ड्राइवर थे हड़ताल पर, टीएन शेषन ने पकड़ी स्टीयरिंग और दौड़ा दी बस सड़क पर

नयी दिल्ली : चुनावों में सुधार और ज्यादा पारदर्शिता लाने के लिए पूरा चुनावी सिस्टम बदलने वाले पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन आज ट्रेंड कर रहे हैं, इसका कारण उनका ओल्ड एज होम जाना है. इसी बीच हम आपको उनसे जुड़ी एक पुरानी बात बताते हैं. बात आज से करीब 50 साल पहले की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 10, 2018 1:24 PM
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नयी दिल्ली : चुनावों में सुधार और ज्यादा पारदर्शिता लाने के लिए पूरा चुनावी सिस्टम बदलने वाले पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन आज ट्रेंड कर रहे हैं, इसका कारण उनका ओल्ड एज होम जाना है. इसी बीच हम आपको उनसे जुड़ी एक पुरानी बात बताते हैं.

बात आज से करीब 50 साल पहले की है. आईएएस की परीक्षा में टॉप करने वाला एक युवक शहर चेन्नई (उस वक्त मद्रास) में परिवहन निदेशक (डायरेक्टर ऑफ ट्रांसपोर्ट) नियुक्त होकर आया. कुल 3 हजार बसों और 40 हजार कर्मचारियों की कमान उसे मिली थी. युवक नौजवान था और उसने कुछ नया कर दिखाने की ठानी थी. उसपर हर वक्त धुन ये सवार रहती कि यातायात के नियमों का कड़ाई से पालन हो. कानून का पालन करवाने के चक्कर में डायरेक्टर साहब अक्सर सड़कों पर नजर आते थे. एक दिन उनसे एक बस ड्राइवर ने यू हीं पूछ लिया-डायरेक्टर साहब ! क्या आप बस के इंजन के बारे में जानते हैं ? यह सवाल सुन डायरेक्टर साहब सन्न रह गये. ‘जी हां’ ये डायरेक्टर साहब कोई और नहीं पूर्व चुनाव आयुक्त टीएन शेषन थे.

हां तो हम अब ड्राइवर की बात आगे बढाते हैं. बस का ड्राइवर इतने में नहीं रुका, उसने आगे कहा कि यदि आप बस के इंजन के बारे में नहीं जानते, बस को चलाना भी नहीं जानते, तो फिर आप ड्राइवरों की किसी परेशानी को कैसे समझेंगे ? बात डायरेक्टर साहब को चुभ गयी. उन्होंने आगे बस ड्राइविंग तो सीखी ही, बसों के वर्कशॉप में भी वक्त गुजारा और यह हुनर एक दिन बड़े मौके पर काम भी आया.

दरअसल, उनके परिवहन निदेशक रहते चेन्नई में बस ड्राइवरों की हड़ताल हुई. बस फिर क्या था, डायरेक्टर साहब एक बस पर सवार हुए और यात्रियों से भरी उस बस को पूरे 80 किलोमीटर तक चलाकर ले गये. सन् 1960 के दशक में एक दिन चेन्नई की सड़कों पर बस चलाकर नौकरशाहों के लिए फर्जअदायगी की नजीर कायम करने वाला वाला यही डायरेक्टर ऑफ ट्रांसपोर्ट आगे चलकर (दिसंबर,1990) देश का मुख्य चुनाव आयुक्त के पद पर आसीन हुआ.

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