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कल्याण के शपथ ग्रहण में जयश्री राम के नारे, कभी मोदी-सा था जलवा

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कल तक भाजपा के नेता रहे और आज राजस्थान के राज्यपाल पद की शपथ लेने वालेकल्याण सिंह का जलवा भाजपा में कभी नरेंद्र मोदी जैसा हुआ करता था.गुरुवार को जयपुर में राज्यपाल पद की शपथ ग्रहण के दौरान एक बाद फिरलोगों को कल्याण सिंह के पुराने तेवर की याद तब ताजा हो गयी, जब समर्थकोंने […]

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कल तक भाजपा के नेता रहे और आज राजस्थान के राज्यपाल पद की शपथ लेने वालेकल्याण सिंह का जलवा भाजपा में कभी नरेंद्र मोदी जैसा हुआ करता था.गुरुवार को जयपुर में राज्यपाल पद की शपथ ग्रहण के दौरान एक बाद फिरलोगों को कल्याण सिंह के पुराने तेवर की याद तब ताजा हो गयी, जब समर्थकोंने उनके लिए जय श्री राम के नारे लगाये. 1990 के दशक में मोदी की तरह हीवे भाजपा के ऐसे ताकतवर क्षत्रप थे जिसकी धमक उत्तरप्रदेश का मुख्यमंत्रीरहते दिल्ली में सुनायी पड़ती.

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1990 के दशक में केंद्र कीअटल-आडवाणी-जोशी तिकड़ी को चुनौती देते हुए कल्याण सिंह तेजी से राजनीतिमें उभर रहे थे. उस समय राजनीतिक विेषकों का एक धड़ा उन्हें अटल बिहारीवाजपेयी के बाद भाजपा के अगले सर्वमान्य नेता के रूप में देख रहा था.उनके अगले पीएम बनने की भी भविष्यवाणी की जा रही थी. कल्याण सिंह काराजनीतिक कद का ग्राफ राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान तेजी से बढ़ा था.कहां हुई कल्याण से चूककल्याण सिंह का बढ़ता कद अटल बिहारी वाजपेयी से उनके मतभेद के बाद तेजीसे घटता गया.

कल्याण पर वाजपेयी खेमे की ओर से आरोप लगे कि उन्होंने लखनऊमें अपनी ही पार्टी के शीर्ष नेता को हरवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी,ताकि वे प्रधानमंत्री नहीं बन सकें. वहीं, गुजरात दंगों के बाद मोदी नेचतुराई से वाजपेयी की नाराजगी पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. बल्कि आज भीवे उनकी मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हैं और कहते हैं कि वाजपेयी अगर एकबार और देश के पीएम बने होते तो देश की आज सूरत ही दूसरी होती.

तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष से मतभेद

राजनाथ सिंह के उत्तरप्रदेश भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहते दोनों नेताओंकी मतभेद की कहानी आम थी.संगठन में राजनाथ सिंह ने पकड़ बनायी औरउत्तरप्रदेश में पार्टी के सबसे बड़े नेता होने के बाद भी कल्याण सिंह कीराजनाथ नहीं चलने देते. राजनाथ के प्रदेश अध्यक्ष रहते ही 1998 में यूपीमें भाजपा ने सर्वाधिक 58 सीटें जीती थी. राजनाथ की जीत का रिकार्डप्रदेश के प्रभारी महासचिव के रूप में अमित शाह ने इस बार 71 सीटें जीतकर तोड़ी. उत्तरप्रदेश भाजपा के दो बड़े नेता कलराज मिश्र व लालजी टंडनसे उनके मतभेद और मुख्यमंत्री रहते उनकी बातों को अहमियत नहीं देने से भीउनके खिलाफ दूसरे नेताओं की लामबंदी तेज हुई.

कुसुम राय विवाद

अपनी पार्टी बनाना व सपा में जानाकल्याण सिंह के तब पार्षद रही कुसुम राय से रिश्ते को लेकर राजनीतिकहलकों में तरह-तरह की चर्चाएं होती रहती थीं. उस कारण भाजपा की काफीकिरकिरी हो रही थी. कुसुम ने कल्याण को सीढ़ी बना कर राज्यसभा की सदस्यताले ली. वाजपेयी से बैर पालने वाले कल्याण सिंह को अंतत: भाजपा छोड़नीपड़ी और उन्होंने राष्ट्रीय क्रांति बनायी जो बुरी तरह विफल रही.

बाद मेंवे सपा में गये. वहां भी उनके राजनीतिक कद को नुकसान ही हुआ.राजनाथ की जीत का रिकार्ड प्रदेश के प्रभारी महासचिव के रूप में अमित शाह नेइस बार 71 सीटें जीत कर तोड़ी. उत्तरप्रदेश भाजपा के दो बड़े नेता कलराजमिश्र व लालजी टंडन से उनके मतभेद और मुख्यमंत्री रहते उनकी बातों कोअहमियत नहीं देने से भी उनके खिलाफ दूसरे नेताओं की लामबंदी तेज हुई.कुसुम राय विवाद, अपनी पार्टी बनाना व सपा में जानाकल्याण सिंह के तब पार्षद रही कुसुम राय से रिश्ते को लेकर राजनीतिकहलकों में तरह-तरह की चर्चाएं होती रहती थीं. उस कारण भाजपा की काफीकिरकिरी हो रही थी.

कुसुम ने कल्याण को सीढ़ी बना कर राज्यसभा की सदस्यताले ली. वाजपेयी से बैर पालने वाले कल्याण सिंह को अंतत: भाजपा छोड़नीपड़ी और उन्होंने राष्ट्रीय क्रांति बनायी जो बुरी तरह विफल रही. बाद मेंवे सपा में गये. वहां भी उनके राजनीतिक कद को नुकसान ही हुआ.

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