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सरोगेसी विधेयक को लोकसभा की मंजूरी, किराये की कोख के कारोबार पर लगेगी रोक

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नयी दिल्ली : विभिन्न मुद्दों पर कांग्रेस सहित कुछ विपक्षी दलों के सदस्यों के हंगामे के बीच लोकसभा ने बुधवार को सरोगेसी (विनियमन) विधेयक को मंजूरी दे दी. इसमें देश में वाणिज्यिक उद्देशयों से जुड़ी किराये की कोख (सरोगेसी) पर रोक लगाने, सरोगेसी पद्धति का दुरुपयोग रोकने के साथ नि:संतान दंपतियों को संतान का सुख […]

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नयी दिल्ली : विभिन्न मुद्दों पर कांग्रेस सहित कुछ विपक्षी दलों के सदस्यों के हंगामे के बीच लोकसभा ने बुधवार को सरोगेसी (विनियमन) विधेयक को मंजूरी दे दी. इसमें देश में वाणिज्यिक उद्देशयों से जुड़ी किराये की कोख (सरोगेसी) पर रोक लगाने, सरोगेसी पद्धति का दुरुपयोग रोकने के साथ नि:संतान दंपतियों को संतान का सुख दिलाना सुनिश्चित करने का प्रस्ताव किया गया है.

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हंगामे के बीच स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री जेपी नड्डा ने विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि यह एक ऐतिहासिक विधेयक है और इसे ‘वाणिज्यिक सरोगेसी’ पर रोक लगाने और परिवारों में नि:संतान दंपतियों की सुविधा को ध्यान में रखने के लिए लाया गया है. उन्होंने कहा कि इस विधेयक में एनआरआई दंपतियों को भी शामिल किया गया है, हालांकि इसमें विदेशी नागरिकों के लिए प्रावधान नहीं है. मंत्री ने कहा कि समाज के सभी वर्गों और सभी राजनीतिक दलों की यह राय रही है कि ‘कॉमर्शियल सरोगेसी’ पर रोग लगनी चाहिए. नड्डा ने कहा कि देश भर में ऐसे बहुत सारे क्लीनिक चल रहे हैं जो कॉमर्शियल सरोगेसी का हब बन गये हैं और अब इस विधेयक के पारित होने के बाद इस पर रोक लगेगी. मंत्री ने कहा कि सरोगेसी के मामले पर उच्चतम न्यायालय ने भी संज्ञान लिया. इसके बाद हमने यह विधेयक लाने का फैसला किया.

उन्होंने कहा कि विधेयक में सरोगेसी के संदर्भ में मां को परिभाषित किया गया है और यह भी तय किया गया है कि कौन लोग सरोगेसी की सेवा ले सकते हैं. मंत्री के जवाब के बाद सदन ने ध्वनिमत से विधेयक को पारित कर दिया. इससे पहले चर्चा की शुरुआत करते हुए तृणमूल कांग्रेस की काकोली घोष दस्तेदार ने कहा कि यह विधेयक महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने पिछले दिनों 377 पर फैसला दिया और समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर किया, लेकिन इस विधेयक में इस वर्ग के संबंध में कोई उल्लेख नहीं किया गया है. उन्होंने कहा कि दूसरे देश में रहने वाले भारतीय नागरिकों को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए.

बीजू जनता दल के भतृहरि महताब ने कहा कि सरोगेसी विनियमन विधेयक में ‘नजदीकी रिश्तेदार’ (क्लोज रिलेटिव) शब्दावली को स्पष्ट तौर पर परिभाषित किये जाने की जरूरत हैझ. उन्होंने कहा कि ‘बांझपन’ को इस विधेयक में सही ढंग से स्पष्ट नहीं किया गया है. भाजपा के निशिकांत दुबे ने कहा कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता के अनुरूप ही इस विधेयक में इसका प्रावधान किया गया है. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का महिलाओं के लिए जो दृष्टिकोण है, यह विधेयक उसी से जुड़ा हुआ है. दुबे ने कहा कि सरोगेसी के व्यावसायिक इस्तेमाल से दुनिया भर में भारत का अपमान हो रहा है इस विधेयक से उस पर विराम लगेगा. राकांपा की सुप्रिया सुले ने कहा कि सिंगल पैरेंट को भी इस विधेयक के दायरे में लाना चाहिए. जदयू के कौशलेंद्र कुमार ने कहा कि इस विधेयक के पारित होने से महिलाओं का शोषण रुकेगा.

