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अफ्रीका का नया चेहरा

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आदिस अबाबा (इथियोपिया) से हरिवंश अफ्रीका दिवस के दिन आज, दूसरे ‘अफ्रीका-इंडिया, फोरम’ 2011 शिखर सम्मेलन का ‘आदिस अबाबा घोषणा पत्र’ जारी हुआ. प्रेस कांफ्रेंस में, अफ्रीकन यूनियन कमीशन के चेयरपर्सन ज्यां पिंग ने इसे ‘ अत्यंत सफल’ कहा. यह भी बताया कि 2015 में दिल्ली में तीसरा शिखर सम्मेलन होगा. अफ्रीका दिवस के दिन […]

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आदिस अबाबा (इथियोपिया) से हरिवंश

अफ्रीका दिवस के दिन आज, दूसरे ‘अफ्रीका-इंडिया, फोरम’ 2011 शिखर सम्मेलन का ‘आदिस अबाबा घोषणा पत्र’ जारी हुआ. प्रेस कांफ्रेंस में, अफ्रीकन यूनियन कमीशन के चेयरपर्सन ज्यां पिंग ने इसे ‘ अत्यंत सफल’ कहा. यह भी बताया कि 2015 में दिल्ली में तीसरा शिखर सम्मेलन होगा. अफ्रीका दिवस के दिन जारी इस घोषणा पत्र को उन्होंने खास महत्व दिया.
उसमें 15 बिंदु हैं. अध्यक्ष, अफ्रीकन संघ के तेदोरो ओवियांग न्गयूमा म्बासोगो ने भी इसे सार्थक कहा. यह भी कहा कि संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में भारत की हम मदद करेंगे, स्थायी सुरक्षा समिति के सदस्य बनने में. इस प्रेस कांफ्रेंस में प्रधानमंत्री ने अफ्रीका दिवस पर शुभकामनाएं दीं. कहा, आर्थिक-राजनीतिक सहयोग का एक नया दौर आरंभ होगा. भारत के प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह से विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष में पश्चिमी वर्चस्व के बारे में पूछा गया, तो उनका जवाब साफ था. अंतरराष्ट्रीय संबंधों में सत्ता संबंध निर्णायक होता है. आशय था कि ताकतवर सत्ता को अपदस्थ करना कठिन होता है.
यह एक प्रक्रिया के तहत होगा. इसके लिए विकासशील देशों को एक होना पड़ेगा. एक विदेशी पत्रकार ने पूछा कि अफ्रीका के कई देशों में राजनीतिक अस्थिरता है, ऐसे माहौल में भारत अपने निवेश को कैसे सुरक्षित मानता है? प्रधानमंत्री ने लार्ड कींस के एक महत्वपूर्ण कथन को उद्धृत किया. ‘एन एक्ट ऑफ इन्वेस्टमेंट इज एन एक्ट ऑफ फेथ’ (निवेश का काम, विश्वास अर्जित करने का काम है).
एक सवाल अफ्रीकन यूनियन चेयरपर्सन से पूछा गया. अफ्रीका में हो रहे भारतीय निवेश को चीन या अन्य देशों से आप कैसे फर्क करते हैं? उनका जवाब बड़ा ‘डिप्लोमेटिक’ था. उन्होंने कहा कि आज, दुनिया में आपसी सहयोग जरूरी है. इसी रास्ते मानव विकास संभव है. अफ्रीका एक महाद्वीप है. हम पीछे छूटे लोग हैं. हम इसे दूर करने के लिए कई मोरचों पर काम कर रहे हैं. अफ्रीका-इंडिया फोरम की तरह हमारे यहां चीन-अफ्रीका का फोरम है. तुर्की-अफ्रीका फोरम है. अन्य देशों के साथ ऐसे फोरम हैं.
उन्होंने साफ उत्तर नहीं दिया कि भारत को हम अलग दृष्टि से देखते हैं. यह अफ्रीका का नया चेहरा है, जिसे जानने-समझने की जरूरत है. हम आदिस अबाबा स्थित अफ्रीका यूनियन कार्यालय में बैठे थे. अनेक अफ्रीकी देश के शासक या नुमाइंदे मौजूद थे. उनके साथ शासक वर्ग के लोग भी. उनके कामकाज-बातचीत से लगा, अफ्रीका अपनी ताकत जान गया है. अब वह अफ्रीका, जिसके नाम के साथ यूगांडा के ईदी अमीन व अन्य तानाशाहों की झलक मिलती थी, बदल रहा है. ये जानते हैं कि अमेरिका और पश्चिम के देश ताकतवर हैं. उन्हें ‘ साम्राज्यवादी ताकत’ कह कर अतीत की चर्चा ये करेंगे, पर उन्हें पूरी तरह नकारनेवाले नहीं. यह चतुर और व्यावहारिक राजनीति है. उसी तरह चीन के मंसूबे वे जान रहे हैं, पर जानते हैं कि विदेशी पूंजी के बगैर हम भी नहीं बढ़नेवाले. उसी तरह जानते हैं कि भारत चीन या पश्चिम जैसा नहीं है.
वह अफ्रीकी देशों की जरूरतों के अनुसार सहयोग दे रहा है, पर खुल कर वे सिर्फ भारत के साथ नहीं रहनेवाले. आज अफ्रीका की स्थिति है कि उसके पास सब आ रहे हैं, यह वह जानता है, और इसी का लाभ ले रहा है. बल्कि यह कहना सही होगा कि पश्चिम, चीन और भारत को अफ्रीका की जरूरत है, तो अफ्रीका को भी इन देशों की उतनी ही जरूरत है. सब पक्ष यह सच जान-समझ रहे हैं.
अफ्रीका बढ़ रहा है, पर वहां अब भी भयावह गरीबी है. मध्य वर्ग नहीं है. प्रोफेशनल्स नहीं हैं. इंस्टीट्यूशंस नहीं हैं. एक पढ़ा-लिखा शासक वर्ग (इलीट क्लास) हर अफ्रीकी देश में उभर आया है. भारी भ्रष्टाचार में यह वर्ग डूबा है. इस वर्ग के बाहर गरीब अफ्रीकी लोगों की बड़ी जमात है.
दिनांक : 26.05.2011

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