मंगल मिशन: चीन को पछाड़कर आज आगे निकलेगा भारत
नयी दिल्लीः सफल मंगल अभियान से भारत ने पूरी दुनिया में एक अलग मुकाम हासिल कर लिया है. इतना ही नहीं भारत ने सबसे कम कीमत पर यह सफलता हासिल की है. इस पूरे अभियान में लगभग 450 करोड़ रुपये खर्च हुए. जबकि अमेरिका में अंतरिक्ष पर बनी एक फिल्म ग्रेविटी में इससे ज्यादा पैसे […]
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नयी दिल्लीः सफल मंगल अभियान से भारत ने पूरी दुनिया में एक अलग मुकाम हासिल कर लिया है. इतना ही नहीं भारत ने सबसे कम कीमत पर यह सफलता हासिल की है. इस पूरे अभियान में लगभग 450 करोड़ रुपये खर्च हुए. जबकि अमेरिका में अंतरिक्ष पर बनी एक फिल्म ग्रेविटी में इससे ज्यादा पैसे खर्च हुए थे. अमेरिका ने मंगलअभियान में भारत से 10 गुणा ज्यादा पैसा खर्च किया था. अमेरिका, रुस व जापान के बाद भारत मंगलअभियान में सफलता पाने वाला चौथा देश बन गया और हमने अपने प्रतियोगी चीन को पीछे छोड़ दिया है.
भारत को यह गौरव दिलाने में कई वैज्ञानिकों का अहम योगदान है. मंगल अभियान में भारत ने एक ही बार में सफलता हासिल कर ली. 67 करोड़ किलोमीटर का यह सफर इतना आसान नहीं था. इस सफर को तय करने में कई दिग्गजों ने पूरी मेहनत की है. इससे पहले चीन का पहला मंगल अभियान, यंगहाउ-1, 2011 में असफल रहा. 1998 में जापान का पहला मंगल अभियान ईधन खत्म हो जाने के कारण असफल हुआ था. वर्ष 1960 से लेकर अभी तक दुनिया भर में मंगल पर 51 अभियान भेजे गए और इनकी सफलता की दर 24 प्रतिशत रही है. इसलिए भारत के इस अभियान पर ज्यादा दबाव रहा. आइये हम जानते है उन वैज्ञानिकों के विषय में जिन्होंने इस अभियान को सफल बनाया.
इसरो के अध्यक्ष डॉ. के. राधाकृष्णन
जब क्रिकेट की टीम जीत का परचम लहराती है, तो इसका श्रेय कप्तान को जाता है. ठीक इसी तरह मंगल अभियान की सफलता का बड़ा हिस्सा इसरो के अघ्यक्ष डॉ.के. राधाकृष्णन को जाता है. राधाकृष्णन कहते हैं, ‘हम किसी से मुक़ाबला नहीं कर रहे हैं, बल्कि अपनी क्षमता को उच्च स्तर पर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं.’ अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, उपयोग और अंतरिक्ष कार्यक्रम प्रबंधन में 40 वर्षों से भी अधिक विस्तृत उनका कैरियर कई उपलब्धियों से भरा पड़ा है. डॉ. के. राधाकृष्णन का जन्म 29 अगस्त 1949 को इरिन्जालाकुडा, केरल में हुआ. 1970 में केरल विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की, आईआईएम बेंगलूर में पीजीडीएम पूरा किया 1976 और आईआईटी, खड़गपुर से अपने "भारतीय भू-प्रेक्षण प्रणाली के लिए कुछ सामरिक नीतियाँ" शीर्षक वाले शोध प्रबंध पर डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की. 1971 में इसरो के विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र, तिरुवनंतपुरम में एक इंजीनियर के रूप में इन्होंने अपने कॅरियर की शुरूआत की और आज इसरो के अध्यक्ष पद पर हैं.
सुब्बा अरुणन प्रोजेक्ट डायरेक्टर
मंगल अभियान में सुब्बा अरुणन की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही है. 24 मिनट का वक्त जिस पर मंगलअभियान की सफलता टिकी थी. उस पर विशेष नजर रखे हुए थे. सुब्बा अरुणन का जन्म तमिलनाडु के तिरुनेलवेली में हुआ. इन्होंने अपने करियर की शुरुआत विक्रम साराभाई स्पेश सेंटर से 1984 में शुरु किया. इन्हें 2013 में मंगल अभियान के लिए प्रोजेक्ट डायरेक्टर की भूमिका दी गयी. यह एक मेकेनिकल इंजीनियर हैं.
ए. एस किरण कुमार, स्पेस एप्लीकेशन सेंटर
मंगल अभियान की सफलता में अलूर सिलेन किरण कुमार की महत्वपूर्ण भूमिका है. उन्होंने भौतिकी विज्ञान में नेशनल कॉलेज बेंगलूर से 1971 में डिग्री हासिल की. इसके बाद उन्होंने 1973 इलेक्ट्रोनिक में मास्टर डिग्री हासिल की और 1975 में एम टेक डिग्री हासिल की. 1975 में ही उन्होंने इसरो के साथ काम करना शुरु किया.
वी एडीमूर्ति अध्यक्ष आईआईएसटी
वी एडीमूर्ति इंडियन इस्टच्यूट ऑफ स्पेश साइंट एंड टेक्नोलॉजी के अध्यक्ष है. उन्हें रॉकेट टेक्नोलॉजी और स्पेश गतिविधियों के रिसर्च के लिए भी जाना जाता है. इनका जन्म आंध्र पदेश के राजमुंदरी में हुआ. पीएचडी डिग्री हासिल करने के बाद इन्होंने इंडियन स्पेश रिसर्च से अपने करियर की शुरुआत की.
इन वैज्ञानिकों के साथ कई वैज्ञानिकों की टीम दिन रात काम कर रही थी. आज उन सारे वैज्ञानिकों पर भारत को गर्व है जिन्होंने इस अभियान को सफल बनाने में मेहनत की.