जनसंघ की आर्थिक नीति के रचनाकार थे पंडित दीनदयाल उपाध्याय
उत्तर प्रदेश के मथुरा में नगला चंद्रभान गांव में 25 सितंबर, 1916 को एक बच्चे का जन्म हुआ. ज्योतिषी ने उसकी कुंडली देखकर कहा कि आगे चलकर यह बालक महान विद्वान, विचारक, अग्रणी राजनेता और नि:स्वार्थ सेवाव्रती होगा. यह बालक विवाह नहीं करेगा. इस बालक ने हाई स्कूल की शिक्षा राजस्थान के सीकर से प्राप्त […]
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उत्तर प्रदेश के मथुरा में नगला चंद्रभान गांव में 25 सितंबर, 1916 को एक बच्चे का जन्म हुआ. ज्योतिषी ने उसकी कुंडली देखकर कहा कि आगे चलकर यह बालक महान विद्वान, विचारक, अग्रणी राजनेता और नि:स्वार्थ सेवाव्रती होगा. यह बालक विवाह नहीं करेगा. इस बालक ने हाई स्कूल की शिक्षा राजस्थान के सीकर से प्राप्त की. बालक की प्रतिभा से प्रभावित सीकर के तत्कालीन नरेश ने उसे एक स्वर्ण पदक, किताबों के लिए 250 रुपये और 10 रुपये की मासिक छात्रवृत्ति प्रदान की. यह बालक कोई और नहीं, दीनदयाल उपाध्याय थे, जिन्होंने अंत्योदय का नारा दिया. जिन्होंने कहा कि अगर हम एकता चाहते हैं, तो हमें भारतीय राष्ट्रवाद को समझना होगा, जो हिंदू राष्ट्रवाद है और भारतीय संस्कृति हिंदू संस्कृति है. पंडित दीनदयाल को जनसंघ की आर्थिक नीति का रचनाकार बताया जाता है. उनका विचार था कि आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य सामान्य मानव का सुख है.
आगे चलकर महान चिंतक पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए देश को ‘एकात्म मानव दर्शन’ जैसी प्रगतिशील श्रेष्ठ विचारधारा दी. उन्होंने अपनी पुस्तक ‘एकात्म मानववाद’ (इंटीगरल ह्यूमेनिज्म) में साम्यवाद और पूंजीवाद, दोनों की समालोचना की गयी है. एकात्म मानववाद में मानव जाति की मूलभूत आवश्यकताओं और सृजित कानूनों के अनुरूप राजनीतिक कार्रवाई हेतु एक वैकल्पिक संदर्भ दिया गया है. दीनदयाल उपाध्याय का मानना है कि हिंदू कोई धर्म या संप्रदाय नहीं, बल्कि भारत की राष्ट्रीय संस्कृति हैं.
दीनदयाल उपाध्याय को बचपन में ही गहरा आघात लगा, जब 1934 में बीमारी के कारण उनके भाई की असमय मृत्यु हो गयी. दीनदयाल उपाध्याय ने विशेष योग्यता के साथ इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद बीए की शिक्षा के लिए कानपुर आ गये. यहां सनातन धर्म कॉलेज में दाखिला लिया. अपने मित्र बलवंत महाशब्दे की प्रेरणा से सन 1937 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में शामिल हो गये. उसी वर्ष उन्होंने बीए की परीक्षा भी प्रथम श्रेणी में पास की. फिर एमए की शिक्षा के लिए आगरा चले गये.
आगरा में संघ की सेवा के दौरान उनका परिचय नानाजी देशमुख और भाउ जुगड़े से हुआ. इसी समय दीनदयाल जी की चचेरी बहन रमा देवी बीमार पड़ीं और इलाज के लिए आगरा आयीं, जहां उनका निधन हो गया. दीनदयाल उपाध्याय के लिए यह दूसरा बड़ा आघात था. बहन की मौत के सदमे की वजह से वह एमए की परीक्षा भी नहीं दे पाये. फलस्वरूप उनकी छात्रवृत्ति बंद हो गयी.
जनसंघ से संबंध
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में जनसंघ की स्थापना की. डॉ मुखर्जी ने दीनदयाल उपाध्याय को प्रथम महासचिव नियुक्त किया. वे दिसंबर, 1967 तक जनसंघ के महासचिव बने रहे. डॉ मुखर्जी बड़े गर्व से कहते थे, ‘यदि मेरे पास दो दीनदयाल हों, तो मैं भारत का राजनीतिक चेहरा बदल सकता हूं’. 1953 में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के असमय निधन से पूरे संगठन की जिम्मेदारी दीनदयाल उपाध्याय के युवा कंधों पर आ गयी. 14वें वार्षिक अधिवेशन में दीनदयाल उपाध्याय को दिसंबर, 1967 में कालीकट में जनसंघ का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया.
पत्रकार और लेखक भी थे दीनदयाल
दीनदयाल उपाध्याय की पत्रकारिता तब प्रकट हुई, जब उन्होंने लखनऊ से प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका ‘राष्ट्रधर्म’ में वर्ष 1940 के दशक में कार्य किया. अपने आरएसएस के कार्यकाल के दौरान उन्होंने एक साप्ताहिक समाचार पत्र ‘पांचजन्य’ और एक दैनिक समाचार पत्र ‘स्वदेश’ शुरू किया था. उन्होंने नाटक ‘चंद्रगुप्त मौर्य’ और हिंदी में शंकराचार्य की जीवनी लिखी. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ केबी हेडगेवार की जीवनी का दीनदयाल ने मराठी से हिंदी में अनुवाद किया. उनकी अन्य प्रसिद्ध साहित्यिक कृतियों में ‘सम्राट चंद्रगुप्त’, ‘जगतगुरू शंकराचार्य’, ‘अखंड भारत क्यों है’, ‘राष्ट्र जीवन की समस्याएं’, ‘राष्ट्र चिंतन’ और ‘राष्ट्र जीवन की दिशा’ शामिल हैं.