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आर्ट ऑफ गवर्नेंस का कमाल

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(सिंगापुर-दो) यह तसवीर नहीं, इतिहास का अध्याय है सिंगापुर,हांगकांगऔर चीन से लौटकर हरिवंश सिंगापुर हाईटेक सिटी, होटल के कमरे में पांव रखे कि रोशनी स्वत: तेजी होती जाती है. फिर धीमी, रात में बिस्तर से उठें, फर्श में पांव रखें, फ्लोर पर स्वत: रोशनी, कुल मिला कर टेक्नोलॉजी ने जीवन को परिलोक की कथाओं की […]

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(सिंगापुर-दो) यह तसवीर नहीं, इतिहास का अध्याय है
सिंगापुर,हांगकांगऔर चीन से लौटकर हरिवंश
सिंगापुर हाईटेक सिटी, होटल के कमरे में पांव रखे कि रोशनी स्वत: तेजी होती जाती है. फिर धीमी, रात में बिस्तर से उठें, फर्श में पांव रखें, फ्लोर पर स्वत: रोशनी, कुल मिला कर टेक्नोलॉजी ने जीवन को परिलोक की कथाओं की दुनिया में पहुंचा दिया.
एक देश, जिसके पास कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं है. धरती है. आप दुनिया का नक्शा देखिये, मुश्किल से सिंगापुर को ढूंढ पायेंगे. आबादी कम है. ऐसे छोटे द्वीप दुनिया में अनेक हैं. पर गुमनाम, क्येांकि वे सिंगापुर नहीं बन सके. यह हुआ मानवीय श्रम, प्रतिबद्धता और संकल्प के कारण सिंगापुर ह्यूमन स्प्रिट की देन है. विज्ञान और तकनीक के कारण यह आगे बढा. यातायात में, संचार में, उत्पादन पद्धति में. खोजों-सफलताओं और हुनर के कारण असंभव को संभव बनाया. अर्थशास्त्र का शास्त्रीय सूक्त मुझे याद आया. निर्माण के लिए भूमि, श्रम, पूंजी वगैरह चाहिए पर सिंगापुर न भूमि थी, न पूंजी, न अतीत. अब हाईटेक की दुनिया ने निर्माण का फार्मूला बदल दिया है. अगर नॉलेज है, तो सूचना विस्फोट के इस युग में पुरानी मान्यताएं ध्वस्त कर आप नया सृजन कर सकते हैं. सिंगापुर ने किया. हर तकनीकी परिवर्तन-खोज के साथ सिंगापुर ने इसे बढ़ाया. उसकी मार्केटिंग कर व्यापार से कमाया. एयरलाइंस की शानदार यात्रा ने दुनिया के पर्यटकों को हवाई जहाज से समयबद्ध व तीव्र माल ढुलाई, व्यस्त व बंदरगाह, मालवाहक जहाजों के बड़े कंटेनर्स, दूरसंचार … दुनिया के एक छोर से दूसरे छोर तक फाइबर केबुल, इस तरह के नेटवर्क ने सिंगापुर को समृद्ध किया. इसमें एक-एक से भारी कमायी होती है. अब अगले पचास वर्षों के टेक्नालॉजी परिवर्तन के अनुरूप राष्ट्रीय एजेंडा तैयार है. तकनीक, कंप्यूटर्स, संचार के तरह-तरह के प्रयोग, क्लोनिंग, मानव अंग निर्माण और माइक्रोबॉयलोजी, शोध (आर एंड डी) से सिंगापुर दुनिया में अपना पांव पसार रहा है. भारत, चीन समेत अनेक देश सिंगापुर की देख-रेख में अरबों-अरबों के टेक्नोलॉजी पार्क बना रहे हैं. चीन, भारत के हजारों-हजार युवा इंजीनियर यहां प्रशिक्षण पा रहे हैं. भविष्य के शहरों के खाका तैयार हो रहे हैं. सिंगापुर में अनोखे 35 इंडस्ट्रियल स्टेट हैं. साइंस पार्क, इनडस्ट्रिीज पार्क और हाइटेक पार्कों ने इसे चोटी के देशों में ला खड़ा किया है.
