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क्या आरएसएस व भाजपा के एजेंडे अलग-अलग हैं ?

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राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को कहा था कि हिन्दुस्तान एक हिन्दू राष्ट्र है. हिन्दुत्व हमारे देश की पहचान है और यह हिन्दू धर्म अन्य धर्मों को अपने में समाहित कर सकता है. उनके इस बयान की कांग्रेस समेत विपक्षी पार्टियों ने कडी आलोचना की थी. दिग्विजय सिंह ने तो […]

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राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को कहा था कि हिन्दुस्तान एक हिन्दू राष्ट्र है. हिन्दुत्व हमारे देश की पहचान है और यह हिन्दू धर्म अन्य धर्मों को अपने में समाहित कर सकता है. उनके इस बयान की कांग्रेस समेत विपक्षी पार्टियों ने कडी आलोचना की थी. दिग्विजय सिंह ने तो इस बयान पर उन्हें हिटलर तक की संज्ञा दे डाली. यही नहीं खुद भाजपा ने भी उनके इस बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त की लेकिन मोटे-मोटे तौर पर इसपर कुछ नहीं कहा गया.

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गोवा के वरिष्ठ भाजपा नेता माइकल लोबो ने केवल इतना कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत की यह टिप्पणी उनका निजी मत है कि भारत एक हिन्दू राष्ट्र है. उन्होने कहा कि केंद्र इसका समर्थन नहीं करता. तो क्या भाजपा और आरएसएस का एजेंडा अलग-अलग है? क्या भाजपा आरएसएस के एजेंडे पर नहीं चल सकती या फिर क्या आरएसएस भाजपा के कुछ एजेंडों से अहसमत है ? या फिर कोई अलग ही राजनीतिक समीकरण है?ऐसे कई सवाल उभर रहे हैं.

आरएसएस हिंदूत्व की बात करता है

मोहन भागवत के बयान से भी स्पष्ट है कि वह भारत को एक हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते हैं.उन्होंने कहा है कि हिंदूत्व ही भारत की पहचान है. उन्होंने यह भी कहा कि हिन्दू धर्म अन्य धर्मों को अपने में समाहित कर सकता है.

भाजपा विकास की बात करती है

भाजपा के एजेंडे में विकास को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है. यह भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने के एजेंडे में काम करता है. प्रधानमंत्री ने हमेशा अपने भाषण में विकास की बात कही है. गुजरात में भी जब वे मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने विकास कार्यों के लिए धर्म को आडे आने नहीं दिया. जब गुजरात में रोड का निर्माण किया जा रहा था तो उसने रास्ते में आ रहे कई मंदिरों को भी विस्थापित करवाया था. हालांकि भाजपा ने कभी हिंदूत्व का विरोध नहीं किया है किन्तु वह विकास के साथ हिंदूत्व की बात करता है.

भाजपा के अंदर हिंदूवादी नेता हाशिए पर

भाजपा में जिन नेताओं ने भी हिंदूत्व के मुद्दे को लेकर अधिक टीका-टिप्पणी की है आज वे हाशिए पर चले गए हैं. राजनीतिक मंच पर उनकी मौजूदगी व अहमियत तुलनात्मक रुप से कम रही है. विनय कटियार, कल्याण सिंह आदि कुछ नेता है जो कट्टर हिंदूवादी विचारधारा के लिए जाने जाते हैं. वहीं जो विकास की बात करते हैं आज वे राजनीतिक चेहरा बने हुए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उदाहरण है. उन्होंने विकास की बात कर ना केवल अपने गुजरात क्षेत्र में बल्कि पूरे देश में अपना लोहा मनवाया.

दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू

हालांकि कुछ मुद्दों को लेकर दोनों के एजेंडों में कुछ फर्क दिखता है लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि बावजूद इसके दोनों एक हीं सिक्के के दो पहलू हैं. जहां नरेंद्र मोदी विकास के जरिए हिंदुत्व की बात करती है वहीं मोहन भागवत हिंदुत्व के जरिए विकास की बात करती है. दोनों के तरीके, राजनीतिक मंच पर अपनी बातों के प्रस्तुत करने का तरीका भले हीं अलग है लेकिन दोनों का उद्देश्य एक हैं. और यह खेल शायद साधारण जनमानस के समझ से परे होगा कि यह दोनों की रणनीति का एक हिस्सा है. भले दोनों के भाषणों में अंतर दिखता है लेकिन दोनों एक ही उद्देश्य के लिए काम कर रहें हैं. संघ और भाजपा में कभी कोई दूरी हकीकत में नहीं रही है. अर्थात दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. लेकिन जनता इस भाजपा-आरएसएस रुपी सिक्के को कब तक अपने साथ ढोते हैं यह देखने की बात है.

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