध-सैनिक बलों तथा आंतरिक सुरक्षा बलों के सदस्यों को बधाई दी. राष्ट्रपति ने अपने अभिभाषण में कहा, छब्बीस […]

Audio Book

ऑडियो सुनें

नयी दिल्लीः राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम संदेश दिया. उन्होंने अपने संदेश में गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर देशवासियों को बधाई दी. उन्होंने विशेष तौर पर सशस्त्र सेनाओं, अर्ध-सैनिक बलों तथा आंतरिक सुरक्षा बलों के सदस्यों को बधाई दी. राष्ट्रपति ने अपने अभिभाषण में कहा, छब्बीस जनवरी का दिन हमारे देश की स्मृति में एक चिरस्थाई स्थान रखता है क्योंकि यही वह दिन है जब आधुनिक भारत का जन्म हुआ था. महात्मा गांधी के नैतिक तथा राजनीतिक नेतृत्व के अधीन राष्ट्रीय कांग्रेस ने अंग्रेजी राज से पूरी स्वतंत्रता की मांग करते हुए दिसंबर, 1929 में पूर्ण स्वराज का संकल्प पारित किया था.

गांधी को याद किया
26 जनवरी, 1930 को, गांधी जी ने पूरे देश में स्वतंत्रता दिवस के रूप में राष्ट्रव्यापी समारोहों का आयोजन किया था. उसी दिन से, देश तब तक हर वर्ष इस दिन स्वतंत्रता संघर्ष को जारी रखने की शपथ लेता रहा जब तक हमने इसे प्राप्त नहीं कर लिया. ठीक बीस वर्ष बाद, 1950 में, हमने आधुनिकता के अपने घोषणापत्र, संविधान को अंगीकार किया. यह विडंबना थी कि गांधी जी दो वर्ष पूर्व शहीद हो चुके थे परंतु आधुनिक विश्व के सामने भारत को आदर्श बनाने वाले संविधान के ढांचे की रचना उनके ही दर्शन पर की गई थी. इसका सार चार सिद्धांतों पर आधारित है: लोकतंत्र; धर्म की स्वतंत्रता; लैंगिक समानता; तथा गरीबी के जाल में फंसे लोगों का आर्थिक उत्थान. इन्हें संवैधानिक दायित्व बना दिया गया था. देश के शासकों के लिए गांधी जी का मंत्र सरल और शक्तिशाली था, ‘‘जब भी आप किसी शंका में हों… तब उस सबसे गरीब और सबसे निर्बल व्यक्ति का चेहरा याद करें जिसे आपने देखा हो और फिर खुद से पूछें… क्या इससे भूखे और आध्यात्मिक क्षुधा से पीड़ित लाखों लोगों के लिए स्वराज आएगा’’. समावेशी विकास के माध्यम से गरीबी मिटाने का हमारा संकल्प उस दिशा में एक कदम होना चाहिए.
