घर की दुर्गा : यह है आज से देवी मां जिसने 18 साल की उम्र में बनायी अंतरराष्ट्रीय पहचान

आज से देवी मां के नौ रूपों का महापर्व नवरात्र शुरू हो रहा है. इस मौके पर हम ‘घर की दुर्गा’ नाम से कॉलम शुरू कर रहे हैं. इसमें शहर की उन लड़कियों की सक्सेस स्टोरी प्रकाशित करेंगे, जिन्होंने अपनी फील्ड में एक अलग मुकाम बनाया है. आज पढ़िए फुटबाॅलर श्वेता शाही की कहानी. गांव […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 21, 2017 1:58 PM
an image
आज से देवी मां के नौ रूपों का महापर्व नवरात्र शुरू हो रहा है. इस मौके पर हम ‘घर की दुर्गा’ नाम से कॉलम शुरू कर रहे हैं. इसमें शहर की उन लड़कियों की सक्सेस स्टोरी प्रकाशित करेंगे, जिन्होंने अपनी फील्ड में एक अलग मुकाम बनाया है. आज पढ़िए फुटबाॅलर श्वेता शाही की कहानी.
गांव भदाही, जिला नालंदा की रहनेवाली श्वेता शाही का नाम खेल जगत में अब पहचान की मोहताज नहीं हैं. दो बार बिहार सरकार से खेल का सर्वोच्च सम्मान ले चुकीं श्वेता रग्बी फुटबॉल की स्टार खिलाड़ी हैं.
श्वेता एक छोटे से गांव से निकलकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 18 वर्ष की उम्र में अपनी छाप छोड़ी हैं. 2015 में भारतीय रग्बी टीम में श्वेता का चयन हुआ और इसी वर्ष एशियन चैंपियनशिप में टीम ने रजत पदक जीता. वहीं 2016 में एशियन यूथ अंडर-18 में भारतीय टीम ने कांस्य पदक अपने नाम किया. स्कूली एथलेटिक्स खेल से अपनी सफर की शुरुआत करनेवाली श्वेता शाही 2013 में रग्बी फुटबॉल से जुड़ी. तब से लेकर अब तक श्वेता ने राज्य के लिए कई पदक जीते है. श्वेता ने कहा कि शुरुआत में मुझे रग्बी फुटबॉल से बहुत डर लगता था.
यह बॉडी टच गेम है, जिसमें चोटिल होने की संभावना ज्यादा रहती है. श्वेता के गांव में रग्बी फुटबॉल के लिए मैदान नहीं है. वह दौड़ने के लिए सुबह सड़क पर हाफ पैंट पहन कर निकलती थीं. वहीं कुछ लोगों को यह अच्छा नहीं लगता, तो भद्दे कमेंट भी पास करते थे, लेकिन इन सबसे न तो श्वेता पर कोई असर पड़ा और न ही उसके परिवार पर. उसके पिता सुजीत कुमार शाही पेशे से किसान है.
उन्होंने कभी श्वेता को खेलने से नहीं रोका. श्वेता बताती है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने के बाद गांव का पूरा माहौल बदल गया, जो लोग मुझे कोसते था आज वह मेरी सराहना करते नहीं थकते हैं. अब यह खेल मेरे गांव में कई लोग खेलते हैं. मुझे भी अब अभ्यास करने में आसानी होती है. लड़कों के साथ मैं अब रग्बी खेलती हूं, जिससे मेरे प्रदर्शन में बहुत सुधार हुआ है.
मेरा भाई सुधांशु शाही भी रग्बी खेलता है. 2015 में पाटलिपुत्र खेल परिसर में आयोजित नेशनल रग्बी टूर्नामेंट के दौरान श्वेता का बायां पैर टूट गया था. इस वजह से उसे टीम से बाहर होना पड़ा. बेहतर इलाज कराने के बाद करीब छह माह बाद फिर खेल में वापसी की.
Exit mobile version