अंतरिक्ष से आयी आवाज: ”सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा”, तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा शहर और गांव
आज यानी 20 जुलाई से ठीक 50 साल पहले नील आर्मस्ट्रॉन्ग और बज एल्ड्रिन एक रोमांचक यात्रा पर रवाना हुए थे. उस वक्त किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस काम के लिए ये दोनों चांद पर जा रहे थे, उसमें उन्हें सफलता हाथ लगेगी. जब भी चांद पर जाने की बात […]
आज यानी 20 जुलाई से ठीक 50 साल पहले नील आर्मस्ट्रॉन्ग और बज एल्ड्रिन एक रोमांचक यात्रा पर रवाना हुए थे. उस वक्त किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस काम के लिए ये दोनों चांद पर जा रहे थे, उसमें उन्हें सफलता हाथ लगेगी. जब भी चांद पर जाने की बात होती है तो एक भारतीय की छवि सबके मन में चित्रित हो जाती है. उस शख्स का नाम राकेश शर्मा है.
2 अप्रैल 1984 की बात है जब दो अन्य सोवियत अंतरिक्षयात्रियों के साथ सोयूज टी-11 में राकेश शर्मा को लॉन्च किया गया. उन्होंने आठ दिन अंतरिक्ष में बिताये. जब राकेश शर्मा अंतरिक्ष में पहुंचे तो भारतीयों को विश्वास नहीं हो रहा था. वे अंतरिक्ष मे जाने वाले भारत के पहले जबकि विश्व के 138वें व्यक्ति थे. दो अन्य अंतरिक्ष यान के कमांडरों के नाम वाई. वी मालिशेव और फ्लाइट इंजिनियर जी.एम स्ट्रकोलॉफ थे जिनके साथ राकेश शर्मा ने उड़ान भरी थी. इस मिशन में राकेश शर्मा भारत का प्रतिनिधित्व करते नजर आये थे.
बताया जाता है कि राकेश शर्मा ने वहां 33 प्रयोग किये. उन्होंने वहां भारहीनता से पैदा होने वाले असर से निपटने के लिए अभ्यास भी करने का काम किया. तीनों ही अंतरिक्ष यात्रियों ने स्पेस स्टेशन से मॉस्को और नयी दिल्ली के एक साझा सम्मेलन को भी संबोधित किया जिसके साक्षी भारतवासी बने.
बचपन का सपना
13 जनवरी 1949 को पटियाला में जन्म लेने वाले राकेश शर्मा बचपन से ही पायलट बनने का सपना देखा करते थे. अपने सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने सैनिक शिक्षा हैदराबाद से ग्रहण किया. इसके बाद वे भारतीय वायुसेना में बतौर टेस्ट पायलट भी चुने गये. इसी दौरान उन्हें भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री बनने का अवसर प्राप्त हुआ. 20 सितंबर 1982 की बात है जब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ‘ इसरो’ के माध्यम से इन्हें अंतरिक्ष एजेंसी इंटरकॉस्मोस के अभियान के लिए चयनित किया गया. पटियाला के एक हिंदू गौड़ ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने वाले राकेश ने हैदराबाद की उस्मानिया यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया. राकेश शर्मा 1966 में एनडीए की परीक्षा पास कर इंडियन एयर फोर्स कैडेट बने. उन्होंने 1970 में भारतीय वायु सेना को ज्वाइन कर लिया. महज 21 साल की उम्र में ही भारतीय वायु सेना में शामिल होने के बाद राकेश ने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा.
सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा
एक वाकया यह भी है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राकेश शर्मा से एक सवाल किया जिसका उन्होंने बहुत ही उम्दा जवाब दिया. इंदिरा गांधी ने जब उनसे पूछा कि अंतरिक्ष से भारत कैसा नजर आता है. तो राकेश शर्मा ने कहा कि सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा… धरती से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का यह सवाल और अंतरिक्ष में रूसी अंतरिक्ष यान से भारत के अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा के इस जवाब ने हर हिन्दुस्तानी का दिल जीत लिया. उस वक्त टीवी का जमाना नहीं था इसलिए इस एतिहासिक पल को लोग आकाशवाणी के माध्यम से सुन रहे थे. उस वक्त इस वाकये को सुनने वाले बताते हैं कि जब यह बातचीत रेडियो पर चल रही थी तो सब बड़े ही शांत भाव से सुन रहे थे और भारतीय होने पर गर्व महसूस कर रहे थे और तालियां बजा रहे थे. कुछ की आंखों में खुशी के आंसू भी आ गये.
इस तरह वे आये चर्चा में
पाकिस्तान से युद्ध के बाद राकेश शर्मा चर्चा में आये. साल था 1971 जब भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान राकेश शर्मा ने अपने विमान "मिग एअर क्रॉफ्ट" से महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की. भारतीयों ने उनकी योग्यता की जमकर तारीफ की. शर्मा ने यह करके दिखा दिया था कि कठिन परिस्थितियों में भी एक भारतीय किस तरह शानदार काम करके दिखा सकता है.
अशोक चक्र से सम्मानित
भारत सरकार ने राकेश शर्मा को अशोक चक्र से सम्मानित किया. विंग कमांडर के पद पर सेवा-निवृत्त होने पर राकेश शर्मा ने हिन्दुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड में परीक्षण विमानचालक के रूप में काम किया. नवंबर 2006 में इन्होंने भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन की एक समिति में हिस्सा लिया जिसने एक नये भारतीय अन्तरिक्ष उड़ान कार्यक्रम को स्वीकृति प्रदान की.
राकेश शर्मा आजकल क्या कर रहे हैं?
राकेश शर्मा वर्तमान में आईआईटी, आईआईएम में घूमते हैं और मोटिवेशनल लेक्चर देते हैं. उन्होंने जो भी अनुभव पाया है उसे वे लोगों के साथ साझा करते हैं. उनका मानना है कि अंतरिक्ष के बारे में हमें बहुत कम ज्ञान है. हम हर दिन नई चीज़ों की तलाश करते हैं.