नर्वस सिस्टम के लिए लाभकारी है उज्जायी प्राणायाम

उज्जायी प्राणायाम वैसे तो बहुत ही सरल है, पर ध्यान की विभिन्न पद्धतियों के साथ इसे जोड़ देने पर इसका प्रभाव और महत्व बढ़ जाता है. उज्जायी प्राणायाम का विशेष प्रकार है. इसके अभ्यास के लिए गले से एक विशेष सिसकारी या खरखराहट की जाती है. इस प्राणायाम का वर्णन कठिन है, पर अभ्यास काफी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 7, 2017 12:12 PM
उज्जायी प्राणायाम वैसे तो बहुत ही सरल है, पर ध्यान की विभिन्न पद्धतियों के साथ इसे जोड़ देने पर इसका प्रभाव और महत्व बढ़ जाता है. उज्जायी प्राणायाम का विशेष प्रकार है. इसके अभ्यास के लिए गले से एक विशेष सिसकारी या खरखराहट की जाती है. इस प्राणायाम का वर्णन कठिन है, पर अभ्यास काफी सरल है.
धर्मेंद्र सिंह
एमए योग मनोविज्ञान
बिहार योग विद्यालय, मुंगेर
सर्वप्रथम ध्यान के किसी भी आसन में आराम से बैठ जाएं. दोनों हाथ घुटनों पर ज्ञान अथवा चीन मुद्रा में अपनी आंखों को सहजता से बंद कर लें. अब अपनी जीभ को मोड़ कर खेचरी मुद्रा लगा लें. गले और सिर को सीधा करें तथा सारे शरीर को शिथिल करें. अब गहरी सांस लें तथा छोड़ें.
अब अपने गले में स्थित कंठद्वार को थोड़ा-सा बंद कर लें. इसके लिए गले को थोड़ा-सा संकुचित करें. ताकि गले से सोते हुए बच्चे के खर्राटे जैसी आवाज निकलने लगे. यदि इसका अभ्यास सही ढंग से किया जाये, तो गले के साथ उदर का भी संकुंचन होगा. यह अपने आप होता है, इसके लिए कोई प्रयास नहीं करना पड़ता.
अभ्यास के दौरान आपकी सांस और प्रश्वास दोनों लंबे, गहरे और नियंत्रित होने चाहिए, गले में सांस द्वारा उत्पन्न ध्वनि पर एकाग्रता रखते हुए यौगिक श्वसन करनी चाहिए. आपके सांस की अवाज अधिक तेज नहीं होनी चाहिए.
यह आवाज केवल अभ्यासी को ही सुनाई पड़नी चाहिए. इस दौरान जब आपकी जिह्वा जो खेचरी मुद्रा में है, थक जाये, तो उसे सीधा कर लें और उज्जायी श्वसन करते रहें. जब जिह्वा को आराम मिल जाये, तब उसे पुन: फिर से मोड़ कर खेसरी मुद्रा लगा लें और सुविधा अनुसार अभ्यास लगातार करते रहें.
अवधि व सीमा : वास्तव में यह अभ्यास अत्यंत आनंददायक है. इसे 10 से 20 मिनट तक किया जा सकता है. आमतौर पर इसका अभ्यास सभी लोग कर सकते है, किंतु जो लोग स्वभाव से बहुत अधिक अंतरमुर्खी होते हैं, उन्हें यह अभ्यास नहीं करना चाहिए. जो हार्ट के रोगी हैं, उन्हें उज्जायी प्राणायाम के साथ किसी भी प्रकार का बंध या कुंभक नहीं करना चाहिए.
न करें ऐसी गलतियां : बहुत से लोग इस प्राणायाम के दौरान चेहरे को विकृत कर लेते हैं. यह अनावश्यक है. पूरी प्रक्रिया के दौरान चेहरे को यथासंभव सहज, शिथिल व शांत रखना चाहिए. आप गले को आवश्यकता से अधिक बिल्कुल संकुचित न करें. संकुचन बहुत ही हल्का होना चाहिए तथा इस सकुंचन को पूरे अभ्यास के क्रम में बनाये रखें.
सजगता : सजगता ध्यान की प्रक्रिया पर निर्भर करती है, पर साधारण सजगता का कुछ अंश गले से निकलनेवाले ध्वनि पर तथा संबंद्ध श्वसन-प्रश्वसन प्रक्रिया पर केंद्रित होनी चाहिए. इस अभ्यास को आप खड़े होकर, बैठ कर या लेट कर भी सकते हैं. जो लोग स्लिप डिस्क या स्पॉन्डिलाइटिस रोग से ग्रसित हों, वे वज्रासन या मकरासन में बैठ कर उज्जायी प्राणायाम का अभ्यास कर सकते हैं. शुरुआत में यह थोड़ा कठिन लगता है, लेकिन बाद में यह सहज लगेगा.
नोट : नये अभ्यासी शुरुआती दौर में कुशल योग प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में अभ्यास करें.
अनिद्रा दूर भगाने में है सहायक
उज्जायी प्राणायाम को मूलत: शांति प्रदान करनेवाले प्राणायाम की श्रेणी में रखा गया है. साथ ही शरीर पर इसका उष्णकारी प्रभाव भी पड़ता है. योगोपचार में इस अभ्यास को नर्वस सिस्टम और मन को शांत करने के लिए उपयोग में माना जाता है. यह अभ्यास आत्मिक स्तर पर बहुत ही गहरा विश्रामदायक प्रभाव छोड़ता है अनिद्रा के रोगी इस अभ्यास से विशेष लाभ प्राप्त कर सकते हैं. इसके अलावे जिस व्यक्ति को हाइ बीपी है, उनको भी विशेष लाभ मिलता है. सोने से पूर्व इसका अभ्यास करना चाहिए.
कुंभक या बंध के बिना उज्जायी का प्रारंभिक अभ्यास हृदय गति को मंद करता है. यह प्राणायाम शरीर की सप्त धातुओं- रक्त, अस्थि, मज्जा, मेद, वीर्य, त्वचा एवं मांस की व्याधियों को दूर करता है. साथ ही शरीर में किसी भी प्रकार की सर्जरी हुई हो या चोट हो उसे ठीक करने में मदद करता है.

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