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सिजेरियन के कारण भी हो सकती है एक्टोपिक प्रेगनेंसी

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आजकल सिजेरियन के बढ़ते मामलों के कारण स्कार पर भ्रूण के जम जाने से एक्टोपिक प्रेगनेंसी के मामले बढ़ गये हैं. कभी-कभी समस्या के गंभीर रूप धारण कर लेने के कारण बच्चेदानी को निकलवाने की भी नौबत आ जाती है.
कुछ दिन पहले हॉस्पिटल में एक महिला भरती हुई. उसकी डिलिवरी तीन बार सिजेरियन से हो चुकी थी. छह हफ्ते पहले एक टेस्ट में पता चला कि उन्हें गर्भ ठहर गया है. इसके बाद अचानक ही उन्हें ब्लीडिंग शुरू हो गयी.
अल्ट्रासाउंड में पता चला कि गर्भाशय के अगले हिस्से में गोलाकार सूजन है तथा बच्चेदानी का अंदरूनी हिस्सा खाली है. पहले इस केस को अबॉर्शन का केस माना गया और उसे भ्रूण का कुछ छूटा हुआ अंश मान कर उसका डी एंड सी किया गया. उसके बाद भी ब्लीडिंग बंद नहीं हुई. अबकी बार इसे फाइब्रॉइड का केस माना गया.
लेप्रोस्कोपी द्वारा पता चला कि बच्चेदानी के निचले हिस्से में पिछली सिलाई की हुई स्कार साइट पर एक इंच व्यास का गोलाकार सूजन था. यह सूजन बाहर की ओर था. अब लेप्रोस्कोपी सजर्री से इसे निकाल कर बच्चेदानी को पुन: सिल दिया गया. इसकी बायोप्सी कराने पर पता चला कि यह एक्टोपिक प्रगAेंसी का ही अंश था.
बढ़ रहे हैं ऐसे मामले
हाल के वर्षो में सिजेरियन डिलिवरी का अनुपात बढ़ता जा रहा है और इसी कारण इसके बाद होनेवाली समस्याएं भी बढ़ती जा रही हैं. इन्हीं समस्याओं में से एक है स्कार साइट एक्टोपिक प्रेगनेंसी. सिजेरियन के दौरान गर्भाशय के निचले हिस्से में चीरा लगा कर बच्चे को बाहर निकाला जाता है. इस स्कार पर कभी-कभी भ्रूण आकर जम जाता है और बाहर की ओर बढ़ जाता है.
यदि यह समस्या होती है, तो इसके कई लक्षण हो सकते हैं. यह समस्या होने पर बार-बार ब्लीडिंग हो सकती है, पेट के अंदर भी ब्लीडिंग होने का खतरा होता है. शुरुआत में यह अबॉर्शन होकर बाहर आ सकता है अन्यथा बाद में इसे पेट के रास्ते बाहर निकालना पड़ता है. इसी प्रकार के एक केस में स्कार पर ही भ्रूण आकर जम जाता है और इसमें बच्च विकसित हो जाता है, लेकिन प्लासेंटा एक्रीटा अपनी जगह पर चिपका रह जाता है. यह स्थिति काफी खतरनाक होती है. इसकी सजर्री भी काफी जटिल होती है और कभी-कभी इसकी सजर्री के दौरान गर्भाशय तक निकालने की नौबत आ सकती है.
शुरुआती जांच से होगा बचाव
इस समस्या से बचने के लिए गर्भधारण के समय ही सावधानी बरतनी जरूरी है. यदि पहले कभी सिजेरियन हुआ है, तो गर्भधारण की शुरुआत में ही जांच करवाना बेहतर है. अल्ट्रासाउंड से इसका पता चल सकता है. खास कर यदि लगातार ब्लीडिंग हो, तो जांच करवाना और जरूरी हो जाता है. कई बार यदि एक्टोपिक प्रेगAेंसी का पता पहले चल जाता है, तो एक खास इन्जेक्शन से इसे नष्ट किया जा सकता है. यदि गर्भ थोड़ा अधिक विकसित हो जाये, तो सजर्री की जरूरत पड़ती है. अत: इस मामले में सावधानी बरतना जरूरी है.
