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बच्चों में बढ़ते अंधेपन का बड़ा कारण विटामिन-ए की कमी

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डॉ महिपाल सचदेव निदेशक, सेंटर फार साइट, नयी दिल्ली आज के समय में विटामिन-ए की कमी बच्चों में बढ़ते अंधेपन का एक बहुत बड़ा कारण है. साथ ही इससे कई अन्य बीमारियां, जैसे- डायरिया और मीजल्स आदि होने की भी अधिक संभावना रहती है, जिससे मौत का खतरा बढ़ जाता है. शरीर में विटामिन-ए की […]

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डॉ महिपाल सचदेव
निदेशक, सेंटर फार साइट, नयी दिल्ली
आज के समय में विटामिन-ए की कमी बच्चों में बढ़ते अंधेपन का एक बहुत बड़ा कारण है. साथ ही इससे कई अन्य बीमारियां, जैसे- डायरिया और मीजल्स आदि होने की भी अधिक संभावना रहती है, जिससे मौत का खतरा बढ़ जाता है. शरीर में विटामिन-ए की पर्याप्त मात्रा सामान्य दृष्टि, हड्डियों का विकास, हेल्थी स्किन, पाचन के म्यूकस मेम्ब्रेन की सुरक्षा, श्वास प्रणाली और यूरेनरी टै्रक्ट को संक्रमित होने से बचाता है.
विटामिन-ए की कमी 118 देशों में एक बड़ी समस्या बन चुकी है, खासकर दक्षिणी-पूर्वी एशिया में, जहां इसका निशाना छोटे छोटे बच्चे बन रहे हैं. हालांकि बहुत से लोग यह जानते हैं कि विटामिन-ए की कमी से लोग अंधेपन की चपेट में आ सकते हैं. लेकिन कई लोगों को इस बात की जानकारी नहीं है कि ऐसे बच्चे जिनमें विटामिन-ए की कमी होती है, उनमें अंधेपन की शुरुआत होने से पहले ही कई अन्य बीमारियां, जैसे मीजल्स, डायरिया और मलेरिया आदि से होनेवाली मौत का खतरा 25 प्रतिशत तक बढ़ जाता है.
क्यों जरूरी है विटामिन-ए
विटामिन-ए रेटिना पर पड़ने वाली रोशनी को नर्व सिग्नल में बदलता है. इससे आपके बच्चों की आंखों की सेहत अच्छी होती है. जबकि इसकी कमी बचपन में आंखों की बीमारी का सबसे प्रमुख कारण होती है. जब शरीर में विटामिन-ए की कमी होती है, तो आंखों के विभिन्न हिस्सों में बदलाव आने शुरू हो जाते हैं. सबसे प्रमुख लक्षण है कि बच्चे को अंधेरे में देखने में दिक्कत होती है.
मां का दूध है प्रमुख प्राकृतिक स्रोत
विश्व स्वास्थ्य संगठन का लक्ष्य है, पूरे विश्व में विटामिन-ए की कमी और इसके दुष्प्रभाव को जड़ से उखाड़ना. अच्छे व स्वस्थ जीवन की नींव है- स्वस्थ बचपन, जिसके लिए विटामिन-ए एक बेहद आवश्यक तत्व है.
मां का दूध मां का दूध विटामिन-ए का एक प्राकृतिक स्रोत होता है. विटामिन-ए की कमी को खत्म करने के लिए सबसे बेहतर तरीका है कि बच्चों को शुरू से मां का दूध पिलाया जाये.
विटामिन-ए की कमी को पूरा करने के लिए फूड फोर्टिफिकेशन भी एक बेहतर उपाय है, जिसे अब कई देशों में अपनाया जा रहा है और इसका भविष्य भी बेहद सुनहरा है. विश्व के कई भागों में प्रमुख खाद्य पदार्थ, जैसे- शक्कर, मैदा और बनावटी मक्खन को विटामिन-ए और बाकी अन्य माइक्रोन्यूयूट्रिएंट्स के साथ फोर्टिफाइ किया जाता है. विटामिन-ए की कमी के मामलों में मरीज को ओरल या फिर इंजेक्टेबल विटामिन-ए के डोज दिये जाते हैं.
बचाव के कदम : इसका बेहतर बचाव यही है कि व्यक्तिगत तौर पर इसकी रोकथाम की जाये. इसलिए हमेशा ध्यान रखिए और यह सुनिश्चित कीजिए कि आप का बच्चा खूब सारी हरी सब्जियां और फल खाये, रोजाना दूध पीए, ताकि वह विटामिन-ए की कमी से मीलों दूर रहे.
