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मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा – किसी भी चीज पर बोलने और चुप रहने का एक समय होता है

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नयी दिल्ली : मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने निर्वाचन आयोग के आचार संहिता आदेशों में कोई असहमति दर्ज कराने की चुनाव आयुक्त अशोक लवासा की मांग से जुड़े विवाद पर बुधवार को अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा कि किसी भी चीज पर बोलने और उस पर चुप रहने का एक समय होता है. उन्होंने […]

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नयी दिल्ली : मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने निर्वाचन आयोग के आचार संहिता आदेशों में कोई असहमति दर्ज कराने की चुनाव आयुक्त अशोक लवासा की मांग से जुड़े विवाद पर बुधवार को अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा कि किसी भी चीज पर बोलने और उस पर चुप रहने का एक समय होता है.

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उन्होंने संकेत दिया कि इस मुद्दे को लोकसभा चुनाव के बाद उठाया जा सकता था. अरोड़ा ने चुनाव आचार संहिता उल्लंघन की शिकायतों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को दी गयी ‘क्लीन चिट’ का भी बचाव करते हुए कहा कि फैसले गुण-दोष और तथ्यों के आधार पर लिये जाते हैं. मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) ने कहा, वह किसी की नैतिकता पर फैसला लेने वाले कौन होते हैं, कम से कम अशोक लवासा जैसे वरिष्ठ व्यक्ति तो नहीं. अरोड़ा ने कहा, भले ही उनका कुछ शक शुबहा या भावनाएं रही हों, आखिरकार हममें से कोई भी खुद को झूठ नहीं बोल सकता. उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग के सभी सदस्य हू-बहू एक दूसरे जैसे नहीं हो सकते. यह पूछे जाने पर कि क्या लवासा की असहमति से जुड़े विवाद को चुनाव के दौरान टाला जा सकता था, अरोड़ा ने कहा, मैंने विवाद शुरू नहीं किया. मैंने कहा था कि चुप रहना हमेशा मुश्किल होता है, लेकिन गलत समय पर विवाद पैदा करने की बजाय चुनाव प्रक्रिया पर नजर रखना कहीं अधिक जरूरी था. मैंने यही कहा था और मैं इस पर कायम हूं.

उन्होंने कहा कि वह यह भी कहते आ रहे हैं कि चुनाव आयोग के तीनों सदस्य एक दूसरे की तरह हू्-बहू नहीं हो सकते. उन्होंने कहा कि चाहे यह मौजूदा चुनाव आयोग हो या पहले का, लोग एक दूसरे की ‘फोटो कॉपी’ नहीं हैं. आयोग को अपने कानूनी सलाहकार एसके मेंदीरत्ता से मिली कानूनी राय का जिक्र करते हुए अरोड़ा ने कहा कि चुनाव आचार संहिता उल्लंघन की शिकायतें अर्द्ध न्यायिक मामलों की श्रेणी में नहीं आती हैं. उन्होंने कहा, यह देश का कानून है. पार्टियों के चुनाव चिह्न से जुड़े मामले और राष्ट्रपति एवं राज्यपाल से मिले संदर्भ अर्द्ध न्यायिक होते हैं, जहां दोनों पक्षों का प्रतिनिधित्व वकीलों द्वारा किया जाता है. अरोड़ा ने कहा कि तीनों लोगों सीईसी और दो चुनाव आयुक्तों की राय हमेशा ही फाइलों में दर्ज की जाती है. उन्होंने कहा, जब हम फैसले को औपचारिक तौर पर बताते हैं, चाहे यह 2:1 से बहुमत का फैसला हो या सर्वसम्मति से, हम उस (आदेश) पर नहीं लिखते हैं.

संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) भी बहु सदस्यीय संस्था है. जब वह (यूपीएससी) किसी उम्मीदवार को पास या फेल करती है, तो वह सिर्फ नतीजे के बारे में सूचना देती है, लेकिन इसका उल्लेख कभी नहीं करती कि किस सदस्य ने क्या लिखा है. गौरतलब है कि चुनाव प्रचार के दौरान मोदी और शाह के भाषणों से जुड़ी शिकायतों पर उन्हें दी गयी चुनाव आयोग की सिलसिलेवार ‘क्लीन चिट’ पर लवासा ने असहमति जतायी थी. प्रधानमंत्री और शाह से जुड़े मामलों में पूर्वाग्रह के साथ उनके पक्ष में फैसले देने के विपक्षी दलों सहित कुछ हलकों के आरोपों पर अरोड़ा ने कहा, यदि क्लीन चिट दी गयी तो यह गुण दोष और तथ्यों के आधार पर दी गयी. मुझे इस पर और कुछ नहीं कहना. चुनाव आयोग के आदेशेां में अपनी असहमति दर्ज कराने की लवासा की मांग नहीं माने जाने पर उन्होंने (लवासा ने) चुनाव आचार संहिता उल्लंघन से जुड़े मामलों से खुद को अलग कर लिया था.

मोदी और शाह से जुड़ी चुनाव आचार संहिता उल्लंघन की शिकायतों के निपटारे में चुनाव के धीमी गति से काम करने के विपक्ष के आरोपों और इस विषय में उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप के बारे में अरोड़ा ने कहा कि शीर्ष अदालत ने कुछ प्रतिकूल टिप्पणी की थीं. उन्होंने कहा कि लेकिन जब आयोग ने शिकायतों पर फैसला लेना शुरू कर दिया तब शीर्ष अदालत ने इस मुद्दे पर और जोर नहीं दिया.

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