गठबंधन की राजनीति से मुक्ति
पिछला वर्ष कई तरह से विशिष्ट रहा है. खासकर इसलिए, कि तीन दशकों के बाद जनता ने स्थाई सरकार के लिए, एक अकेले दल को बहुमत देते हुए, सत्ता में लाने के लिए मतदान किया है और इस प्रक्रिया में देश के शासन को गठबंधन की राजनीति की मजबूरियों से मुक्त किया है. इन चुनावों के परिणामों ने चुनी हुई सरकार को, नीतियों के निर्माण तथा इन नीतियों के कार्यान्वयन के लिए कानून बनाकर जनता के प्रति अपनी वचनबद्धता को पूरा करने का जनादेश दिया है. मतदाता ने अपना कार्य पूरा कर दिया है; अब यह चुने हुए लोगों का दायित्व है कि वह इस भरोसे का सम्मान करें. यह मत एक स्वच्छ, कुशल, कारगर, लैंगिक संवेदनायुक्त, पारदर्शी, जवाबदेह तथा नागरिक अनुकूल शासन के लिए था. प्यारे देशवासियो, एक सक्रिय विधायिका के बिना शासन संभव नहीं है. विधायिका जनता की इच्छा को प्रतिबिंबित करती है. यह ऐसा मंच है जहां शिष्टतापूर्ण संवाद का उपयोग करते हुए, प्रगतिशील कानून के द्वारा जनता की आकांक्षाओं को साकार करने के लिए सुपुर्दगी-तंत्र की रचना की जानी चाहिए. इसके लिए भागीदारों के बीच मतभेदों को दूर करने तथा बनाए जाने वाले कानूनों पर आम सहमति लाने की जरूरत होती है. बिना चर्चा कानून बनाने से संसद की कानून निर्माण की भूमिका को धक्का पहुंचता है. इससे, जनता द्वारा व्यक्त विश्वास टूटता है. यह न तो लोकतंत्र के लिए अच्छा है और न ही इन कानूनों से संबंधित नीतियों के लिए अच्छा है. प्यारे देशवासियो, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, रवीन्द्रनाथ टैगोर, सुब्रह्मण्य भारती और अन्य बहुत से लोगों के व्यवसाय तथा नजरिए भले ही अलग-अलग रहे हों, परंतु उन सभी ने केवल राष्ट्र भक्ति की ही भाषा बोली. हम अपनी आजादी के लिए राष्ट्रीयता के इन महान योद्धाओं के ऋणी हैं.
वीरों को नमन
हम उन भूले-बिसरे वीरों को भी नमन करते हैं जिन्होंने भारत माता की आजादी के लिए अपनी कुर्बानी दी. परंतु मुझे यह देखकर दु:ख होता है कि जब महिलाओं की हिफाजत की बात होती है तब उसके अपने बच्चों द्वारा ही भारत माता का सम्मान नहीं किया जाता. बलात्कार, हत्या, सड़कों पर छेड़छाड़, अपहरण तथा दहेज हत्याओं जैसे अत्याचारों ने महिलाओं के मन में अपने घरों में भी भय पैदा कर दिया है. रवीन्द्रनाथ टैगोर महिलाओं को न केवल घर में प्रकाश करने वाली देवियां मानते थे वरन् उन्हें स्वयं आत्मा का प्रकाश मानते थे. माता-पिता, शिक्षकों और नेताओं के रूप में, हमसे कहां चूक हो गई है कि हमारे बच्चे सभ्य व्यवहार तथा महिलाओं के प्रति सम्मान के सिद्धांतों को भूल गए हैं. हमने बहुत से कानून बनाए हैं, परंतु जैसा कि बेंजामिन फ्रैंकलिन ने एक बार कहा था, ‘‘न्याय का उद्देश्य तब तक पूर्ण नहीं होगा जब तक कि वे लोग भी उतने ही क्षुब्ध नहीं महसूस करते जो भुक्तभोगी नहीं हैं जितना कि वे, जो भुक्तभोगी हैं.’’
महिलाओं के हिफाजत के लिए शपथ लें भारतीय
हर एक भारतीय को किसी भी प्रकार की हिंसा से महिलाओं की हिफाजत करने की शपथ लेनी चाहिए. केवल ऐसा ही देश वैश्विक शक्ति बन सकता है जो अपनी महिलाओं का सम्मान करे तथा उन्हें सशक्त बनाए. प्यारे देशवासियो,भारतीय संविधान लोकतंत्र की पवित्र पुस्तक है. यह ऐसे भारत के सामाजिक-आर्थिक बदलाव का पथप्रदर्शक है, जिसने प्राचीन काल से ही बहुलता का सम्मान किया है, सहनशीलता का पक्ष लिया है तथा विभिन्न समुदायों के बीच सद्भाव को बढ़ावा दिया है. परंतु इन मूल्यों की हिफाजत अत्यधिक सावधानी और मुस्तैदी से करने की जरूरत है. लोकतंत्र में निहित स्वतंत्रता कभी-कभी उन्मादपूर्ण प्रतिस्पर्धा के रूप में एक ऐसा नया कष्टप्रद परिणाम सामने ले आती है जो हमारी परंपरागत प्रकृति के विरुद्ध है. वाणी की हिंसा चोट पहुंचाती है और लोगों के दिलों को घायल करती है. गांधी जी ने कहा था कि धर्म एकता की ताकत है; हम इसे टकराव का कारण नहीं बना सकते.
