21.1 C
Ranchi
Monday, February 10, 2025 | 08:52 pm
21.1 C
Ranchi
Homeलाइफस्टाइलपीठ को लचीला बनाता है भुजंगासन

पीठ को लचीला बनाता है भुजंगासन

- Advertisment -
जिन लोगों को पीठ और मेरुदंड से जुड़ी समस्याएं होती हैं, उन्हें भुजंगासन का अभ्यास जरूर करना चाहिए. इससे पीठ का लचीलापन बढ़ता है. कई स्त्री रोगों में भी यह काफी लाभप्रद है.वास्तव में ‘भुजंगासन’ नाग द्वारा शिकार पकड़ने की क्रिया की नकल है. जिस प्रकार नाग अपने शिकार को पकड़ने के लिए फन उठाता है, ठीक उसी प्रकार भुजंगासन में साधक अपने शरीर को ऊपर उठाता है.
अभ्यास की विधि : कंबल या योग मैट पर पेट के बल लेट जाएं. दोनों पैर एक साथ रहेंगे और पंजे आपस में मिले रहेंगे. तलवा ऊपर की ओर की ओर हो. हथेलियों को जमीन पर कंधों के बगल में रखें. उंगलियां सामने की ओर हों तथा हाथ पीछे की ओर कोहनियों से मुड़े हों. अपनी ललाट को जमीन के ऊपर रखें.
अब पूरे शरीर को शांत व शिथिल करें, विशेषकर पीठ के निचले हिस्से को. यह प्रारंभिक स्थिति है. अब धीरे-धीरे सिर, गरदन तथा कंधों को ऊपर उठाएं. कोहनियों को सीधा करते हुए धड़ को जितना हो सके, ऊपर उठाएं. अभ्यास में भुजाओं की अपेक्षा पीठ की मांसपेशियों का उपयोग करें. पीठ को धनुषाकार बनाएं. अब सिर को धीरे से पीछे की ओर घुमाएं, जिससे ठुड्डी सामने की ओर हो जाये और गरदन का पिछला भाग दबे.
अंतिम स्थिति में नाभी जमीन के नजदीक हो, ताकि पीठ के ऊपर सही खिंचाव पड़े. अंतिम स्थिति में कुछ देर रुकें.अब पूर्व की स्थिति में आने के लिए धीरे-से सिर को आगे लाएं और भुजाओं को मोड़ कर पीठ के ऊपरी भाग को ढीला करें. बारी-बारी से नाभी, छाती और कंधों को नीचे लाएं और अंत में ललाट से जमीन पर स्पर्श करें. अब पीठ के निचले भाग की पेशियों को शिथिल करें. यह एक चक्र हुआ. आठ से 10 चक्र इसका अभ्यास करें.
श्वसन : जब धड़ को ऊपर उठाते हैं, तो श्वास अंदर लें. अंतिम स्थिति में आप श्वास सामान्य भी रख सकते हैं और श्वास को अंदर रोक भी सकते हैं. जब धड़ नीचे लाते हैं, तो श्वास को बाहर छोड़ें.
अवधि : अंतिम स्थिति में क्षमता अनुसार अभ्यास पांच से 10 चक्र करें.सजगता : पूरे अभ्यास में सजगता शरीर की गति को सांस के साथ तालमेल बनाने में रखना चाहिए. आध्यात्मिक स्तर पर आपकी सजगता स्वाधिष्ठान चक्र पर होनी चाहिए.
क्रम : भुजंगासन के पूर्व आगे और पीछे झुकनेवाले आसन करने चाहिए. पीठ और मेरुदंड के सामान्य स्वास्थ्य के लिए शलभासन और धनुरासन कर सकते हैं.
सीमाएं : जिस व्यक्ति को पेप्टिक अल्सर, हर्निया, आंतों की समस्या या हाइपर थायरॉयड हो, उनको यह आसन नहीं करना चाहिए. किसी कुशल योग शिक्षक के मार्गदर्शन में ही आसन करें.
यह आसन पीठ को विशेष लचीला बनाता है तथा उदर अंगों की मालिश करता है. यह स्लिप डिस्क को सही स्थान पर ला सकता है और पीठ दर्द को दूर करता है. मेरुदंड लचीला होता है, तो शरीर और मस्तिष्क के बीच सही ताल-मेल बनता है.
यह अभ्यास पीठ में रक्त-संचार बढ़ाने तथा तंत्रिकाओं को सबल बना कर मस्तिष्क और शरीर के बीच संचार व्यवस्था ठीक करने में अहम है. यह महिलाओं के डिंबाशय एवं गर्भाशय को मजबूत बनाता है तथा मासिक धर्म संबंधी समस्याओं एवं स्त्री रोगों को दूर करने में काफी सहायक है. यह आसन भूख को बढ़ाता है और कब्ज को दूर करता है. गुरदों और एड्रिनल ग्रंथि पर भी काफी सकारात्मक प्रभाव डालता है. इस अभ्यास से कार्टिजोन का स्नव यथावत बना रहता है तथा थायरॉयड ग्रंथि को नियंत्रित करता है.
इस आसन से उदर तथा श्रोणि प्रदेश के विभिन्न अंगों जैसे- आमाशय, अगAयाशय, यकृत, पित्ताशय, जननेंद्रिय तथा उत्सर्जन अंगों आदि की अच्छी मालिश हो जाती है. विशेषकर ल्यूकोरिया, डिस्मेनेरिया जैसे स्त्री रोगों में यह अधिक लाभप्रद है. छाती सामान्य से ज्यादा प्रसारित होने से श्वसन क्रिया में सुधार होता है. अस्थमा में लाभ पहुंचता है.
