मिशन अपोलो-11 की 50वीं वर्षगांठ आज, इसी दिन चांद पर कदम रखने वाले पहले शख्स बने थे नील आर्मस्ट्रांग
नयी दिल्ली: कवियों, लेखको और प्रेमियों ने चांद की खूबसूरती पर न जाने कई अफसाने लिखे. बचपन में दादी-नानी की कहानियों से लेकर किशोर होने तक प्रेयसी की तुलना चांद से करने तक चांद हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा रहा. इसके साथ कई यादें जुड़ी हैं और आज भी कायम है. इन कल्पना से भरी […]
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नयी दिल्ली: कवियों, लेखको और प्रेमियों ने चांद की खूबसूरती पर न जाने कई अफसाने लिखे. बचपन में दादी-नानी की कहानियों से लेकर किशोर होने तक प्रेयसी की तुलना चांद से करने तक चांद हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा रहा. इसके साथ कई यादें जुड़ी हैं और आज भी कायम है. इन कल्पना से भरी पुरानी यादों के बीच हकीकत का एक बड़ा हिस्सा भी है जब इंसान बहुत करीब से चांद से रूबरू हुआ. तारीख थी 20 जुलाई 1969 और इंसान थे नील आर्मस्ट्रांग. चांद को छूकर आने वाले पहले इंसान.
आज ही वो ऐतिहासिक दिन, 20 जुलाई है, जब इंसान के कदम चांद पर पड़े थे. इस अवसर पर गूगल ने नील आर्मस्ट्रांग को समर्पित डूडल बनाया है जिसमें नील को चांद पर पहला कदम रखते हुये दिखाया है. इस पर क्लिक करते ही एक वीडियो प्ले होता है जिसमें मिशन अपोलो 11 के पूरे सफर को दिखाया गया है.
दो महाशक्तियों के बीच अंतरिक्ष में वर्चस्व की होड़
वो 70 का दशक था, विश्व की दो महाशक्तियां सोवियत संघ और संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के बीच शीत युद्ध का दौर था. दोनों के बीच दुनिया में राजनैतिक, आर्थिक और प्राकृतिक संसाधनों पर वर्चस्व की होड़ मची हुई थी. ये होड़ अंतरिक्ष तक में वर्चस्व स्थापित करने तक पहुंच गयी जब रूस ने अपना अंतरिक्ष अभियान शुरू किया. विश्व के अधिकांश हिस्सों में ताकत का प्रदर्शन करने वाले अमेरिका को आखिर ये बर्दाश्त क्यों होता. इस समय अमेरिका के राष्ट्रपति थे रिचर्ड निक्सन जिन्हें अपनी राष्ट्रीयता की श्रेष्ठता को लेकर जिद्दी माना जाता था.
मिशन अपोलो-11 के जरिये चांद तक पहुंचे नील आर्मस्ट्रांग
अमेरिका ने फैसला किया कि अंतरिक्ष अभियान के अंतर्गत चांद पर इंसान को भेजने का मिशन लांच किया जाये. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई. मिशन का नाम दिया गया अपोलो-11. मिशन के लिए चुना गया अमेरिकी नौसेना में कार्यरत नील आर्मस्ट्रांग, बज एल्ड्रिन और माइकल कोलिंस को. नील आर्मस्ट्रांग अमेरिका के वेपकॉनेटा स्थित ओहायो के रहने वाले थे. पांच साल की उम्र से ही उनमें हवाई यात्रा को लेकर रूचि पैदा हो गयी थी. उन्होंने 16 साल की उम्र में ही पायलट बनने का लाइसेंस हासिल कर लिया था. कहा जाता है कि उनके पास 100 से ज्यादा प्रकार के विमानों को उड़ाने का अनुभव था.
इनमें से नील आर्मस्ट्रांग और बज एल्ड्रिन को चांद पर उतरना था और माइकल कोलिंस के हिस्से जिम्मेदारी थी माड्यूल पायलट की. इनका काम दोनों अंतरिक्ष यात्रियों को निर्देशित करना भी था.