एकता ताकत है, प्रभुता कमजोरी.
प्यारे देशवासियो भारत की सौम्य शक्ति के बारे में बहुत कुछ कहा जाता है. परंतु इस तरह के अंतरराष्ट्रीय परिवेश में, जहां बहुत से देश धर्म आधारित हिंसा के दलदल में फंसते जा रहे हैं, भारत की सौम्य शक्ति का सबसे शक्तिशाली उदाहरण धर्म एवं राज-व्यवस्था के बीच संबंधों की हमारी परिभाषा में निहित है. हमने सदैव धार्मिक समानता पर अपना भरोसा जताया है, जहां हर धर्म कानून के सामने बराबर है तथा प्रत्येक संस्कृति दूसरे में मिलकर एक सकारात्मक गतिशीलता की रचना करती है. भारत की प्रज्ञा हमें सिखाती है : एकता ताकत है, प्रभुता कमजोरी है.
आतंकवाद
विभिन्न देशों के बीच टकराव ने सीमाओं को खूनी हदों में बदल दिया है तथा आतंकवाद को बुराई का उद्योग बना दिया है. आतंकवाद तथा हिंसा हमारी सीमाओं से घुसपैठ कर रहे हैं. यद्यपि शांति, अहिंसा तथा अच्छे पड़ोसी की भावना हमारी विदेश नीति के बुनियादी तत्त्व होने चाहिए, परंतु हम ऐसे शत्रुओं की ओर से गाफिल रहने का जोखिम नहीं उठा सकते जो समृद्ध और समतापूर्ण भारत की ओर हमारी प्रगति में बाधा पहुंचाने के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं. हमारे पास, अपनी जनता के विरुद्ध लड़ाई के सूत्रधारों को हराने के लिए ताकत, विश्वास तथा दृढ़ निश्चय मौजूद है. सीमारेखा पर युद्ध विराम का बार-बार उल्लंघन तथा आतंकवादी आक्रमणों का, कारगर कूटनीति तथा अभेद्य सुरक्षा प्रणाली के माध्यम से समेकित जवाब दिया जाना चाहिए. विश्व को आतंकवाद के इस अभिशाप से लड़ने में भारत का साथ देना चाहिए.
आर्थिक स्थिति
आर्थिक प्रगति लोकतंत्र की परीक्षा भी है. वर्ष 2015 उम्मीदों का वर्ष है. आर्थिक संकेतक बहुत आशाजनक हैं. बाह्य सेक्टर की मजबूती, राजकोषीय सुदृढ़ीकरण की दिशा में प्रगति, कीमतों के स्तर में कमी, विनिर्माण क्षेत्र में वापसी के शुरुआती संकेत तथा पिछले वर्ष कृषि उत्पादन में कीर्तिमान, हमारी अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत हैं. 2014-15 की पहली दोनों तिमाहियों में, पांच प्रतिशत से अधिक की विकास दर की प्राप्ति, 7-8 प्रतिशत की उच्च विकास दर की दिशा में शुरुआती बदलाव के स्वस्थ संकेत हैं. किसी भी समाज की सफलता को, इसके मूल्यों, संस्थाओं तथा शासन के उपादानों के बने रहने तथा उनके मजबूत होने, दोनों से मापा जाता है. हमारी राष्ट्रीय गाथा को इसके अतीत के सिद्धांतों और आधुनिक उपलब्धियों से आकार मिला है तथा यह आज अपनी प्रच्छन्न शक्ति को जाग्रत कर भविष्य को अपना बनाने के लिए तत्पर है.