विटामिन सी और ई भी जरूरी
विटामिन सी और ई भी आंखों के लिए जरूरी हैं. ये मोतिया और उम्र के मांसपेशियों पर पड़ने वाले असर को कम करते हैं. आप अगर अपने बच्चे को इन विटामिन से भरपूर आहार- ब्रोकली, कीवी, संतरा, गोभी, सूरजमुखी बीज, बादाम, देते हैं, तो भविष्य में आपके बच्चे की नजरों को लाभ होगा. ये आंखों पर पड़ने वाले दबाव को कम करते हैं.
केस स्टडी
हाल ही में एक पैडेट्रीशियन ने मुझे एक बच्चे को देखने के लिए बुलाया था. वह बच्चा कुछ दिन पहले उस पैडेट्रीशियन के पास डायरिया के इलाज के लिए आया था. उसका पिछला रिकॉर्ड देखते ही मैं समझ गया था कि बच्चा अवश्य ही विटामिन-ए और अपर्याप्त पोषण से जूझ रहा है.
बच्चे को देख कर मैं खुद को बेबस महसूस करने लगा, क्यों कि विटामिन-ए की कमी के कारण उसे केराटोमेलेशिया (कोर्निया का पिघलना) नामक बीमारी हो गयी थी और वह सदा के लिए अपनी दृष्टि खो चुका था.
विटामिन-ए कमी के लक्षण
शुरुआती लक्षण हैं- रात में कम दिखना. अन्य लक्षण हैं- आंखों में सूखापन, आंखों में सिकुडन, बढ़ता धुंधलापन, मुंह में छाले, कोर्निया में रूखापन आना. विटामिन-ए की कमी के निरंतर बढ़ने से आंखों के सफेद भाग के मेम्ब्रेन में सिल्वर-ग्रे रंग का सूखे से झाग का जमाव. सही इलाज न कराने पर कोर्निया का रूखापन बढ़ता ही जाता है, जिससे कोर्नियल संक्रमण, रप्चर व कुछ ऐसे टिश्यू बदलाव होते हैं, जिससे मरीज अक्सर अंधेपन का शिकार हो जाता है.
इसे ऐसे पहचानें
रूखी त्वचा और रूखे बाल.
साइनस, सांस संबंधी, यूरेनरी और पाचन में संक्रमण.
वजन न बढ़ना
कोर्निया का हल्का होना (क्सेरोफ थाल्मिया)
नर्वस डिसऑर्डर व रात में कम दिखाई देना.
छह माह से पांच साल के बच्चों को दो हाइ डोज
बच्चों को विटामिन-ए की भरपूर खुराक देने से उनका जीवन बढ़ता है, अन्य बीमारियों का खतरा कम होता है, बच्चों का स्वास्थ्य अच्छा रहता है और हेल्थ सिस्टम व अस्पताल का दबाव भी कम हो जाता है.
अब यह प्रमाणित किया जा चुका है कि छह महीने से लेकर पांच साल तक के बच्चों को एक साल तक विटामिन-ए के दो हाइ डोज सुरक्षित और कॉस्ट इफेक्टिव हैं. विटामिन-ए की कमी को समाप्त करने के लिए यह एक बेहतर कदम है. दूध पिलानेवाली माताओं को विटामिन-ए की खुराक देना भी बच्चों के लिए बेहद आवश्यक है.
प्रमुख खाद्य स्रोत
विटामिन-ए दूध, लिवर, अंडे, मछली, लाल और नारंगी फल, हरी पत्तेदार सब्जियों आदि में पाया जाता है. प्रमुख खाद्य पदार्थ हैं- अखरोट, फिश लिवर, फिश लिवर ऑयल, लहसुन, पपीता, नारंगी, सीताफल, पालक, शकरकंद आदि.
कहते हैं आंकड़ें
प्रिवेंट ब्‍लाइंडनेस अमेरिका के अनुसार अमेरिका में स्कूल जाने से पहले 20 में से एक बच्चे व स्कूल जाने वाले हर चौथे बच्चे की नजर कमजोर होती है. भारत में भी 14 वर्ष से कम आयु के करीब 41 फीसदी बच्चों को नेत्र संबंधी विकार हैं. करीब 42 फीसदी कामगार, 42 फीसदी ड्राइवर और 45 फीसदी बुजुर्गों में भी इसी तरह की समस्या है. विटामिन-ए की कमी का अंदेशा होने पर डॉक्टर खून जांच की सलाह दे सकते हैं, ताकि आपके शरीर में विटामिन-ए की कमी के स्तर का पता लगाया जा सके.

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