प्रतिभा की पूजा, हरेक को सामान अवसर, कठोर अनुशासन, तेज छात्रों को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ संस्थानों में पढ़ने का अवसर, नेतृत्व के लिए सबसे योग्य-ईमानदार लोगों का चयन और रहनुमाओं में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ मॉडलों (विभिन्न क्षेत्रों में) को अपने देश, काल, परिस्थितियों के अनुरूप लागू करने के संकल्प जैसे कदमों ने सिंगापुर को स्वर्ग बनाया है.
लगभग 40 लाख का देश है. पर इसे इतना खूबसूरत, व्यवस्थित और अनुशासित बना कर रखा है कि प्रतिवर्ष लगभग 60 लाख टूरिस्ट यहां आते हैं. इस वर्ष 70 लाख के आने का आकलन है. इससे सिंगापुर को भारी कमायी होती है. 100 करोड़ की आबादीवाले भारत में बमुश्किल 30 लाख यात्री हर वर्ष आते हैं.
सिंगापुर का बंदरगाह दुनिया का सबसे व्यस्त और आधुनिक बंदरगाह हैं. सिंगापुर की कमायी का बड़ा स्रोत. इस तरह का आधुनिकीकरण कि तीन मिनट में भारी जहाज अनलोड होता है, जो जहाज भारत में अनलोड होने में सप्ताह या पखवारा या महीनों लगते हैं, वे वहां तीन मिनट में खाली कर लिये जाते हैं. आधुनिक मशीनों से लगभग 80,000 जहाज पहुंचते हैं. यह बंदरगाह (पीएसए कॉरपोरेशन लिमिटेड) दुनिया का अकेला सबसे बजा कंटेनर टर्मिनल ऑपरेटर है. दुनिया के कुल कंटेनरों का दसवां भाग यहां उतरता-चढ़ता है. संसार के 740 बंदरगाहों से जुड़ा और 400 मालवाहक जहाजों की कंपनियों को संभालता सिंगापुर बंदरगाह भी पर्यटकों के लिए दर्शनीय जगह है. 10 मंजिली क्रेनें हैं. 20 से 40 फुट के कंटेनरों को मशीनी हाथ पल भर में इधर-उधर करते हैं. हाईटेक बंदरगाह. एक ऑपरेटर एक दिन में अनेक जहाजों को अनलोड करता है. बैठे-बैठे हमारी यहां हजारों हाथ पखवारे तक एक जहाज खाली करते हैं. हरे-भरे पेड़ों, फूलों और पत्तियों से सजा यह बंदरगाह देखना अनुभव है. कहीं गंदगी-कूड़ा नहीं. मुंबई, चेन्नई, तूतीकोरिन, कांडला, जैसे. भारत के प्रमुख बंदरगाह आदिम युग के लगते हैं. दुर्गंध और गंदगी के स्रोत.
पहले सिंगापुरी कूड़े-करकट व गंदगियां नदी में बहा देते थे. सरकार ने फैसला किया, नदियों का पानी पारदर्शी-साफ रखना है. इसके लिए आधुनिकतम वेस्ट मैनजमेंट की व्यवस्था हुई. साथ ही कानून का उल्लंघन करनेवालों के लिए सख्त कानून बनाये गये. 10 वर्षों में सिंगापुर की नदियों में नितांत पारदर्शी और साफ जल मौजूद है. हमारे यहां गंगा, यमुना जैसी नदियां, जिनका भारत अवधारणा के साथ नाभि नाल का संबंध है, सूख रही हैं. सड़ रही हैं और सफाई पर अरबों खर्च हो रहे हैं. 100 करोड़ के बाहुबलवाले देश में अस्तित्व से जुड़ी गंगा को हम नहीं बचा पा रहे हैं, पर 40 लाख लोगों ने अपनी गंदी नदियों-सड़कों को स्वर्ग बना लिया है. यह है, हमारा पौरुष, सामर्थ और प्रताप! इनकी सफाई बेजोड़ है. इनके आगे भारत के हिंदी इलाके नरक लगते हैं. शायद श्रेष्ठता और स्वच्छता का संबंध है. गरीबी और गंदगी का.
छोटे से देश में ऐसा संभव कैसे हुआ? यह आर्ट ऑफ गवर्नेंस, (शासकीय हुनर) आर्ट ऑफ मैनेजमेंट है.