आजकल सिजेरियन के बढ़ते मामलों के कारण स्कार पर भ्रूण के जम जाने से एक्टोपिक प्रेगनेंसी के मामले बढ़ गये हैं. कभी-कभी समस्या के गंभीर रूप धारण कर लेने के कारण बच्चेदानी को निकलवाने की भी नौबत आ जाती है.
कुछ दिन पहले हॉस्पिटल में एक महिला भरती हुई. उसकी डिलिवरी तीन बार सिजेरियन से हो चुकी थी. छह हफ्ते पहले एक टेस्ट में पता चला कि उन्हें गर्भ ठहर गया है. इसके बाद अचानक ही उन्हें ब्लीडिंग शुरू हो गयी.
अल्ट्रासाउंड में पता चला कि गर्भाशय के अगले हिस्से में गोलाकार सूजन है तथा बच्चेदानी का अंदरूनी हिस्सा खाली है. पहले इस केस को अबॉर्शन का केस माना गया और उसे भ्रूण का कुछ छूटा हुआ अंश मान कर उसका डी एंड सी किया गया. उसके बाद भी ब्लीडिंग बंद नहीं हुई. अबकी बार इसे फाइब्रॉइड का केस माना गया.
लेप्रोस्कोपी द्वारा पता चला कि बच्चेदानी के निचले हिस्से में पिछली सिलाई की हुई स्कार साइट पर एक इंच व्यास का गोलाकार सूजन था. यह सूजन बाहर की ओर था. अब लेप्रोस्कोपी सजर्री से इसे निकाल कर बच्चेदानी को पुन: सिल दिया गया. इसकी बायोप्सी कराने पर पता चला कि यह एक्टोपिक प्रगAेंसी का ही अंश था.
बढ़ रहे हैं ऐसे मामले
हाल के वर्षो में सिजेरियन डिलिवरी का अनुपात बढ़ता जा रहा है और इसी कारण इसके बाद होनेवाली समस्याएं भी बढ़ती जा रही हैं. इन्हीं समस्याओं में से एक है स्कार साइट एक्टोपिक प्रेगनेंसी. सिजेरियन के दौरान गर्भाशय के निचले हिस्से में चीरा लगा कर बच्चे को बाहर निकाला जाता है. इस स्कार पर कभी-कभी भ्रूण आकर जम जाता है और बाहर की ओर बढ़ जाता है.
यदि यह समस्या होती है, तो इसके कई लक्षण हो सकते हैं. यह समस्या होने पर बार-बार ब्लीडिंग हो सकती है, पेट के अंदर भी ब्लीडिंग होने का खतरा होता है. शुरुआत में यह अबॉर्शन होकर बाहर आ सकता है अन्यथा बाद में इसे पेट के रास्ते बाहर निकालना पड़ता है. इसी प्रकार के एक केस में स्कार पर ही भ्रूण आकर जम जाता है और इसमें बच्च विकसित हो जाता है, लेकिन प्लासेंटा एक्रीटा अपनी जगह पर चिपका रह जाता है. यह स्थिति काफी खतरनाक होती है. इसकी सजर्री भी काफी जटिल होती है और कभी-कभी इसकी सजर्री के दौरान गर्भाशय तक निकालने की नौबत आ सकती है.
शुरुआती जांच से होगा बचाव
इस समस्या से बचने के लिए गर्भधारण के समय ही सावधानी बरतनी जरूरी है. यदि पहले कभी सिजेरियन हुआ है, तो गर्भधारण की शुरुआत में ही जांच करवाना बेहतर है. अल्ट्रासाउंड से इसका पता चल सकता है. खास कर यदि लगातार ब्लीडिंग हो, तो जांच करवाना और जरूरी हो जाता है. कई बार यदि एक्टोपिक प्रेगAेंसी का पता पहले चल जाता है, तो एक खास इन्जेक्शन से इसे नष्ट किया जा सकता है. यदि गर्भ थोड़ा अधिक विकसित हो जाये, तो सजर्री की जरूरत पड़ती है. अत: इस मामले में सावधानी बरतना जरूरी है.
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