16जुलाई साल 1969 को रवाना हुआ था अंतरिक्ष यान
मिशन के तहत 16 जुलाई 1969को जॉन एफ कैनेडी स्पेस सेंटर लांच कॉम्पलेक्स 39-A से सुबह 8 बजकर 32 मिनट पर यान को रवाना किया गया. मिशन का उद्देश्य था अंतरिक्ष यात्रियों को चांद पर ले जाना और फिर उन्हें सुरक्षित वापस ले आना. यान सुरक्षित वहां पहुंचा. नील आर्मस्ट्रांग सबसे पहले चांद पर उतरे और उनके पीछे उतरे बज एल्ड्रिन. दोनों ने वहां तकरीबन ढाई घंटे तक चहलकदमी की. ये सारा नजारा अद्भुत और ऐतिहासिक था.
अपोलो-11 मिशन के फर्जी होने की भी हैं कहानियां
हालांकि बाद में आयी कुछ मीडिया रिपोर्टों में पूरे मिशन का दूसरा पक्ष भी रखा गया. कहा जाता है कि असल में ऐसा कोई मिशन लांच ही नहीं हुआ था. चूंकि इस दौरान शीत युद्ध में सोवितय संघ और अमेरिका के बीच वर्चस्व की होड़ थी. सोवियत संघ अपना अंतरिक्ष मिशन लांच कर चुका था और इसके प्रत्युतर में अमेरिका ने एक फर्जी मिशन लांच किया. अंतरिक्ष और चांद जैसी कृत्रिम माहौल तैयार कर तस्वीरें खींची और उसे दुनिया के सामने अपनी उपलब्धि बताकर प्रचारित किया.
एक अमेरिकी बैज्ञानिक बिल केसिंग की किताब ‘वी नेवर वैंट टू द मून: अमेरिकाज थर्टी बिलियन डॉलर स्विंडल’ में दावा किया गया कि अमेरिका कभी चांद पर गया ही नहीं. इसके लिए मिशन के दौरान खींची गयी तस्वीरों को आधार बनाया गया. कहा गया कि जिस तस्वीर में नील आर्मस्ट्रांग अमेरिकी झंडा लहराते हुये दिख रहे हैं उसमें झंडा लहराता हुआ दिख रहा है. इसके अलावा ये भी दावा किया गया कि चांद पर नील के कदमों का निशान भी फर्जी है. उनका कहना था कि कैसे संभव है कि अंतरिक्ष में इतने सालों तक किसी के पैरोंं का निशान रह जाये. चूंकि बिल केसिंग नासा में काम कर चुके थे इसलिये उनकी बात को सच माना गया. कई सारे अमेरिकी आज भी भरोसा करते हैं कि अमेरिका का ये मिशन फर्जी था.
हालांकि कई सारे अंतरिक्ष विज्ञानी बिल की बातों से इत्तेफाक नहीं रखते. उन्होंने उनकी बातों को झुठलाते हुये तर्क दिया कि चांद के वातावरण में वायुमंडल है ही नहीं, इसलिए झंडे का हिलना स्वाभाविक नहीं था. कहा गया था कि तस्वीर में तारे भी नहीं नजर आ रहे. इसके पीछे वैज्ञानिकों का तर्क ये था चंद्रमा सुरज की रोशनी को रिफ्लेक्ट करता है और ये तेज प्रकाश तारों की चमक को फीका कर देती है इसलिये तस्वीर में तारों की चमक नहीं दिखाई पड़ रही है.
बाद में मिशन के दावों को सच करने के लिए स्पेसशिप के लैंडिग साइट्स, चंद्रमा माड्यूल के अवशेष और मिट्टी पर छोड़ गये पैरों के निशान को सबूत के तौर पर पेश किया गया. बातें कई हैं लेकिन दुनिया मानती है कि चंद्रमा तक पहुंचने का पहला ख्वाब देखने वाला देश अमेरिका था और चंद्रमा पर अपना कदम रखने वाले पहले व्यक्ति नील आर्मस्ट्रांग. आने वाली पीढियां भी इसी गाथा को दोहरायेगी.