नयी दिल्लीः आजाद भारत के 70 साल के इतिहास में अाज तक कभी सेना का शासन नहीं हुआ. सेना को राजनीति से दूर रखा गया. सेना पर सदैव देश ने गर्व किया है. हर कदम पर देश की सरकार और जनता ने सेना का साथ दिया है.

लेकिन, यह पहला मामला है, जब देश में सेना पर सवाल उठाये जा रहे हैं. पत्थरबाजों से सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों की जान बचाने के लिए सेना के एक मेजर द्वारा उठाये गये कदम की आलोचना हो रही है.

दरअसल, कश्मीर के अलगाववादी नेताअों के साथ-साथ कश्मीरी राजनीतिक दलों के विरोध के बीच साहित्यकार पार्थ चटर्जी ने पत्थरबाज को जीप की बोनट से बांधने पर सेना की आलोचना की. मेजर गोगोई को सम्मानित करने के लिए सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत की तुलना जलियावाला बाग में निहत्थों पर गोलियां बरसाने का आदेश देनेवाले क्रूरता के पर्याय रहे अंगरेज अफसर जनरल डायर से कर डाली.

पार्थ चटर्जी ने वायर को दिये इंटरव्यू में कहा था कि जम्मू-कश्मीर में सेना वैसे ही नये आइडियाज अपना रही है, जैसे जलियावाला बाग में जनरल डायर ने किया था. उन्होंने कहा कि कश्मीर एक जीती हुई काॅलोनी जैसी हो गयी है.

पार्थ ने कहा कि घाटी में हिंसा से निबटने के लिए सेना वही रणनीति अपना रही है, जैसी जनरल डायर ने अपनायी थी. कश्मीर में आज हालात उतने ही खराब हैं, जितने जनरल डायर के समय थे. उन्होंने कहा कि बहुत जल्द जनरल अयूब के शासन जैसे हालात भी देखने को मिलेंगे.

इस लेखक ने सेना पर सीमा के अंदर और बाहर दोनों ओर लोगों का उत्पीड़न करने का भी आरोप लगाया. ट्विटर पर इतनी आलोचना झेलने के बावजूद पार्थ चटर्जी अपने बयान पर कायम हैं.

पार्थ के इस बयान पर मीडिया में यह मुद्दा ट्रेंड करने लगा. सोशल साइट पर बहस छिड़ गयी कि मेजर लिटुल गोगोई की शांतिपूर्ण कार्रवाई की आलोचना उचित है या पार्थ का यह बयान ‘सेना से गद्दारी’ है.

टाइम्स नाउ ने पार्थ चटर्जी के बयान के खिलाफ #ArmySeGaddari एक प्रोग्राम शुरू कर दिया. इस पर वायर ने आपत्ति की. कहा कि गड़बड़ियों को ठीक करने के बजाय एक लेखक के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है. हालांकि, ट्विटर पर बड़ी संख्या में लोगों ने पार्थ चटर्जी की जम कर आलोचना की.
यह और बात है कि कश्मीर के कुछ राजनीतिक दलों के नेताअों के साथ-साथ अलगाववादियों ने लेखक का समर्थन भी किया. इस हैशटैग से ट्विटर पर लोगों ने जो प्रतिक्रिया दी, वह इस प्रकार है.

विभाकर भूषण ने लिखा, ‘पार्थ चटर्जी को पत्थरबाजों के सामने खड़ा कर दिया जाना चाहिए. इनके जैसे लोग हुर्रियत और पाकिस्तान के आतंकवादियों से ज्यादा खतरनाक हैं.’

जयेश मेहता लिखते हैं, ‘यदि जनसमूह के लिए धर्म अफीम है, तो कम्युनिस्टों के लिए मार्क्सवाद कोकीन के समान है.’

सीमा चौधरी लिखती हैं, ‘यदि यह अभिव्यक्ति की आजादी है, तो मैं भारत सरकार से निवेदन करूंगी कि ऐसे राष्ट्र-विरोधी छद्म उदारवादियों की आवाज बंद कर दें.’

रुसाली प्रसाद कहती हैं, ‘ये बिल्कुल वैसे ही हैं, जो आजादी चाहते हैं, जो बीफ फेस्ट आयोजित करते हैं, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तुलना आइएसआइएस से करते हैं.’

लोग यहीं नहीं रुके. संजय गोयनका ने कहा कि ऐसे अप्रासंगिक लोगों को मीडिया महत्व न दे. अनिल लिखते हैं, ‘कौन है यह मूर्ख पार्थ चटर्जी. आप उसे इतना महत्व क्यों दे रहे हैं? क्या आप हर भौंकनेवाले कुत्ते को कवरेज देंगे?’

भाजपा प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने कहा है कि वामदल और वाम समर्थक बुद्धिजीवी विदेशी ताकतों का समर्थन कर अपने देश की पीठ में छुरा घोंप रहे हैं.

तृणमूल कांग्रेस के नेता सौगत राय ने पार्थ चटर्जी का समर्थन करते हुए कहा कि उन्हें अपने विचार व्यक्त करने की आजादी है.

मोनिका अरोड़ा लिखती हैं, ‘अधिकतर आॅनलाइन समाचार पत्रों के लिए ‘सेना से गद्दारी’ फैशन बन गया है. ये पाकिस्तान के समर्थन में लिखते हैं, पत्थरबाजों, बुरहान वानी और नक्सलियों का समर्थन करते हैं.’

विक्रमन नायर लिखते हैं, ‘माकपा ने अपना रंग दिखा दिया है? कभी उन्होंने तियानमेन की घटना की निंदा की? कश्मीर मुद्दे पर बात करने आये हैं!!!

आइए, अब आपको बताते हैं कि जनरल डायर और मेजर गोगोई ने जो किया, उसके बीच क्या फर्क है.

डायर ने क्या किया था

  • निहत्थे भारतीयों पर सेना को गोलियां बरसाने का हुक्म दिया
  • 900 भारतीयों की हत्या के लिए जिम्मेदार था डायर
  • शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे लोगों पर हमले का आदेश दिया

मेजर गोगोई ने क्या किया

  • कश्मीरियों पर गोली चलाने का आदेश देने से इनकार कर दिया
  • कार्रवाई के दौरान सुनिश्चित किया कि कोई हताहत न हो
  • पत्थरबाजों से पोलिंग पार्टी के सदस्यों को सुरक्षित निकाला