Health : बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को न करें नजरअंदाज
डिप्रेशन एक ऐसी गंभीर समस्या है, जिससे बड़े-बुजुर्ग तो क्या बच्चे भी अछूते नहीं हैं. आप अगर चाहते हैं कि आपका बच्चा एक खुशहाल बचपन जिये, तो जरूरी है कि उसके मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहें और अपने बच्चे को तनाव के साये से दूर रखने का हर मुमकिन प्रयास करें...
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Health : यूनिसेफ द्वारा तैयार की गयी एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 15 से 24 वर्ष के बच्चों में हर 7 में से 1 बच्चा डिप्रेशन की गिरफ्त में है, यानी देश के लगभग 14 फीसदी बच्चे मानसिक समस्या का सामना कर रहे हैं. मानसिक परेशानी के हल के लिए मात्र 41 फीसदी भारतीय किशोर और युवा मदद मांगने को लेकर जागरूक हैं, जबकि अन्य देशों में 56 से 95 फीसदी किशोर व युवा मानते हैं कि मन की परेशानियों के लिए मदद की जरूरत होती है. ऐसे में जरूरी है कि अभिभावक बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर अपनी नजर बनाये रखें…
डिप्रेशन के इन संकेतों को न करें अनदेखा
- बच्चे का दो सप्ताह से अधिक समय तक लगातार दुखी या निराश रहना.
- चिड़चिड़ापन या गुस्सा आना.
- लोगों से बात करना बंद कर देना.
- बच्चे को रिजेक्ट होने का डर रहना.
- भूख व नींद कम या ज्यादा आना.
- रोने का मन करना, ध्यान लगाने में दिक्कत होना.
- बच्चे का हर वक्त थका हुआ महसूस करना.
- पेट दर्द या सिरदर्द रहना.
- किसी काम को करने का मन न करना.
- मन में अपराध बोध महसूस होना.
इनमें से एक हो सकता है बच्चे के मानसिक तनाव का कारण
- स्कूल में बुली होना.
- पढ़ाई का अधिक दबाव.
- परिवार में डिप्रेशन की हिस्ट्री.
- नये घर या स्कूल जाने पर अकेलापन महसूस करना.
- अभिभावकों के बीच होनेवाले झगड़े.
- भाई-बहन या दादा-दादी से बिछड़ाव.
- शरीर के अंदर रसायनों का असंतुलन.
- अन्य कई कारण हो सकते हैं.
अभिभावक एवं शिक्षक कर सकते हैं सहयोग
- बच्चे के व्यवहार में किसी भी तरह की असामान्यता दिखने पर अभिभावक उनसे बात करें.
- बच्चे के साथ समय बिताएं और उन्हें अकेलापन न महसूस होने दें.
- बच्चों में मानसिक स्वास्थ्य को लाभ पहुंचाने वाले योग व व्यायाम की आदत विकसित करें.
- यदि बच्चे को पढ़ाई के दबाव से तनाव हो रहा है, तो अभिभावक व टीचर आपस में सामंजस्य स्थापित कर उसका सहयोग करें.
- बच्चों को उनकी उम्र के अनुसार कुछ जिम्मेदारी वाले काम दें, ताकि उनका आत्मविश्वास बढ़े.
- मोबाइल व वीडियो गेम पर अधिक समय बिताने की बजाय बच्चों को किताबें पढ़ने के लिए प्रेरित करें.
- यदि बच्चे में अवसाद की स्थिति गंभीर है, तो काउंसलिंग व थेरेपी की मदद लेने में संकोच न करें.
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