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तिरुवनंतपुरम में त्रिकोणीय मुकाबला, हैट्रिक बनाने की शशि थरूर की चुनौती

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तिरुवनंतपुरम : केरल की तिरुवनंतपुरम लोकसभा सीट पर इस बार त्रिकोणात्मक मुकाबले के आसार हैं. यह सेट कांग्रेस, भाजपा और राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी के लिए, तीनों के लिए खास है. कांग्रेस के शशि थरूर यहां से इस बार भी उम्मीदवार हैं. वह यहां के सीटिंग एमपी हैं और लगातार दो बार यहां से कांग्रेस […]

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तिरुवनंतपुरम : केरल की तिरुवनंतपुरम लोकसभा सीट पर इस बार त्रिकोणात्मक मुकाबले के आसार हैं. यह सेट कांग्रेस, भाजपा और राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी के लिए, तीनों के लिए खास है.

कांग्रेस के शशि थरूर यहां से इस बार भी उम्मीदवार हैं. वह यहां के सीटिंग एमपी हैं और लगातार दो बार यहां से कांग्रेस के टिकट पर जीत कर लोकसभा पहुंचे हैं.
उनकी चिंता तीसरी बार यहां से जीतने की है. वहीं भाजपा ने पिछले दो चुनावों में वोट शेयर के गैप को बहुत अधिक कम करने में कामयाबी पायी है. लिहाजा, इस बार वह इसे निर्णायक रूप देने में लगी है. सत्तारूढ़ पार्टी की प्रतिष्ठा तो ऐसे भी इस सीट को लेकर दांव पर है.
प्रदेश की सत्तारूढ़ पार्टी लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ), विपक्षी यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) और भाजपा के बीच इस सीट पर मुकाबला कठिन माना जा रहा है. यूडीएफ का नेतृत्व कांग्रेस कर रही है. शशि थरूर तीसरी बार उसके उम्मीदवार है.
2014 में उनकी जीत का अंतर करीब सात गुना घट गया था. लिहाजा, यह सीट भाजपा के लिए दक्षिण में उम्मीद जगाती है. केरल के सबसे दक्षिणी छोर पर स्थित तिरुवनंतपुरम भौगोलिक रूप से अरब सागर तट से लेकर पश्चिमी घाट के ढलान तक फैला है.
इस सीट कोकोई पार्टी अपना गढ़ नहीं बता सकती. यहां कांग्रेस व सीपीआइ प्रत्याशी कई दफा जीते हैं. सीपीएम के बाद सीपीआई एलडीएफ की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है. थरूर की यह सीट बचा कर यूडीएफ प्रदेश की सियासत में अपनी मजबूत स्थिति दर्शाना चाहता है. केरल में राहुल के उतरने के बाद उसके ​िलए यह धारणा बनाना आैर जरूरी है.
चुनौतियों से घिरे सांसद थरूर
इस सीट पर सांसद शशि थरूर के सामने भाजपा के दिग्गज नेता कुम्मनम राजशेखरन हैं. वहीं, सीपीआइ ने अपने विधायक सी दिवाकरन को उतारा है. बीते चुनाव में प्रदर्शनों को देखते हुए विशेषज्ञ इस सीट पर कोई भविष्यवाणी करने से बच रहे हैं.
थरूर 2009 में 99 हजार वोटों से जीते तो 2014 में यह अंतर सिर्फ 15 हजार वोट का रह गया था. भाजपा के ओ राजगोपाल ने उन्हें कड़ी टक्कर दी थी. फिर भी थरूर मानते हैं कि क्षेत्र में बीते 10 वर्ष में कराये कार्यों की वजह से वे अपना प्रदर्शन सुधार सकेंगे.
भाजपा को सबरीमला से उम्मीद
दक्षिण भारत में जिन सीटों को जीतने की उम्मीद भाजपा रख सकती है, उनमें तिरुवनंतपुरम प्रमुख है. यहां उसे सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर अपने रुख की वजह से जनसमर्थन मिलने की उम्मीद है. वहीं, मोदी सरकार में हुए विकास कार्यों को भी भरपूर प्रचारित कर रही है.
मिजोरम के राज्यपाल का पद छोड़कर चुनाव में उतारे गये भाजपा प्रत्याशी राजशेखरन की छवि साफ मानी जाती है. उनकी क्षेत्र में अच्छी पहचान है. इसे आरएसएस की रणनीति माना जा रहा है. आरएसएस अपने संगठन के बल पर उनके लिए व्यापक जनसमर्थन जुटाने में लगा है.
एलडीएफ के प्रत्याशी सीपीआइ नेता सी दिवाकरन को अपने क्षेत्र में ट्रेड यूनियन लीडर के तौर पर व्यापक पहचान मिली हुई है. पिछले चुनाव में सीपीआइ के डॉ अब्राहम तीसरे नंबर पर रहे थे. दिवाकरन कहते हैं, थरूर लोगों की अपेक्षाओं पर खरा न उतरने वाले नेता हैं. इसलिए मेरी जीत तय है. सबरीमला मामले में भाजपा और यूडीएफ दोनों को नुकसान होगा.
भाजपा को अपने रुख की वजह से और यूडीएफ को सुप्रीम कोर्ट का निर्णय लागू करने में दिखाई जिद की वजह से, जिसने आस्तिकों की भावना के विरुद्ध सभी उम्र की महिलाओं को सबरीमला मंदिर में प्रवेश करने दिया, वे मानते हैं कि विजयन सरकार ने अच्छा काम किया है.
महिला मतदाता ज्यादा
तिरुवनंतपुरम में बड़ी संख्या निरपेक्ष रहने वाले मतदाताओं की है. वे इस चुनाव में परिणाम प्रभावित कर सकते हैं. यहां नायर वोट भाजपा के पक्ष में माना जा रहा है. इस समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाली नायर सर्विस सोसाइटी (एनएसएस) ने उसे समर्थन देने की घोषणा की थी, जो आस्तिकों के हितों का संरक्षण करेगी.
भाजपा ने एनएसएस के अनुरूप ही सबरीमला मुद्दे पर अपना रुख बनाया। सीट पर कुल 13.34 लाख मतदाता है, जिनमें 6.90 लाख महिलाएं हैं. यानी महिला मतदाताओं की संख्या अधिक है.
कई दिग्गज इस सीट से आजमा चुके हैं किस्मत
वीके कृष्णा मेनन : 1970 में निर्दलीय सांसद. इन्हें वाम का समर्थन था.
एमएन गोविंदनन नायर : 1971 में सीपीआइ से जीते.
के करुणाकरन : 1998 में कांग्रेस से सांसद बने.
पीके वासुदेवन नायर : 2004 में केरल सांसद बने. वह पूर्व सीएम थे.
गोविंदनन नायर : 1980 में सांसद बने.
ओएनवी कुरुप : ज्ञानपीठ पुरस्कृत प्राप्त लेखक को पराजय भी मिली.

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