कला को बढ़ावा देने के साथ ही प्रतिभा को निखारने का काम करना आसान नहीं होता है. आर्ट जैसे वृहद क्षेत्र में ऐसे कई लोग हैं, जिन्होंने अपनी कला के दम पर अपनी पहचान बनाने के साथ ही दूसरों के लिए भी मुकाम तय किया है. बिहार के रहने वाले विजय भारद्वाज भी ऐसे ही कलाकार हैं, जो खुद को मांजने के साथ ही प्रतिभा को भी निखारने का कार्य कर रहे हैं. प्रस्तुत है सुजीत कुमार से बातचीत के प्रमुख अंश
-सबसे पहले अपने बारे में बताये. फिल्म लाइन से जुड़ने की कोई खास वजह?
– मैं पीसी कॉलोनी, कंकड़बाग का रहने वाला हूं. पिता रवींद्र प्रसाद सिंह कॉलेज ऑफ कॉमर्स में बॉटनी डिपार्टमेंट में प्रोफेसर हैं. घर में और भी सदस्य हैं. फिल्मों से जुड़ने की जहां तक बात है तो यह मेरे मन में शुरू से था. सन 2000 के करीब में मैं पढ़ने के लिए दिल्ली गया. तब किरोड़ीमल कॉलेज में नामांकन हुआ. इसी दौरान वहां फिल्म हजारों ख्वाहिश ऐसी की शूटिंग चल रही थी. उससे मैं बहुत आकृष्ट हुआ. मुझे लगा यह मेरे मन के लायक कार्य है. फिर मैं वहीं पर यूनिट से जुड़ गया और कार्य करने लगा. यह पहला मौका था जब मेरे दिल ने कहा कि मुझे इसी लाइन से जुड़ना है. मैं समाज सेवा करना चाहता था लेकिन माध्यम कला को ही बनाना चाहता था. बस इस लाइन में चला आया.
-पहला मौका कैसे मिला? उसमें कितनी दिक्कत आयी?
– किरोड़ीमल से एमबीए पूरा कर ही चुका था लेकिन दिमाग में कुछ और बातें चल रही थी. तब मैं पुणे चला गया. वहां एफटीआई से डायरेक्शन का कोर्स किया. तब तक कई लोगों से बात हो चुकी थी. डीडी वन के लिए एक सीरियल बनाने का मौका मिला, नाम था तिलक. यह दहेज प्रथा पर आधारित थी. इसकी शूटिंग मुजफ्फरपुर व पटना में हुई थी. सीरियल बनने के बाद रिलीज होने का वक्त नहीं मिल रहा था. तब पता चला कि स्ट्रगल क्या होता है? इसे रिलीज कराने के लिए कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ा. अंत में मेहनत रंग लायी और सीरियल दर्शकों के सामने आया. इसके बाद किडनी रैकेट पर आधारित सीरियल ऑपरेशन, वक्त के ऊपर आधारित फिल्म 30 मिनट को बनाया. इसमें रिया सेन की मुख्य भूमिका थी. फिर धीरे-धीरे काम चल पड़ा. चेन्नई एक्सप्रेस में आर्ट डायरेक्टर की भी जिम्मेदारी संभाल चुका हूं.
-बच्चों को लेकर आप ने काफी कार्य किया है, विशेष रूप से अनाथ व मूक बधिर बच्चे. इसकी कोई खास वजह?
– मेरा मानना है कि बच्चों में बहुत प्रतिभा होती है. हम किसी को भी एक दूसरे से तुलना नहीं कर सकते हैं. जैसे आम बच्चे होते हैं वैसे ही वो बच्चे भी होते हैं. जो अनाथ या फिर मूक बधिर होते हैं. सामान्य बच्चों के लिए पहल तो सब करते हैं लेकिन ऐसे बच्चों के लिए कोई पहल नहीं करता. बस मेरी कोशिश यही है कि हिंदुस्तान के जो करोड़ाें बच्चे जो इस श्रेणी में उनको प्रमोट करना है. इसके लिए मैंने अपने हिट शो नंबर वन ड्रामेबाज में भी इन बच्चों का मौका दिया. अनाथ, विक्लांग, मूक बधिर एवं बेटियों के लिए कलर संस्कृति के क्षेत्र में एक नये मुकाम के लिए आवाज उठाने की कोशिश है.
-आने वाले प्रोजेक्ट्स कौन कौन से हैं?
– दहेज प्रथा के ऊपर धारावाहिक तिलक, ऑपरेशन, नंबर वन ड्रामेबाज, डॉक्यूमेंट्री सांग बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, वीमेन फाइट अगेंस्ट क्राइम जैसे कई प्रोजेक्ट बना कर तो लांच कर ही चुका हूं. अब नमस्ते इंडिया और भ्रूण हत्या पर बन रही इंश्योरेंस मूवी पर कार्य कर रहा हूं. इंश्योरेंस मूवी में बिहार के भी टैलेंटेड बच्चों को काम दे रहा हूं. जबकि नमस्ते इंडिया करीब ढ़ाई मिनट का देशभक्ति गीत है. जो कि देश के 16 भाषाओं में होगा. इसे 26 जनवरी को रिलीज किया जायेगा. केंद्रीय पर्यटन मंत्री महेश शर्मा इस सांग को रिलीज करेंगे.