‘राज्यों के पास फ्रीबीज के लिए धन हैं, जजों की सैलरी-पेंशन के लिए नहीं’, सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
नयी दिल्ली : पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम ने कहा था कि दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है और उनमें भी ज्यादातर गरीबी की हालत में गुजर बसर करते हैं. मानव विकास में यह असमानता ही दुनिया के कई हिस्सों में अस्थिरता और कई बार हिंसा का कारण बनती है. उनकी इस बात को दुनिया में हर दिन बढ़ती आबादी और उससे जुड़े दुष्परिणामों से जोड़कर देखा जा सकता है. कुदरत के संसाधनों के भंडार कम होते जा रहे हैं और इनसानों की आबादी बढ़ती जा रही है.
यह बढ़ती आबादी विकास की रफ्तार को कम करने के साथ ही कई अन्य समस्याओं की वजह बनती है. भारत की आबादी दुनिया में चीन के बाद दूसरे नंबर पर है. ऐसे में पूरी दुनिया के लिए आबादी के लगातार बढ़ते जाने के परिणामों की गंभीरता को समझना और उसके अनुरूप जनसंख्या नियंत्रण के प्रयासों में भागीदारी निभाना जरूरी है. वर्तमान समय में दुनिया की आबादी लगभग साढ़े सात अरब है. लेकिन 11 जुलाई 1987 को जब यह आंकड़ा पांच अरब हुआ तो लोगों के बीच जनसंख्या संबंधी मुद्दों पर जागरूकता फ़ैलाने के लिए विश्व जनसंख्या दिवस की नींव रखी गयी.
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की आम सभा ने 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया और पहला विश्व जनसंख्या दिवस 11 जुलाई 1989 को मनाया गया. इसे मनाये जाने का लक्ष्य लोगों के बीच जनसंख्या से जुड़े तमाम मुद्दों पर जागरूकता फैलाना है. इसमें लिंग भेद, लिंग समानता, परिवार नियोजन इत्यादि मुद्दे तो शामिल हैं ही, लेकिन यूएनडीपी का मुख्य मकसद इसके माध्यम से महिलाओं के गर्भधारण संबंधी स्वास्थ्य समस्याओं को लेकर लोगों को जागरूक करना है.