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स्पाइनल कॉर्ड इंज्यूरी थमे नहीं जिंदगी

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रीढ़ हमारे पूरे शरीर को सहारा देने का कार्य करती है. यदि किसी दुर्घटना के कारण इसमें इंज्यूरी आती है, तो इसका प्रभाव पूरे शरीर पर पड़ता है. कई बार रीढ़ में फ्रैक्चर होने के कारण किसी अंग में लकवा भी मार सकता है या फिर मृत्यु भी हो सकती है. इसके अलग-अलग हिस्सों में […]

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रीढ़ हमारे पूरे शरीर को सहारा देने का कार्य करती है. यदि किसी दुर्घटना के कारण इसमें इंज्यूरी आती है, तो इसका प्रभाव पूरे शरीर पर पड़ता है. कई बार रीढ़ में फ्रैक्चर होने के कारण किसी अंग में लकवा भी मार सकता है या फिर मृत्यु भी हो सकती है. इसके अलग-अलग हिस्सों में इंज्यूरी का प्रभाव हमारे शरीर पर भी अलग-अलग तरीके से पड़ता है. इसके उपचार के बारे में विशेष जानकारी दे रहे हैं दिल्ली और पटना से हमारे एक्सपर्ट.
डॉ अशोक कुमार सिन्हा
न्यूरोसर्जन, सेंटर फॉर
न्यूरोसर्जरी, पटना
कई बार बोन इंज्यूरी होने के बाद भी उसके लक्षण नहीं दिखते हैं. इंज्यूरी को स्पाइन के हिस्सों के हिसाब से सर्वाइकल, थोरेसिक और लंबर में बांटा जाता है. इंज्यूरी का प्रभाव भी दो भागों में बांटा गया है. पहला है कंप्लीट और दूसरा है इनकंप्लीट.
सर्वाइकल इंज्यूरी
यह ऊपरी हिस्सा होता है. चूंकि यहीं से सारे नर्व्स नीचे की हिस्सों में जाते हैं. इस कारण यहां चोट लगने पर शरीर के नीचे के पूरे हिस्से पर प्रभाव पड़ता है और पूरे हिस्से का मूवमेंट समाप्त हो जाता है. अर्थात् इससे दोनों हाथ और पैर प्रभावित होते हैं. यदि इंज्यूरी इनकंप्लीट टाइप की होती है, तो भी पूरा शरीर इससे प्रभावित होता है. हालांिक कुछ अंगों में लकवा मार सकता है. मल-मूत्र पर भी नियंत्रण समाप्त हो जाता है. सर्वाइल इंज्यूरी इसलिए भी महत्वपूर्ण होती है क्योंकि इससे फेफड़ों और डायफ्राम भी निष्क्रिय हो जाते हैं. इससे सांस घुटने से रोगी की मृत्यु हो सकती है.
थोरेसिक इंज्यूरी
इस हिस्से में इंज्यूरी से हाथ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, लेकिन उससे नीचे के सभी अंगों यानी पैर, पेट व प्रजनन अंगों में लकवा मार सकता है. यानी हाथ और उसके ऊपर के अंगों पर इस इंज्यूरी का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. इस तरह की इंज्यूरी में भी प्रजनन अंग प्रभािवत होते हैं और मल-मूत्र त्यागने में परेशानी हो सकती है.
लंबर इंज्यूरी
चूंकि यह सबसे नीचे का हिस्सा होता है और नर्व्स यहां पर आकर समाप्त हो जाते हैं. इस कारण यहां पर चोट लगने पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ता है. कभी-कभी इसके कारण पैरों में लकवा मार सकता है.
हड्डी में फ्रैक्चर की पूरी जानकारी के लिए कई जांच करायी जाती हैं, जैसे-एक्स-रे, सीटी स्कैन और एमआरआइ. एक्स-रे और सीटी स्कैन से सिर्फ हड्डियों की जानकारी मिल पाती है. एमआरआइ से टिश्यू, नर्व्स और इंज्यूरी के बारे में पूरी जानकारी मिल जाती है.
स्पाइन में लगाया जाता है इंप्लांट
यदि स्पाइन में फ्रैक्चर हुआ हो, तो सर्जरी करा लेना उचित होता है. सर्जरी में औसतन 50 हजार तक खर्च आता है. सर्जरी करके स्पाइन में इंप्लांट लगाया जाता है, जिससे स्पाइन को सपोर्ट मिलता है. इससे मरीज जल्दी ही चलने-फिरने में सक्षम हो जाता है. इंप्लांट टाइटेनियम का होता है, जिसे स्क्रू की मदद से स्पाइन में कसा जाता है. इससे किसी प्रकार का कोई खतरा नहीं होता है. इसे तब तक लगा रहने दिया जाता है, जब तक कि इससे किसी प्रकार की कोई परेशानी न हो.
िरकवरी में लगता है समय
स्पाइन इंज्यूरी के केस में रिकवरी होने में समय लगता है. असल में इंज्यूरी के समय शरीर में कई चीजें असामान्य हो जाती हैं, जैसे बीपी का बढ़ना या कम होना आदि. यदि लकवा मार दिया है, तो मल-मूत्र त्यागने में परेशानी होना. इन सभी चीजों के नॉर्मल होने पर या मरीज के इन परिस्थितियों में ढल जाने के बाद मरीज को डिस्चार्ज कर दिया जाता है. इसमें तीन महीने से लेकर साल भर तक का समय लग सकता है. यह इस पर निर्भर करता है कि कितने समय में नर्व्स का रीजेनरेशन होता है.

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