किसी देश का मानव संसाधन उसके विकास की नींव होता है. ऐसे में भारत के आर्थिक विकास का सपना कैसे साकार होगा, जब इस देश की आधी से अधिक आबादी खून की कमी से जूझ रही हो. फरवरी, 2017 में जारी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ सर्वेक्षण-4 (एनएफएचएस) के अनुसार भारत में करीब 55 फीसदी महिलाएं एनीमिया से प्रभावित हैं, जो विश्व में किसी देश के मुकाबले अत्यधिक दर है. विशेषज्ञों की मानें, तो यह न केवल एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है, बल्कि इससे देश की आर्थिक प्रगति भी व्यापक तौर से प्रभावित होती है, कैसे? इसी परिप्रेक्ष्य में महिला एवं बाल स्वास्थ्य के मुद्दे का व्यापक विश्लेषण करती हमारी आज की कवर स्टोरी.
पिछले करीब 10 वर्षों में आयरन की कमी से होनेवाली रक्तअल्पता, जिसे चिकित्सकीय भाषा में एनीमिया कहते हैं, भारतीयों मे अपंगता या अक्षमता के प्रमुख कारणों में से एक रहा है. इस चौंकानेवाले तथ्य का खुलासा भारत के जाने-माने गैर-सरकारी सर्वेक्षण संगठन इंडिया स्पेंड के ग्लोबल बर्डेन ऑफ डिसीज (GBD)नामक सर्वेक्षण के पिछले दो लगातार रिपोर्ट्स में हुआ है. इस रिपोर्ट्स की मानें, तो भारत वैसे कुछ देशों की टॉप लिस्ट में शामिल है, जहां एनीमिया से प्रभावित महिलाओं और बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा हैं और इसका व्यापक नकारात्मक प्रभाव भारत की उत्पादकता पर पड़ा है.
किसी भी देश के विकास में उसके मानव संसाधन की अहम भूमिका होती है. भारत जैसे विकासशील देशों की बात करें, तो यहां आज भी 50 फीसदी से अधिक काम मैन्युअली यानि पारंपरिक तरीके से ही होता है. ऐसे में भारत को विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा कर पाना कैसे संभव होगा, अगर उसकी आधी से अधिक आबादी गंभीर रूप से खून की कमी से जूझ रही हो.
वर्ष 2005 के जीबीडी सर्वे के अनुसार भारत एनीमिया की समस्या से जूझ रहे देशों की टॉप सूची में शामिल था. वर्ष 2015 में इसमें करीब 23 फीसदी की कमी (10.56 फीसदी) जरूर हुई, पर यह स्थिति संतोषजनक नहीं कही जा सकती. अन्य ब्रिक्स देशों की तुलना में भारत में आज भी रूस से दोगुने और चीन से तिगुने एनीमिया के मरीज हैं. इसके प्रमुख लक्षणों में थकान, कमजोरी, आलस्य, चक्कर आना, त्वचा व आंखों में पीलापन, हृदय की असामान्य धड़कन, सांस लेने में तकलीफ और ध्यान में कमी आदि प्रमुख हैं. ऐसी स्थिति में व्यक्ति अपना सर्वश्रेष्ठ तो क्या औसत निष्पादन भी ढंग नहीं दे पाता है.
उत्पादकता पर पड़ता है नकारात्मक प्रभाव
एनेमिया व्यक्ति की रोग प्रतिरोधी क्षमता को कमजोर कर देता है. इससे उसमें इन्फेक्शन होने या अन्य बीमारियों की चपेट में आने की संभावना भी बढ़ जाती है, जिसका प्रभाव अंतत: उसकी उत्पादकता पर पड़ता है.
एनएफएचएस-4 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 78.9 फीसदी बच्चे, 55 फीसदी महिलाएं और 24 फीसदी पुरुष एनीमिया से प्रभावित हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो आयरन की कमी से होनेवाला एनेमिया व्यक्ति की कार्यक्षमता पर नकारात्मक प्रभाव डालता है, जिस वजह से अपना बेस्ट आउटपुट नहीं दे पाता और अंतत: इससे देश का विकास प्रभावित होता है.