जिन लोगों को पीठ और मेरुदंड से जुड़ी समस्याएं होती हैं, उन्हें भुजंगासन का अभ्यास जरूर करना चाहिए. इससे पीठ का लचीलापन बढ़ता है. कई स्त्री रोगों में भी यह काफी लाभप्रद है.वास्तव में ‘भुजंगासन’ नाग द्वारा शिकार पकड़ने की क्रिया की नकल है. जिस प्रकार नाग अपने शिकार को पकड़ने के लिए फन उठाता है, ठीक उसी प्रकार भुजंगासन में साधक अपने शरीर को ऊपर उठाता है.
अभ्यास की विधि : कंबल या योग मैट पर पेट के बल लेट जाएं. दोनों पैर एक साथ रहेंगे और पंजे आपस में मिले रहेंगे. तलवा ऊपर की ओर की ओर हो. हथेलियों को जमीन पर कंधों के बगल में रखें. उंगलियां सामने की ओर हों तथा हाथ पीछे की ओर कोहनियों से मुड़े हों. अपनी ललाट को जमीन के ऊपर रखें.
अब पूरे शरीर को शांत व शिथिल करें, विशेषकर पीठ के निचले हिस्से को. यह प्रारंभिक स्थिति है. अब धीरे-धीरे सिर, गरदन तथा कंधों को ऊपर उठाएं. कोहनियों को सीधा करते हुए धड़ को जितना हो सके, ऊपर उठाएं. अभ्यास में भुजाओं की अपेक्षा पीठ की मांसपेशियों का उपयोग करें. पीठ को धनुषाकार बनाएं. अब सिर को धीरे से पीछे की ओर घुमाएं, जिससे ठुड्डी सामने की ओर हो जाये और गरदन का पिछला भाग दबे.
अंतिम स्थिति में नाभी जमीन के नजदीक हो, ताकि पीठ के ऊपर सही खिंचाव पड़े. अंतिम स्थिति में कुछ देर रुकें.अब पूर्व की स्थिति में आने के लिए धीरे-से सिर को आगे लाएं और भुजाओं को मोड़ कर पीठ के ऊपरी भाग को ढीला करें. बारी-बारी से नाभी, छाती और कंधों को नीचे लाएं और अंत में ललाट से जमीन पर स्पर्श करें. अब पीठ के निचले भाग की पेशियों को शिथिल करें. यह एक चक्र हुआ. आठ से 10 चक्र इसका अभ्यास करें.
श्वसन : जब धड़ को ऊपर उठाते हैं, तो श्वास अंदर लें. अंतिम स्थिति में आप श्वास सामान्य भी रख सकते हैं और श्वास को अंदर रोक भी सकते हैं. जब धड़ नीचे लाते हैं, तो श्वास को बाहर छोड़ें.
अवधि : अंतिम स्थिति में क्षमता अनुसार अभ्यास पांच से 10 चक्र करें.सजगता : पूरे अभ्यास में सजगता शरीर की गति को सांस के साथ तालमेल बनाने में रखना चाहिए. आध्यात्मिक स्तर पर आपकी सजगता स्वाधिष्ठान चक्र पर होनी चाहिए.
क्रम : भुजंगासन के पूर्व आगे और पीछे झुकनेवाले आसन करने चाहिए. पीठ और मेरुदंड के सामान्य स्वास्थ्य के लिए शलभासन और धनुरासन कर सकते हैं.
सीमाएं : जिस व्यक्ति को पेप्टिक अल्सर, हर्निया, आंतों की समस्या या हाइपर थायरॉयड हो, उनको यह आसन नहीं करना चाहिए. किसी कुशल योग शिक्षक के मार्गदर्शन में ही आसन करें.
यह आसन पीठ को विशेष लचीला बनाता है तथा उदर अंगों की मालिश करता है. यह स्लिप डिस्क को सही स्थान पर ला सकता है और पीठ दर्द को दूर करता है. मेरुदंड लचीला होता है, तो शरीर और मस्तिष्क के बीच सही ताल-मेल बनता है.
यह अभ्यास पीठ में रक्त-संचार बढ़ाने तथा तंत्रिकाओं को सबल बना कर मस्तिष्क और शरीर के बीच संचार व्यवस्था ठीक करने में अहम है. यह महिलाओं के डिंबाशय एवं गर्भाशय को मजबूत बनाता है तथा मासिक धर्म संबंधी समस्याओं एवं स्त्री रोगों को दूर करने में काफी सहायक है. यह आसन भूख को बढ़ाता है और कब्ज को दूर करता है. गुरदों और एड्रिनल ग्रंथि पर भी काफी सकारात्मक प्रभाव डालता है. इस अभ्यास से कार्टिजोन का स्नव यथावत बना रहता है तथा थायरॉयड ग्रंथि को नियंत्रित करता है.
इस आसन से उदर तथा श्रोणि प्रदेश के विभिन्न अंगों जैसे- आमाशय, अगAयाशय, यकृत, पित्ताशय, जननेंद्रिय तथा उत्सर्जन अंगों आदि की अच्छी मालिश हो जाती है. विशेषकर ल्यूकोरिया, डिस्मेनेरिया जैसे स्त्री रोगों में यह अधिक लाभप्रद है. छाती सामान्य से ज्यादा प्रसारित होने से श्वसन क्रिया में सुधार होता है. अस्थमा में लाभ पहुंचता है.
You May Like

Prabhat Khabar App :

देश, दुनिया, बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस अपडेट, टेक & ऑटो, क्रिकेट राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां.

- Advertisment -

अन्य खबरें

- Advertisment -
ऐप पर पढें