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सुरक्षित मातृत्व दिवस : सुरक्षित प्रसव को लेकर जागरुकता जरूरी

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नयी दिल्ली : भारत में मातृ मृत्यु दर के चिंताजनक स्तर और ग्रामीण क्षेत्रों में सुरक्षित प्रसव को लेकर जागरुकता की कमी के मद्देनजर हर साल 11 अप्रैल को राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस मनाया जाता है जिसका मकसद गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए समुचित स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिहाज से जागरुकता […]

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नयी दिल्ली : भारत में मातृ मृत्यु दर के चिंताजनक स्तर और ग्रामीण क्षेत्रों में सुरक्षित प्रसव को लेकर जागरुकता की कमी के मद्देनजर हर साल 11 अप्रैल को राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस मनाया जाता है जिसका मकसद गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए समुचित स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिहाज से जागरुकता पैदा करना है.

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इसके उद्देश्यों में अस्पतालों में जाकर सुरक्षित प्रसव कराने के महत्व को लेकर जागरुकता लाना भी शामिल है. देश में अस्पतालों में प्रसव के मामलों में तेजी से इजाफा हुआ है लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि अभी बहुत कुछ किया जाना है और जागरुकता लाने के प्रयास बढ़ाने होंगे. स्वास्थ्य से जुड़े क्षेत्रों में काम कर रही कई संस्थाओं के संगठन ‘व्हाइट रिबन अलायंस इंडिया’ (डब्ल्यूआरएआई) ने सुरक्षित मातृत्व की दिशा में जागरुकता लाने के लिए सुरक्षित मातृत्व दिवस मनाने की पहल की थी.

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भारत सरकार ने 2003 में 11 अप्रैल को कस्तूरबा गांधी की जयंती पर राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस मनाने की घोषणा की थी. उसी साल से हर साल देश में यह मनाया जाता है. इस अवसर पर यहां फोर्टिस फ्लाइट लेफ्टिनेंट राजन ढल अस्पताल की वरिष्ठ चिकित्सक डा. पायल चौधरी ने कहा कि खानपान, व्यायाम और परिवेश आदि से संबंधित कुछ ध्यान रखा जाये तो महिलाएं गर्भावस्था से लेकर बच्चे के जन्म तक और उसके बाद भी सुरक्षित और स्वस्थ रह सकती हैं. उन्होंने कहा कि एनीमिक गर्भवती महिलाओं को सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके शरीर में सामान्य की तुलना में आयरन की अधिक मात्रा जाये. इससे लाल रक्त कोशिकाएं बनेंगी और शरीर में खून बढ़ेगा. इस संबंध में पोषक आहार के साथ विटामिन बी12 और आयरन जैसे तत्व शामिल हैं.

डॉ चौधरी के अनुसार गर्भवती महिलाओं को रक्त चाप को उचित स्तर पर बनाये रखने के लिए श्वसन संबंधी व्यायाम करने चाहिए. महिलाओं को पूरी गर्भावस्था के दौरान नियमित अंतराल पर डॉक्टर से मिलते रहना चाहिए. उन्होंने कहा कि इस दौरान शरीर में अनेक शारीरिक और हार्मोनल बदलाव होते हैं इसलिए तनाव कम से कम लेना चाहिए. विशेषज्ञ की सलाह के अनुसार योग और व्यायाम करने चाहिए. डॉक्टर के परामर्श के साथ ही तेजी से टहलने को भी नियमित जीवनचर्या में जोड़ा जा सकता है. यूनीसेफ इंडिया के मुताबिक दुनियाभर में रोजाना 8000 महिलाओं की मौत गर्भावस्था और प्रसव से जुड़े उन कारकों से हो जाती है जिन्हें समय रहते रोका जा सकता है.

इनमें करीब 20 प्रतिशत मामले भारत से हैं. इस अवसर पर स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ रीता बक्शी ने कहा, हमारे देश में गर्भवती महिलाओं की सुरक्षा और स्वछता के लिए उपयुक्त कदम उठाए जाने चाहिए| यह मुद्दा बहुत ही ध्यान देने वाला है, क्योंकि इस क्षेत्र में भारत बहुत पीछे रह गया हैं.’ इंटरनेशनल फर्टिलिटी सेंटर की संस्थापक डॉ. बक्शी ने कहा कि देश में महिलाओं को सैनिटेशन सुविधाओं के बारे में जागरूक करना भी बहुत आवश्यक हैं. शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जिससे जागरूकता की आवाज दूर तक पहुंचाई जा सकती है.’

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