वर्ल्ड बैंक ने वर्ष 2003 में अपनी फूड पॉलिसी रिपोर्ट में इस मुद्दे को रेखांकित करते हुए यह कहा था कि भारत को हर साल 0.9 फीसदी जीडीपी का नुकसान केवल एनीमिया की वजह से उठाना पड़ता है. इस आधार पर देखा जाये, तो वर्ष 2016 में भारत को कुल 1.35 लाख करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा.
आनेवाली पीढ़ी भी होती है प्रभावित
देश के 14 राज्यों में किये गये एनएफएचएस-4 के सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, एक दशक पहले एनीमिया से पीड़ित गर्भवती महिलाओं की संख्या 57 फीसदी थी, जो कि वर्तमान में घट कर 45 फीसदी हो गयी है. निश्चित रूप से यह खुशी की बात है, फिर भी सच्चाई यह है कि अन्य देशों की अपेक्षा और वैश्विक औसत दर की तुलना में यह आंकड़ा अभी भी सबसे ज्यादा है. इसकी गंभीरता का आकलन इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2014 में यह मातृत्व मृत्यु का सबसे बड़ा कारण (तकरीबन 50 फीसदी) रहा और मातृत्व मृत्यु के अन्य 20 फीसदी मामलों में भी अप्रत्यक्ष रूप से इसकी हिस्सेदारी रही. गर्भ के दौरान महिलाओं को होनेवाली खून की कमी के कारण गर्भस्थ शिशु की मौत हो सकती है या फिर अगर वह पैदा हो भी तो उसकी पैदाइश तय समय से पूर्व होती है. ऐसे बच्चों का वजन अकसर सामान्य से कम होता है. साथ ही इनमें कई तरह की शारीरिक और मानसिक समस्याएं विकसित होने ही संभावना भी अधिक होती है. एनीमिया की वजह से बच्चों का संज्ञानात्मक विकास सबसे अधिक प्रभावित होता है. उनकी भाषा क्षमता, पेशीय संचालन क्षमता और शारीरक व मानसिक संयोजन क्षमता कमजोर होती है. बौद्धिक क्षमता में 5 से 10 फीसदी की कमी हो सकती है और डब्ल्यूएचओ की मानें तो इस कमी को भविष्य में आयरन सप्लीमेंट्स देकर भी पूरा नहीं किया जा सकता है.
एनीमिया व्यक्ति की शारीरिक क्षमता के साथ ही बौद्धिक क्षमता को भी गहरे से प्रभावित करता है. इससे व्यक्ति की उत्पादन क्षमता प्रभावित होती है, तो जाहिर-सी बात है इसका सीधा असर देश के विकास पर पड़ेगा. एनीमिया पीड़ित गर्भवती महिलाओं से पैदा होनेवाले बच्चे भी बौद्धिक रूप से कमजोर या मानसिक रूप से विकृत होते हैं. सरकार एनीमिया से निपटने के लिए भले ही लाखों रुपये खर्च कर रही हो या कई योजनाएं चला रही हो, लेकिन उनका लाभ सही लोगों को मिल पा रहा है या नहीं, इस बात पर ध्यान देने की जरूरत की सबसे ज्यादा है.
डॉ आशा सिंह,
रिटायर्ड प्रिंसिपल व इकोनॉमिस्ट, मगध महिला कॉलेज, पटना
महिलाओं में एनीमिया के मुख्यत: दो कारण होते हैं- एक तो पीरियड्स के दौरान अनियमित या ज्यादा ब्लीडिंग और दूसरा सेल्फ केयर को इग्नोर करना. ज्यादातर घरों में महिलाएं ‘कुछ भी’ खाकर अपना पेट भर लेती हैं, जिससे उन्हें पर्याप्त पोषण नहीं मिल पाता. ग्रामीण महिलाएं नंगे पैर खेतों में काम करने या खुले में शौच करने से हुकवॉर्म का शिकार होती हैं, जो शरीर में खून की कमी का एक बड़ा कारक है.
डॉ शशिबाला सिंह,
सीनियर गाइनोकोलॉजिस्ट, रिम्स
भारत में एनीमिया के प्रमुख कारण
गरीबी
कुपोषण
अस्वच्छ पेयजल
साफ-सफाई का अभाव
असंतुलित आहार
शरीर से अधिक खून बह जाना
जागरूकता की कमी
मलेरिया डेंगू चिकनगुनिया वॉर्म इन्फेक्शन
नंगे पांव खेतों में काम करना