19.1 C
Ranchi
Friday, February 7, 2025 | 08:43 pm
19.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

“पिछले 15 साल से विफल, राहुल गांधी के सामने विश्वसनीयता साबित करने की चुनौती “

Advertisement

नयी दिल्ली (भाषा): अगले कुछ दिनों में राहुल गांधी की ओर से कांग्रेस की कमान संभालना लगभग तय माने जाने के बीच राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को भारतीय राजनीति में प्रासंगिक बनाये रखना है. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल की ओर से संगठन को मजबूती देने और धर्मनिरपेक्षता जैसे […]

Audio Book

ऑडियो सुनें

नयी दिल्ली (भाषा): अगले कुछ दिनों में राहुल गांधी की ओर से कांग्रेस की कमान संभालना लगभग तय माने जाने के बीच राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को भारतीय राजनीति में प्रासंगिक बनाये रखना है. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल की ओर से संगठन को मजबूती देने और धर्मनिरपेक्षता जैसे मुद्दों पर वैचारिक दुविधा को दूर किये बिना वह न तो मतदाताओं के असंतोष को वोट में तब्दील कर पायेंगे और न ही विपक्षी एकता को परवान चढा पायेंगे.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि एक के बाद एक चुनावों में कांग्रेस को मिल रही हार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जैसे करिश्माई नेता एवं प्रभावशाली वक्ता से मुकाबला होने के कारण एक विश्वसनीय नेता के रुप में खुद को पेश करना राहुल के लिए आसान नहीं होगा. जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग के पूर्व प्राध्यापक पुष्पेश पंत ने इस सवाल पर भाषा से कहा, राहुल गांधी के समक्ष सबसे बडी चुनौती अपने को एक विश्वसनीय नेता के रुप में साबित करने की है जिसमें वह पिछले 15 सालों से विफल रहे हैं. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा पार्टी की कमान संभाले जाने की परिस्थितयों से तुलना करते हुए वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी ने कहा कि सोनिया ने जब कमान संभाली तो पार्टी बिखर रही थी. उनके विदेशी मूल के होने का मुद्दा था. कई वरिष्ठ नेताओं को वह रास नहीं आ रही थीं.
पर उन्होंने पार्टी को एकजुट किया और उनके नेतृत्व में पार्टी ने दो बार लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की और गठबंधन की सरकार बनाई. उन्होंने कहा, राहुल के सामने सबसे बडी समस्या है कि पार्टी के चुनावी परिणामों में लगातार जो गिरावट आ रही है, उसे कैसे थामा जाए? साथ ही उनके सामने एक ऐसी बड़ी शख्सियत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं जो एक करिश्माई नेता हैं एवं प्रभावशाली वक्ता हैं. उन्होंने कहा कि आप यदि गुजरात जाएं तो देखेंगे कि भाजपा को लेकर लोगों में असंतोष तो है किन्तु मोदी को लेकर नहीं है.
ऐसे में कांग्रेस को प्रासंगिक बनाये रखना, उसमें फिर से प्राण फूंकना सबसे बड़ी जिम्मेदारी है. संगठन मजबूत होना इसलिए जरुरी है क्योंकि उसी से लोगों के असंतोष को वोट में तब्दील किया जा सकता है. नीरजा का मानना है कि राहुल की असली चुनौती गुजरात ही नहीं है. अगले साल कर्नाटक तथा हिन्दी भाषी तीन राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव होने वाले हैं. इसमें पार्टी कैसा प्रदर्शन करती है, इसके आधार पर उनको तौला जाएगा. दिक्कत वाली बात है कि पार्टी के पास तैयारी के लिए अधिक समय नहीं है. इन चुनावों में पार्टी के विभिन्न धडों को कैसे एकजुट रखा जाए, यह भी देखने वाली बात होगी. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल की तुलना को राजनीतिक टिप्पणीकार एवं वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई सही नहीं मानते. उनके अनुसार एक ही परिवार में भी दो व्यक्तियों के काम करने का ढंग अलग – अलग होता है. यहां तक कि प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु एवं उनकी पुत्री एवं पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तक के काम करने के तरीके में बहुत अंतर था. इंदिरा एवं उनके पुत्र एवं पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के काम करने का तरीका भी अलग – अलग था.
