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दिल्ली को प्रदूषण मुक्त करने में क्यों नहीं सफल हो रहे हैं अरविंद केजरीवाल?

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नयी दिल्ली : राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में प्रदूषण एक राष्ट्रीय समस्या बना हुआ है. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पहले दिल्ली के अरविंद केजरीवाल सरकार के ऑड-इवेन फार्मूले को ठुकरा दिया और अब पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण इपीसीए ने दिल्ली-एनसीआर में ट्रकों के प्रवेशव निर्माण कार्य पर प्रतिबंध को वापस ले लिया है. साथ ही पार्किंग […]

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नयी दिल्ली : राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में प्रदूषण एक राष्ट्रीय समस्या बना हुआ है. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पहले दिल्ली के अरविंद केजरीवाल सरकार के ऑड-इवेन फार्मूले को ठुकरा दिया और अब पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण इपीसीए ने दिल्ली-एनसीआर में ट्रकों के प्रवेशव निर्माण कार्य पर प्रतिबंध को वापस ले लिया है. साथ ही पार्किंग के बढ़े हुए चार गुणा शुल्क को भी वापस ले लिया गया है. गुरुवार की सुबह दो सप्ताह में पहली बार दिल्ली के एयर पाल्यूशन लेवल को खराब श्रेणी में रखा गया है, जिसे अबतक बहुत खराब श्रेणी में रखा जा रहा था. इसे ही प्रतिबंधों को हटाये जाने का कारण बताया जा रहा था. इपीसीए के प्रमुख भूरे लाल ने कहा है कि हम लोग स्थिति को बहुत निकट से माॅनिटर कर रहे हैं और इसके आधार पर हमने मौसम विभाग एवं इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटोरालॉजी को सूचित किया है कि आने वाले दिनों में वातावरण में नमी बढ़ने पर प्रदूषण का स्तर फिर से बढ़ सकता है. एनजीटी ने 10 साल पुराने डीजल टैक्सी वाहनों को भी शहर से हटाने का आदेश दिल्ली सरकार को दिया है.

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प्रदूषण की समस्या कायम

यानी दिल्ली में प्रदूषण की समस्या बनी हुई है. मौसम में बदलाव आने पर इसमें बस कमी और वृद्धि ही संभव है. इसके समाधान के लिए एक ठोस कार्यनीति बनाना सबसे आवश्यक है. वहीं, भारत सरकार ने दिल्ली में प्रदूषण की समस्या को देखते हुए अप्रैल 2018 से हीबीएस – 6 वाहन के परिचालन का आदेश दिया है. दिल्ली बीएस – 4 वाहनों के परिचालन को अपना चुका है और कम प्रदूषण करने वाले बीएस – 6वाहनों के परिचालनकेलिए एक अप्रैल 2020 की तारीख निर्धारित की गयी थी.पर,सरकार के इस नये आदेशसेमोटर वाहन कंपनियोंचिंतितहैं. मोटर उद्योग जगत ने प्रदूषण नियंत्रण के लिए सरकार के इस उपाय को सही बताया है, लेकिन कहा है कि 2020 से पहले सख्त उत्सर्जन नियम के साथ बीएस – 6 वाहन उपलब्ध आसान नहीं होगा. इससे पहले केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी वाहन कंपनियों को इलेक्ट्रिक वाहनों को उपयोग में लाने के लिए कहा चुके हैं.


ग्रीन फंड में 829 करोड़ रुपये

हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली सरकार ने दो साल में प्रदूषण सेस के ग्रीन फंड में 829 करोड़ रुपये एकत्र किये. यह राशि छह नवंबर 2015 से एक नवंबर 2017 के बीच एकत्र किये गये. पर, केजरीवाल सरकार ने इसमें मात्र 93 लाख रुपये खर्च किये गये. यह राशि वस्तुओं के वाहनों के शहर में प्रवेश शुल्क के रूप के रूप में वसूले गये.

यानी केजरीवाल सरकार ने औसतन 425 करोड़ रुपये हर साल ग्रीन टैक्स के रूप में जुटाये और इसमें औसतन हर साल 50 लाख भी खर्च नहीं किये गये. डेढ़ करोड़ से अधिक आबादी वाले और सबसे अधिक वाहनों वाले इसशहर में अगर ग्रीन टैक्स का तरीके से उपयोग किया जाता तो दिल्ली की सूरत बदल जाती और प्रदूषण की इतनी जटिल समस्या तो उत्पन्न नहीं ही होती.

दिल्ली के संजीव जैन ने एक आरटीआइ दाखिल किया था, जिससे यह पता चला कि दिल्ली सरकार ने 30 सितंबर तक 787 करोड़ रुपये एकत्र किये और फिर बाद में 42 करोड़ रुपये एकत्र किये गये. साउथ दिल्ली म्युनिसपल कॉरपोरेशन ने भी टू एक्सेल वाहनों पर लगने वाले टैक्स से 700 करोड़ रुपये एवं थ्री एक्सल वाहनों पर लगने वाले ग्रीन टैक्स से 1300 करोड़ रुपये जमा किये. दिल्ली ने 2008 से डीजल ब्रिकी पर लगने वाले सेस से 500 करोड़ रुपये जुटाये. यानी दिल्ली के पास ग्रीन फंड में पैसों की कमी नहीं है, सिर्फ उसके सही जगह पर उपयोग की जरूरत है.

कांग्रेस के नेता अजय माकन ने इन्हीं मुद्दों पर केजरीवाल सरकार पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि यह सरकार इन पैसों का उपयोग करने में समर्थ नहीं है,और वे पैसे बिना उपयोग केपड़ेहुए हैं. उन्होंने कहा है कि केजरीवाल सरकार रोड वैक्यूम क्लिनर खरीद सकती थी, क्योंकि धूल प्रदूषण की एक सबसे बड़ा कारण है. उन्होंने आरोप लगाया है कि अरविंद केजरीवाल सिर्फ ध्यान खींचने के लिए काम करते हैं.

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