शैक्षिक संस्था की सर्वोच्च गुणवत्ता के लिए प्रयास करें
हमारी राष्ट्रीय महत्त्वाकांक्षा, भारतीय जनता के जीवन स्तर को तेजी से ऊंचा उठाना तथा ज्ञान, देशभक्ति, करुणा, ईमानदारी तथा कर्तव्य बोध से संपन्न पीढ़ियों को तैयार करना है. थॉमस जैफरसन ने कहा था, ‘‘सारी जनता को शिक्षित तथा सूचना संपन्न बनाएं… केवल वे ही हमारी आजादी की रक्षा के लिए हमारा पक्का भरोसा हैं’’. हमें अपनी शैक्षिक संस्थाओं में सर्वोच्च गुणवत्ता के लिए प्रयास करने चाहिए ताकि हम निकट भविष्य में 21वीं सदी के ज्ञान क्षेत्र के अग्रणियों में अपना स्थान बना सकें. मैं, विशेषकर, यह आग्रह करना चाहूंगा कि हम पुस्तकों और पढ़ने की संस्कृति पर विशेष जोर दें, जो ज्ञान को कक्षाओं से आगे ले जाती है तथा कल्पनाशीलता को तात्कालिकता और उपयोगितावाद के दबाव से आजाद करती है. हमें, आपस में एक दूसरे से जुड़ी हुई असंख्य विचारधाराओं से संपन्न सृजनात्मक देश बनना चाहिए. हमारे युवाओं को ऐसे ब्रह्मांड का, प्रौद्योगिकी तथा संचार में पारंगतता की दिशा में नेतृत्व करना चाहिए, जहां आकाश सीमारहित पुस्तकालय बन चुका है तथा आपकी हथेली में मौजूद कंप्यूटर में, महत्त्वपूर्ण अवसर आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं. 21वीं सदी भारत की मुट्ठी में है.
बुराइयों को खुद से दूर रखें
प्यारे देशवासियो, यदि हम हानिकारक आदतों और सामाजिक बुराइयों से खुद को निरंतर स्वच्छ करने की अपनी योग्यता का उपयोग नहीं करते तो भविष्य हमारे सामने मौजूद होते हुए भी हमारी पकड़ से दूर होगा. पिछली सदी के दौरान, इनमें से बहुत सी समाप्त हो चुकी हैं, कुछ निष्प्रभावी हो चुकी हैं परंतु बहुत सी अभी मौजूद हैं. हम, इस वर्ष दक्षिण अफ्रीका से गांधी जी की वापसी की सदी मना रहे हैं. हम कभी भी महात्मा जी से सीख लेना नहीं छोड़ेंगे. 1915 में उन्होंने जो सबसे पहला कार्य किया था वह था अपनी आंखें खुली रखना तथा अपना मुंह बंद रखना.
इस उदाहरण को अपनाना अच्छा होगा. जबकि हम, 1915 की बात कर रहे हैं, जो कि उचित ही है, तब हमें संभवत: 1901 में, जिस वर्ष वह अपनी पहली छुट्टी में घर लौटे थे, गांधी जी ने जो कार्य किया था उस पर एक नजर डालनी चाहिए. कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन उस वर्ष कलकत्ता में आयोजित हुआ था जो उस समय ब्रिटिश भारत की राजधानी था. वह एक बैठक के लिए रिपोन कॉलेज गए थे. उन्होंने देखा कि बैठक में भाग लेने वाले लोगों ने सारे स्थान को गंदा कर दिया है. यह देखकर स्तब्ध हुए गांधी जी ने सफाईकर्मी के आने का इंतजार नहीं किया. उन्होंने झाड़ू उठाई तथा उस स्थान की सफाई कर डाली. 1901 में उनके उदाहरण का किसी ने अनुकरण नहीं किया था. आइए, एक सौ चौदह वर्ष बाद हम उनके उदाहरण का अनुकरण करें तथा एक महान पिता के सुयोग्य बच्चे बनें.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें