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आक्रामकता के लिए जाने जाते हैं नारायण राणे

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महाराष्‍ट्र सरकार में उद्योग मंत्री के पद पर रहे नारायण राणे ने आज मुख्‍यमंत्री को अपना इस्‍तीफा सौंप दिया. इसके साथ ही राजनीतिक हलकों में कांग्रेस के हाथ से महाराष्‍ट्र की बागडोर भी छीन जाने की चर्चा है. राणे पार्टी में एक कद्दावर नेता हैं. राणे पिछले कुछ दिनों से मुख्‍यमंत्री पृथ्‍वीराज चव्‍हान की नेतृत्‍व […]

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महाराष्‍ट्र सरकार में उद्योग मंत्री के पद पर रहे नारायण राणे ने आज मुख्‍यमंत्री को अपना इस्‍तीफा सौंप दिया. इसके साथ ही राजनीतिक हलकों में कांग्रेस के हाथ से महाराष्‍ट्र की बागडोर भी छीन जाने की चर्चा है. राणे पार्टी में एक कद्दावर नेता हैं. राणे पिछले कुछ दिनों से मुख्‍यमंत्री पृथ्‍वीराज चव्‍हान की नेतृत्‍व क्षमता पर सवाल उठाते हुए पार्टी आला कमान से नेतृत्‍व में परिवर्तन करने की मांग कर रहे थे. राणे को मनाने की मुख्‍यमंत्री की हर कोशिश उस समय बेकार साबित हुई जब राणे ने चव्‍हान से मिलकर उन्‍हें अपना इस्‍तीफा सौंप दिया.

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शिवसेना में थे तब करते थे कांग्रेस पर हमले

नारायण राणे शिवसेना से कांग्रेस में आये हैं. राणे शुरू से ही काफी अक्रामक रहे हैं. जब वे शिवसेना में थे तक कांग्रेस पर जमकर हमले किया करते थे. उनके आक्रामक तेवर ने ही उन्‍हें एक बेबाक और दबंग छवि वाले नेता के रूप में पहचान दिलायी है. अब सवाल यह है कि पहले पार्टी के बाहर से राणे कांग्रेस पर हमले किया करते थे, लेकिन अब तो पार्टी में रहकर भी उन्‍होंने नेतृत्‍व पर सवाल उठाने शुरू कर दिये हैं. ऐसे में कांग्रेस उनको कितना संभाल पायेगी. महाराष्‍ट्र की राजनीति में अभी किसी भी दल में राणे के कद का कोई नेता नजर नहीं आता. अपनी ही पार्टी के मुख्‍यमंत्री से असंतुष्‍ट राणे ने लाख समझाने पर भी इस्‍तीफा देकर यह साबित किया है कि वह आज भी अपने निर्णय को मजबूती से कहीं भी रख सकते हैं.

राणे ने क्‍यों छोडा था शिवसेना

शिवसेना के संस्‍थापक राजा साहेब ठाकरे से नारायण राणे की कुछ खास नहीं बनती थी. इसके बावजूद भी अपने बेबाक अंदाज, निडरता और अक्रामक अंदाज के कारण राणे को पार्टी में काफी सम्‍मान प्राप्‍त था. ऐसे में राणे कुछ बडबोले भी हो गये थे. विपक्षी पार्टियों पर लगातार उनके हमले होते ही रहते थे. लेकिन धृतराष्‍ट्र की तरह पुत्रप्रेम में फंसे राज ठाकरे को अपने पुत्र उद्धव ठाकरे में ही शिवसेना का सही उत्‍तराधिकारी नजर आता था. शिवसेना ठाकरे परिवार की पारिवारिक पार्टी और जागीर के रूप में जानी जाती थी. इसमें राणे एक कांटा साबित हो सकते थे. ऐसे में बाल ठाकरे और राणे में मौन विरोध होने लगे. जिसके परिणामस्‍वरुप राणे ने 3 जुलाई 2005 को शिवसेना छोड दी और कांगेस में शामिल हो गये.

राणे को लेकर कांग्रेस में भी हुआ विवाद

2005 महाराष्‍ट्र कांग्रेस में शामिल होने के बाद नारायण राणे को राजस्‍व मंत्री बना दिया गया. यह एक बडा पद था, जो किसी भी नये सदस्‍य को देना चुनौतिपूर्ण था. फिर भी कांग्रेस ने राणे के कद को देखते हुए उन्‍हें यह सम्‍मान दिया. राणे ने कोंकण क्षेत्र के अपने माल्वन सीट पर कांग्रेस की टिकट पर फिर से चुनाव की मांग की और शिवसेना की भारी टक्कर और आयोजित अभियान के बावजूद वे 50 हजार से भी अधिक मत से जीते. उन्होंने महाराष्ट्र सरकार में बिक्री कर विभाग के साथ भी काम किया है. 6 दिसंबर 2008 को उन्हें पार्टी के बारे में प्रतिकूल टिप्पणियां पारित करने के लिए कांग्रेस से निलंबित कर दिया गया था. 19 फरवरी, 2009 को पार्टी की मुखिया सोनिया गांधी को माफीनामा पत्र देने के बाद पार्टी द्वारा उनके निलंबन को रद्द किया गया.

गोपीनाथ मुण्‍डे दे सकते थे टक्‍कर

भाजपा के गोपीनाथ मुण्‍डे मोदी सरकार में ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री पद की शपथ लेने के कुछ दिनों बाद की एक कार दुर्घटना में चल बसे. मुण्‍डे को राणे के समान ही दबंग और अक्रामक नेता कहा जाता था. नारायण राणे को टक्‍कर देने की हैसियत भी मुण्‍डे की ही थी. लेकिन अब गोपीनाथ मुण्‍डे की मृत्‍यु के पश्‍चात राणे के सामने उनके टक्‍कर लेने वाला कोई नहीं रहा. कांग्रेस में शामिल होने के बाद राणे बाल ठाकरे और उनके बेटे उद्धव ठाकरे पर भी बराबर हमले करते रहे. ऐसे में बाल ठाकरे तो राणे को कुछ हद तक जवाब दे पाते थे, लेकिन उद्धव ठाकरे राणे के सामने टिक नहीं पाते हैं. अब अपने ही सीएम पृथ्‍वीराज का विरोध कर राणे हीरो बन गये है.

कहीं मुख्‍यमंत्री की चाहत तो नहीं

नारायण राणे 1999 में महाराष्‍ट्र के मुख्‍यमंत्री रह चुके हैं. इसके बाद केन्‍द्र में भी राणे मंत्री पद पर रहें. अब चुकि कांग्रेस को 2014 लोकसभा चुनाव में देशभर में करारी हार का सामना करना पडा है. राणे ने आला कमान को महाराष्‍ट्र में पार्टी का नेतृत्‍व बदलने की सलाह दी और कहा कि इस नेतृत्‍व में पार्टी का महाराष्‍ट्र विधानसभा चुनाव में भी करारी हार का समाना करना पडेगा. कांग्रेस ने जब राणे की मांग नहीं मानी तक राणे ने इस्‍तीफा दे दिया. हालांकि राणे ने पार्टी से इस्‍तीफा नहीं दिया है, लेकिन इस प्रकार राणे के रूठे रहने से पार्टी को आगामी चुनाव में मुसीबतों का सामना करना पड सकता है. तो ही इस्‍तीफा देने की पीछे राणे की इच्‍छा मुख्‍यमंत्री बनने की तो नहीं है.

एक अखबार के संपादक हैं राणे

नारायण राणे एक पत्रकार भी हैं और राजस्व मंत्री के पद पर रहते हुए नारायण राणे ने ‘प्रहार’ के नाम से अपने एक अखबार की शुरूआत 8 अक्‍तूबर 2008 में की. राणे इस अखबार के चीफ बनें. ‘प्रहार’, एक मराठी अखबार है जिसका प्रकाशन राणे प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड से होता है. नारायण राणे का यह अखबार उनके विचारों को प्रकाशित प्रसारित करने का एक सटीक मंच है. इस अखबार के संपादक वयोवृद्ध पत्रकार अलहड गोडबोले हैं.

समाचार पत्र के बारे में बोलते हुए राणे ने कहा कि अखबार सार्वजनिक जागरूकता और क्रांति के लिए एक शक्तिशाली हथियार होता है और वे इसे ही महाराष्ट्र के विकास के लिए उपयोग करना चाहते थे.

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