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कांग्रेस, भाजपा को संविधान और कानून की मर्यादा सिखाते थे केजरीवाल, संवैधानिक गलतियां करके खुद संकट में फंसे

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नयी दिल्ली : अन्ना को आगे करके आजाद भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ जेपी आंदोलन के बाद दूसरा सबसे बड़ा आंदोलन खड़ा करने वाले अरविंद केजरीवाल दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने से पहले सभी राजनीतिक दलों को मंच से संविधान और कानून की मर्यादा का पाठ पढ़ाया करते थे. राजनीति में न आने की कसमें खाया […]

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नयी दिल्ली : अन्ना को आगे करके आजाद भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ जेपी आंदोलन के बाद दूसरा सबसे बड़ा आंदोलन खड़ा करने वाले अरविंद केजरीवाल दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने से पहले सभी राजनीतिक दलों को मंच से संविधान और कानून की मर्यादा का पाठ पढ़ाया करते थे. राजनीति में न आने की कसमें खाया करते थे. अपनी कसम तोड़कर न केवल वह राजनीति में आये, बल्कि दिल्ली की जनता के सबसे लोकप्रिय नेता के रूप में उभरे. दिल्ली विधानसभा चुनाव के तमाम रिकॉर्ड तोड़ दिये. वह मुख्यमंत्री बने. सत्ता संभालने के बाद उन्होंने संविधान और कानून का कितना पालन किया, यह किसी से छिपा नहीं है. केजरीवाल ने यदि संविधान की मर्यादा का पालन किया होता, तो आज उनकी, उनकी ‘आम आदमी पार्टी’औरदिल्ली सरकार की इतनी किरकिरी नहीं होती.

आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को चुनाव आयोग ने लाभ के पद का दोषी माना है. इनकी सदस्यता कभी भी जा सकती है. 20 विधायकों में कैलाश गहलोत भी हैं, जो केजरीवाल सरकार में मंत्री हैं. केजरीवाल की छोटी-छोटी गलतियों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस को उन पर बड़े हमले करने के मौके दिये हैं. भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन से उपजे इस राजनेता की सरकार के कई मंत्रियोंको भ्रष्टाचार के आरोप में इस्तीफा देना पड़ा. कई जेल भी गये. 20 विधायकों की सदस्यता खतरे में पड़ी, तो भाजपा और कांग्रेस दोनों ने अरविंद केजरीवाल से इस्तीफा मांगना शुरू कर दिया.

20 विधायकों की सदस्यता पर लटकी तलवार आम आदमी पार्टी के लिए एक झटका है.पार्टी पर एक और खतरा मंडरा रहा है. पार्टी ने 27 विधायकों को मोहल्ला क्लिनिक की रोगी कल्याण समिति का अध्यक्ष बना रखाहै. इनमें 7 ऐसे विधायक हैं, जिन पर संसदीय सचिव के पद पर रहने का आरोप भी था. विभोर आनंद नाम के एक शख्स ने इसे भी लाभ का पद मानते हुए चुनौती दी है. यानी कुल मिलाकर आम आदमी पार्टी के 40 विधायकों की सदस्यता पर खतरा मंडरा रहा है. इनमें से 20 की सदस्यता जायेगी, यह करीब-करीब तय हो गया है.

अब तक एके की सरकार सुरक्षित है, क्योंकि 20 विधायकों की सदस्यता जाने के बावजूद उनके पास 46 विधायक बचेंगे, जो बहुमत से 10 ज्यादा हैं. इन 46 विधायकों में कपिल मिश्रा जैसे 5 बागी विधायक भी हैं. यदि बाकी के 20 विधायक यानी कुल 40 विधायकों की सदस्यता चली गयी, तो केजरीवाल के पास सिर्फ 26 विधायक बचेंगे. ऐसे में दिल्ली में विधानसभा चुनावों का रास्ता खुल सकता है. यदि ऐसा हुआ, तो सबसे ज्यादा नुकसान अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी को होगा. भाजपा और कांग्रेस दोनों फायदे में रहेगी. सबसे ज्यादा फायदा किसको होगा, यह अलग बात होगी.

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