आरएसपी के एनके प्रेमचंद्रन ने भी नजदीकी रिश्तेदार शब्दावली को सही ढंग से परिभाषित करने की जरूरत है. विधेयक पर राजद के जयप्रकाश नारायण यादव ने कहा कि विधेयक के पारित होने के बाद इसे सही ढंग से लागू किया जाना चाहिए. विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि पिछले कुछ वर्षो भारत में विभिन्न देशों के दंपतियों के लिए किराये की कोख (सरोगेसी) के केंद्र के रूप में उभर कर आया है. अनैतिक व्यवहार, सरोगेट माताओं के शोषण, सरोगेसी से उत्पन्न बालकों के परित्याग और मानव भ्रूणों एवं युग्मकों के आयात की घटनाएं हुई हैं. पिछले कुछ वर्षों से विभिन्न प्रिंट और इलेक्ट्रानिक संचार माध्यमों में भारत में वाणिज्यिक सरोगेसी की व्यापक भर्त्सना नियमित रूप से सामने आयी है. भारत के विधि आयोग ने अपनी 228वीं रिपोर्ट में वाणिज्यिक सरोगेसी पर रोक लगाने की सिफारिश की थी.

सरोगेसी को विनियमित करने के लिए विधान की कमी के कारण सरोगेसी पद्धति का सरोगेसी क्लिनिकों ने दुरुपयोग किया जिससे वाणिज्यिक सरोगेसी और इस क्षेत्र में अनैतिक व्यवहार अत्यधिक बढ़े हैं. ऐसी स्थिति में देश में सरोगेसी सेवाओं को विनियमित करने के लिए सरोगेट माताओं के संभावित शोषण का निषेध करने के लिए और सरोगेसी के माध्यम से उत्पन्न बालकों के अधिकारों के अधिकारों के संरक्षण के लिये विधान लाना अनिवार्य हो गया था. विधेयक में राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर सरोगेसी बोर्डों के गठन करने का प्रस्ताव किया गया है. इसमें 23 से 50 वर्ष तथा 26 से 55 वर्ष वर्ष की महिला एवं पुरुष अनुर्वर आशय रखने वाले भारतीय विवाहित दंपती को नैतिक सरोगेसी व्यवहार की बात कही गयी है. इसमें कहा गया है कि संबंधित दंपती कम से कम पांच वर्ष से विधिपूर्वक विवाहित होने चाहिए और सरोगेसी प्रक्रियाओं के लिए उनका भारतीय नागरिक होना चाहिए.

इसमें कहा गया है कि सरोगेसी की प्रक्रिया से उत्पन्न बालक का किसी भी स्थिति में परित्याग नहीं किया जायेगा और उसे जैविक रूप से उत्पन्न बालक के समान अधिकार होंगे. सरोगेट माता आशय रखने वाले दंपती की निकट रिश्तेदार होना चाहिए और पहले से विवाहित महिला होनी चाहिए. सरोगेट माता को केवल एक बार सरोगेट माता के रूप में कृत्य करने के लिए अनुमति दी जायेगी. इसमें कहा गया है कि कोई व्यक्ति, संगठन, सरोगेसी क्लिनिक, प्रयोगशाला सरोगेसी के संबंध में विज्ञापन, सरोगेसी के माध्यम से उत्पन्न बालक का परित्याग, सरोगेट माता का शोषण, मानव भ्रूण का विक्रय या सरोगेसी के प्रयोजन के लिए मानव भ्रूण का निर्यात नहीं करेगा. उक्त उपबंधों का उल्लंघन करने पर कारावास और जुर्माने का प्रावधान किया गया है.

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