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आर्गेनिक हर्बल है मखाना

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मखाना से तो तुम परिचित होगे. तुमने व्रत-उपवास में मम्मी को मखाना का प्रयोग करते देखा होगा. क्या तुम जानते हो कि यह क्या चीज है और इसे कैसे बनाया जाता है? मखाना को फाक्सनट या प्रिकली लिली यानी कांटे युक्त लिली कहते हैं, क्योंकि इसमें पत्ती के डंठल एवं फलों तक पर छोटे-छोटे कांटे […]

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मखाना से तो तुम परिचित होगे. तुमने व्रत-उपवास में मम्मी को मखाना का प्रयोग करते देखा होगा. क्या तुम जानते हो कि यह क्या चीज है और इसे कैसे बनाया जाता है?

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मखाना को फाक्सनट या प्रिकली लिली यानी कांटे युक्त लिली कहते हैं, क्योंकि इसमें पत्ती के डंठल एवं फलों तक पर छोटे-छोटे कांटे लगे होते हैं. यह कमल कुल का एक बहुवर्षीय पौधा है. वनस्पति शास्त्र में इसे यूरेल फरोक्स कहते हैं. इसमें जड़कंद होता है. बड़ी-बड़ी गोल पत्तियां पानी की सतह पर हरी प्लेटों की तरह तैरती रहती हैं. इसमें नीले, जामुनी या लाल कमल जैसे फूल खिलते हैं, जिन्हें नीलकमल कहते हैं. परंपरा के मुताबिक कमल और मखाना दोनों का पूजा में बड़ा महत्व है. मखाना की खेती भारत के अलावा चीन, जापान, कोरिया और रूस में भी की जाती है. इसका फल स्पंजी होता है. फल को बेरी कहते हैं. फल और बीज दोनों खाये जाते हैं. फल में 8-20 तक बीज लगते हैं. बीज मटर के दाने के बराबर आकार के होते हैं और इनका कवच कठोर होता है.

65 प्रतिशत मखाना बिहार में उगाया जाता है. इसे आर्गेनिक हर्बल भी कहते हैं, क्योंकि यह बिना किसी रासायनिक खाद या कीटनाशी के उपयोग के उगाया जाता है. औषधीय गुणों के चलते इसे क्लास वन फूड का दरजा दिया गया है. इसमें एंटी-ऑक्सीडेंट गुण होने से यह काफी लाभप्रद है. यह ब्लड प्रेशर एवं कमर तथा घुटनों के दर्द को नियंत्रित करता है. इसके बीजों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेड, वसा, कैल्शियम एवं फास्फोरस लौह एवं विटामिन बी-1 भी पाया जाता है. मणिपुर के कुछ इलाकों में इसके जड़कंद और पत्ती के डंठल की सब्जी भी बनाते हैं. इसी से अरारोट भी बनता है.

कहां-कहां होती है खेती

दरभंगा स्थित राष्ट्रीय मखाना शोध संस्थान के अनुसार भारत में लगभग 13000 हैक्टर नमभूमि में मखानों की खेती होती है. यहां लगभग नब्बे हजार टन बीज पैदा होता है. देश का 80 प्रतिशत मखाना बिहार की नमभूमि से आता है. इसके अलावा इसकी खेती अलवर, पश्चिम बंगाल, असम, उड़ीसा, जम्मू-कश्मीर, मणीपुर और मध्यप्रदेश में भी की जाती है, परंतु देश में तेजी से खत्म हो रही नमभूमि ने इसकी खेती और भविष्य में उपलब्धता पर सवाल खड़े कर दिये हैं. यदि स्वादिष्ट मखाना खाते रहना है, तो देश की नम भूमियों को भी बचाना होगा.

कैसे बनता है मखाना

मखाना फाक्सनट के बीजों की लाई है. वैसे ही जैसे पाॅपकार्न मक्का की लाई है. इसमें 12 प्रतिशत प्रोटीन होता है. मखाना बनाने के लिए इसके बीजों को फल से अलग कर धूप में सुखाते हैं. नम बनाये रखने के लिए इन पर पानी छींटा जाता है. धूप में सुखाने पर उनमें 25 प्रतिशत तक नमी बची रहती है. सूखे नट्स को लकड़ी के हथोड़ो से पीटा जाता है. इस तरह गरी अलग होने पर बीज अच्छी तरह से सूखते हैं. सूखे बीजों को चलनियों से छाना जाता है.

बड़े बीज अच्छी क्वालिटी के माने जाते हैं. बीजों को बड़े-बड़े लोहे के कढ़ावों में सेंका जाता है. फिर इन्हें टेम्परिंग के लिए 45-72 घंटों के लिए टोकरियों में रखा जाता है. इस तरह इनका कठोर छिलका ढीला हो जाता है. कढ़ाव में सिंक रहे बीजों को 5-7 की संख्या में हाथ से उठा कर ठोस जगह पर रख कर लकड़ी के हथोड़ो से पीटा जाता है. इस तरह गर्म बीजों का कड़क खोल तेजी से फटता है और बीज फटकर लाई (मखाना) बन जाता है. जितने बीजों को सेका जाता है, उनमें से केवल एक तिहाई ही मखाना बनते हैं. लाई बनने पर उनकी पॉलिश और छंटाई की जाती है. इसके लिए इन्हें टोकरियों में रख कर रगड़ा जाता है. इस प्रकार इनके ऊपर लगा कत्थई-लाल रंग का छिलका हट जाता है. पॉलिश करने पर मिले सफेद मखानों को उनके आकार के अनुसार दो-तीन श्रेणियों में छांट लिया जाता है. फिर उन्हें पॉलीथीन की पर्त लगे बैग में भर दिया जाता है.

– रवींद्रनाथ

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