‘राज्यों के पास फ्रीबीज के लिए धन हैं, जजों की सैलरी-पेंशन के लिए नहीं’, सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
बेंगलुरु : पत्रकार गौरी लंकेश से पूर्व जेएनयूएसयू अध्यक्ष कन्हैया कुमार काफी प्रभावित थे. गौरी लंकेश ने भी अपने ट्विटर के डीपी में कन्हैया कुमार के साथ तस्वीर लगा रखी थी. उन्की हत्या की खबर जैसे ही कन्हैया कुमार के कानों तक पहुंची तो उन्होंने ट्विटर पर अपनी प्रतिक्रिया दी. कन्हैया कुमार ने लिखा कि गौरी शंकर की हत्या की खबर सुनकर आहत हूं…वह मेरे लिए मां की तरह थी…वह मेरे हृदय में हमेशा जिंदा रहेंगी…
Deeply shocked and saddened at the cowardly murder of #GauriLakesh! She was like a mother to me. She will always be alive in my heart. pic.twitter.com/6x4u5UaXqt
— Kanhaiya Kumar (@kanhaiyakumar) September 5, 2017
अपने अगले ट्वीट में कन्हैया ने कहा कि गौरी शंकर ने मुझे सच बोलना सिखाया था… वह किसी से डरतीं नहीं थीं और घृणा के खिलाफ आवाज बुलंद करतीं थीं…हम उनकी लड़ाई को आगे बढ़ाएंगे. आपको बता दें कि अपने आवास के बाहर हत्या का शिकार हुईं गौरी लंकेश एक पत्रकार-कार्यकर्ता थीं जो व्यवस्था विरोधी, गरीब समर्थक और दलित समर्थक रख रखती थीं.
कन्नड पत्रकारिता में कुछ महिला संपादकों में शामिल गौरी प्रखर कार्यकर्ता थीं जिन्हें नक्सल समर्थक और वामपंथी विचारों का समर्थक बताया जाता था. वर्ष 1962 में जन्मीं गौरी कन्नड पत्रकार और कन्नड साप्ताहिक टैबलॉयड ‘लंकेश पत्रिका ‘ के संस्थापक पी. लंकेश की बेटी थीं. उनकी बहन कविता और भाई इंद्रजीत लंकेश फिल्म और थियेटर हस्ती हैं.
#GauriLankesh taught me to speak truth to power. She was fearless in her fight against hate. We resolve to carry on her struggle. pic.twitter.com/SnbZ0RnFkS
— Kanhaiya Kumar (@kanhaiyakumar) September 5, 2017
अपने भाई और पत्रिका के प्रोपराइटर तथा प्रकाशक इंद्रजीत से मतभेद के बाद उन्होंने लंकेश पत्रिका के संपादक पद को छोडकर 2005 में कन्नड टैबलॉयड ‘गौरी लंकेश पत्रिका ‘ की शुरुआत की थी. भाजपा सांसद प्रह्लाद जोशी और पार्टी पदाधिकारी उमेश दोषी द्वारा दायर मानहानि मामले में पिछले वर्ष हुबली के मजिस्ट्रेट की अदालत ने उन्हें दोषी करार दिया था जिन्होंने 23 जनवरी 2008 को उनकी पत्रिका में प्रकाशित एक खबर पर आपत्ति जतायी थी.
गौर हो कि गौरी समाज की मुख्य धारा में लौटने के इच्छुक नक्सलियों के पुनर्वास के लिए काम कर चुकी थीं और राज्य में सिटीजंस इनिशिएटिव फॉर पीस (सीआईपी) की स्थापना करने वालों में शामिल रही थीं.