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शारीरिक थकान दूर कर स्फूर्ति देता है द्विकोणासन

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घंटों तक एक ही बॉडी पोश्चर में कार्य करने से हमारी पीठ, गरदन व कंधे अकड़ जाते हैं. इनमें दर्द होने लगता है. इस समस्या में द्विकोणासन अत्यंत लाभकारी है. यह कंधों के जोड़ों को ढीला करता है तथा मेरुदंड के कड़ेपन को दूर करता है. इससे थकान दूर होती है. द्विकोणासन मुख्य रूप से […]

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घंटों तक एक ही बॉडी पोश्चर में कार्य करने से हमारी पीठ, गरदन व कंधे अकड़ जाते हैं. इनमें दर्द होने लगता है. इस समस्या में द्विकोणासन अत्यंत लाभकारी है. यह कंधों के जोड़ों को ढीला करता है तथा मेरुदंड के कड़ेपन को दूर करता है. इससे थकान दूर होती है.
द्विकोणासन मुख्य रूप से खड़े होकर किया जाने वाला अभ्यास है. ‘द्वि’ का अर्थ है- दो. अत: इसमें शरीर को इस तरह मोड़ते हैं कि दो कोण बनते हैं. यह आसन मेरुदंड के ऊपरी भाग और स्कंधास्थि के बीच की पेशियों को मजबूत बनाता है और वक्ष एवं गरदन को विकसित करता है. कंधों को काफी लचीला और ढीला बनाता है.
आसन की विधि
जमीन पर कंबल या योग मैट बिछा कर सीधे खड़े हो जाएं. दोनों पैरों को एक फुट की दूरी पर रखें. दोनों हाथों को पीठ के पीछे ले जाते हुए उंगलियों को आपस में फंसाएं. यह प्रारंभिक स्थिति है. बिना जोर लगाये हाथों को इस तरह मोड़ें कि हथेलियां उध्र्वमुखी तथा शरीर से दूर हो जायें. ध्यान रहे कि उंगलियां आपस में फंसी रहें. अब कमर के पास से धड़ को सामने की ओर झुकाएं, साथ ही साथ दोनों हाथों को पीठ के पीछे ऊपर की ओर उठाते हुए तानें. हाथों को और ऊपर की तरफ तानने का प्रयास करें, कंधों को पीछे की तरफ खिंचते जायें. लेकिन ध्यान रहे कि जोर न लगे.
भुजाएं उत्तेजक का कार्य करती हैं और कंधे एवं वक्ष में होनेवाले खिंचाव को द्विगुणित करती जाती हैं. जितना संभव हो, सामने की ओर देखने का प्रयास करें, जिससे आपका चेहरा जमीन के समानांतर हो जाये. कुछ समय तक आप अंतिम स्थिति में रहें, फिर सीधी या प्रारंभिक स्थिति में लौट आएं. अभ्यास के क्रम में आपकी भुजायें लिवर की तरह कंधों और छाती में खिंचाव को बढ़ाने का कार्य करेंगी. अभ्यास को आरंभ में पांच बार और जब आप अभ्यस्त हो जायें, तो आठ से 10 चक्र कर सकते हैं.
श्वसन : अभ्यास के क्रम में जब आप खड़े होते हैं तब श्वास को अंदर की तरफ लें और जब आप सामने की तरफ झुकते हैं तब श्वास बाहर की ओर छोड़ें. जब आप प्रारंभिक स्थिति में लौटते हैं, उस समय पुन: श्वास को अंदर की तरफ लें. अंतिम स्थिति में श्वास को रोकें.
सजगता : शारीरिक गतिविधि, श्वसन तथा अंतिम अवस्था में कंधे व छाती के प्रसार में वर्धन के प्रति सजग रहें. आध्यात्मिक स्तर पर अभ्यास के दौरान अपने अनाहत चक्र के प्रति सजग रहें.
सीमाएं : जिस व्यक्ति को स्कंध-संधि में तीव्र पीड़ा हो, वह यह अभ्यास न करे. जिन्हें सर्वाइकल, कमर में दर्द, साइटिका का बढ़ा दर्द या छह माह के अंदर किसी शारीरिक शल्य चिकित्सा हुआ हो, उन लोगों को भी इस अभ्यास से बचना चाहिए. गर्भावस्था में भी इसे नहीं करना चाहिए. जिनको माइग्रेन का दर्द होता हो या आंखों में घाव हो, उनको भी इसे नहीं करना चाहिए.
टिप्पणी : इस अभ्यास में प्रकारांतर लाने के लिए हाथ की उंगलियों को फंसा लें और अपनी हथेलियों को बाहर की ओर मोड़ कर अभ्यास को करें.
आसन के लाभ
आसन के दौरान छाती अनपेक्षित रूप से प्रसारित होती है और परिणामस्वरूप संबंधित मांसपेशियां और स्नायु ढीले व शिथिल होते हैं.
गरदन के आस-पास मेरुदंडीय मांसपेशियों तथा स्नायुओं के स्वास्थ्य में वृद्धि होती है. यह कंधों के जोड़ों को ढीला करता है तथा गरदन व पीठ के ऊपरी हिस्से के कड़ेपन को दूर करता है. साथ ही साइटिका नर्वस में खिंचाव लाता है. यह उनके लिए अत्यंत लाभकारी है, जिन्हें ऊपरी भाग और कमर में कड़ापन रहता हो. यह शारीरिक थकान को भी काफी हद तक दूर करता है. इससे मस्तिष्क में खून का संचार पर्याप्त मात्र में होता है.

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