मसलन नदी को साफ रखना है, तो पहले गंदगी समाप्त करने का विकल्प चाहिए. सो टेक्नालॉजी से अधुनातन वेस्ट मैनेजमेंट तकनीक विकसित की. लोगों को बताया, समझाया, सफाई का मर्म देश ने समझा. फिर उल्लंघन करनेवालों के लिए सख्त कानून बना. सड़कों के संदर्भ में भी यही हाल. आप कहीं थूक दें, गंदा कर दें, तो भारी जुरमाना है. भारत (खासतौर से हिंदी क्षेत्रों) में दफ्तरों में खैनी, पान थूकने जैसी स्थिति याद आती है. यहां एक बार कानून तोड़ा, तो कोई बचा नहीं सकता. कुछ वर्ष पहले का सिंगापुर का चर्चित प्रकरण याद आता है. एक अमेरिकी लड़के ने कार लिफ्टिंग की थी. अमेरिकी राष्ट्रपति क्लिंटन ने वहां के प्रधानमंत्री से उसे बचाने-माफ करने की अपील की. पर सिंगापुर सरकार ने ठुकरा दिया. कहा, अपराधियों-दोषियों के लिए कानून एक है, यह था छोटे देश का आत्मविश्वास और अपनी व्यवस्था के प्रति प्रतिबद्धता दुनिया के महाबली देश अमेरिका के सामने.
60 के दशक में प्रो गुन्नार मिर्डल ने चेताया था. भारत एक साफ्ट स्टेट (अशासित) बनता जा रहा है. शासन का कहीं प्रताप नहीं है. कानून के कई स्तर बन गये हैं. भ्रष्ट्राचार रग-रग में फैल रहा है. शासकों-शासितों के लिए अलग-अलग व्यवस्थाएं हैं. अंदर से टूटा-बंटा देश, 40 लाख की आबादी वाले सिंगापुर से पीछे छूट जाये, इससे बड़ी पीड़ा एक भारतीय के लिए क्या हो सकती है? यह पीड़ा हमें कचोटती है.
संविधान के अनुसार भारत समाजवादी है, शासितों का अभावग्रस्त और कठिन संसार सामने है. सिंगापुर पूंजीवादी, कहा जाता है, पर वहां की व्यवस्था कैसी है? निजी कार रखना दुनिया में सबसे महंगा सिंगापुर में है. एक कार अपनी कीमत से चार गुना अधिक कीमत देकर लेनी पड़ती है. सर्टीफिकेट ऑफ इनटाइटेलमेंट ले कर. सिंगापुरी कहते हैं, यह दुनिया का सबसे महंगा पीस ऑफ पेपर है. दूसरी ओर पब्लिक ट्रांसपोर्ट सर्वश्रेष्ठ है. 90 फीसदी बसें एयरकंडीशड हैं. भाड़ा सामान्य. 10-12 लेन की सुंदर-चमकती सड़कें हैं. सात एक्सप्रेस हाइवे हैं. सस्ती टैक्सियां हैं. अमेरिका मानता है कि दुनिया में ऊर्जा का सबसे अधिक उपयोग करनेवाला देश सिंगापुर है. एक तरफ सरकार निजी गाड़ियां-कार रखने से हतोत्साहित करती है, तो दूसरी तरफ सर्वश्रेष्ठ सार्वजनिक यातायात का सरकारी बंदोबस्त कर आम लोगों को कष्ट नहीं होने देती. यह है सफल व्यवस्था, संचालन की कला.
देर रात हम होटल लौटते हैं. अपना देश बहुत याद आता है. यहां राजनीति सृजन और रचना की कला है. भारत में राजनीति धंधा हो गयी है. नीति उसमें नहीं है. आदर्श नहीं. शुद्ध धंधा, साधन, समय, शक्ति लगाइए, उसका फल पाइए. राग, द्वेष और मोह है. भारत में समाज के तलछट राजनीति में हैं, यहां समाज के क्रीम देश चला रहे हैं. अपने विजन से जिन्होंने मामूली देश को गौरवपूर्ण बना लिया है. क्या हमारी नयी पीढ़ी सीखेगी?

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