उन्होंने कहा कि हमें राहुल गांधी को सोनिया, राजीव या इंदिरा गांधी के चश्मे से नहीं देखना चाहिए. कांग्रेस का यदि इतिहास देखा जाए तो संगठन के भीतर नेहरु-गांधी परिवार का कोई सदस्य विफल नहीं हुआ है. राहुल के समक्ष यही चुनौती है कि वह खुद को साबित करें और वह भी बहुत जल्दी. कांग्रेस, विशेषकर वरिष्ठ पीढी, के नेताओं के बीच राहुल की स्वीकार्यता के बारे में पूछे जाने पर राजनीतिक विश्लेषक मोहन गुरुस्वामी ने बताया कि संगठन के भीतर राहुल की स्वीकार्यता को लेकर कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए. अहमद पटेल से लेकर दिग्विजय सिंह सहित सभी नेता उन्हें स्वीकार कर लेंगे. कांग्रेस में यह परंपरा रही है कि एक परिवार का नाम आने पर सभी मान जाते हैं.
सोनिया गांधी की जीवनी लिख चुके किदवई कहते हैं, कांग्रेस के समक्ष एक और बडी चुनौती है कि उसके पास विचाराधारा के मामले में कोई स्पष्टता नहीं है. मिसाल के तौर पर धर्मनिरपेक्षता को लें. महात्मा गांधी एवं नेहरू ने इस मामले में दो अलग-अलग रास्ते दिखाये थे. एक का कहना था कि धर्म आस्था का विषय है और सरकार का इसमें घालमेल नहीं होना चाहिए। दूसरे मत का कहना था कि यदि हम अच्छे हिन्दू या अच्छे मुस्लिम हैं तभी हम सच्चे धर्मनिरपेक्ष हो सकते हैं. इसे लेकर अब कांग्रेस में एक राय नहीं है. इसी प्रकार आर्थिक मुद्दों पर भी एक राय नहीं है. किसानों के मामले देखिए. उत्तर प्रदेश में सपा से तालमेल सहित सारे निर्णय राहुल ने ही किये. उप्र की प्रदेश इकाई से समुचित विचार-विमर्श नहीं किया गया. राहुल और विपक्षी एकता के सवाल पर नीरजा का मानना है कि विपक्षी एकता के अपने विरोधाभास हैं और रहेंगे. यह गठबंधन युग की देन है. कांग्रेस को एक ही सूरत में मजबूत स्थिति प्राप्त हो सकती है जब हर लोकसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ विपक्ष का एक ही उम्मीदवार खडा हो. इस बार भाजपा को 31 प्रतिशत वोट ही मिले हैं. 69 प्रतिशत तो विपक्ष को ही गये किन्तु वे सब बंट गये. जब भी विपक्ष एकजुट रहा तो भाजपा को चुनौती मिली है.
भाजपा के एक के बाद एक कई राज्यों में जीतने के बावजूद गुरुस्वामी मानते हैं कि राजनीति में कांग्रेस के लिए स्पेस की कमी नहीं है. किंतु उसे भरने के लिए कांग्रेस को अपने संगठन स्तर पर तैयारी करनी होगी और उसे मजबूती देनी होगी. राहुल के पास अपने संगठन को अंदर से मजबूत करने के अलावा कोई और चारा नहीं है. पार्टी के अंदर मुद्दों पर विचार विमर्श के लिए विभिन्न प्लेटफार्म होने चाहिएं, पार्टी कार्यकारिणी की हर पन्द्रह दिन में बैठक होनी चाहिए. जमीनी स्तर पर लोगों से जुड़ना चाहिए.
किदवई मानते हैं कि राहुल को अनुभवों से परिपक्व लोगों को भी साथ में रखना ही होगा. राजनीति में उम्र का महत्व नहीं है. उन्होंने कहा कि राहुल का अभी तक का रझान देखें तो उनका युवा एवं बाहर से आये लोगों के प्रति झुकाव ज्यादा रहा है. चाहे वह प्रशांत किशोर हों, दक्षिण की अभिनेत्री राम्या हो या उत्तर प्रदेश में बेनीप्रसाद वर्मा अथवा राजबब्बर जैसे नेता हों। इस बारे में उन्हें थोडा नियंत्रण रखना होगा और पार्टी के भीतर भी देखना होगा.
उल्लेखनीय है कि कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए अधिसूचना जारी की जा चुकी है. चार दिसंबर को नामांकन पत्र दाखिल करने की अंतिम तिथि है. पांच दिसंबर को नामांकन-पत्रों की जांच होगी और मान्य नामांकन-पत्रों की सूची प्रकाशित होगी. 11 दिसंबर को चुनाव लडने जा रहे उम्मीदवारों की सूची जारी की जाएगी। 16 दिसंबर को जरुरत पडने पर कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए मतदान होगा और 19 दिसंबर को परिणाम घोषित किये जायेंगे। यदि राहुल के अलावा कोई और नामांकन-पत्र दाखिल नहीं करता है तो पांच दिसंबर को ही कांग्रेस उपाध्यक्ष की अध्यक्ष पद पर ताजपोशी सुनिश्चित हो जाएगी.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें