Exclusive: ‘हातिम’ का जब दो साल बाद रिपीट टेलीकास्ट हुआ तब वह दर्शकों में क्रेज बना था- राहिल आजम
बीते दो दशक से छोटे पर्दे पर सक्रिय अभिनेता राहिल आज़म इनदिनों स्टार भारत के शो आशाओं का सवेरा में नज़र आ रहे हैं.उनके इस शो सहित टीवी से जुड़े कई अहम पहलुओं पर उर्मिला कोरी के साथ हुई बातचीत के प्रमुख अंश...
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बीते दो दशक से छोटे पर्दे पर सक्रिय अभिनेता राहिल आज़म इनदिनों स्टार भारत के शो आशाओं का सवेरा में नज़र आ रहे हैं. उनके इस शो सहित टीवी से जुड़े कई अहम पहलुओं पर उर्मिला कोरी के साथ हुई बातचीत के प्रमुख अंश…
आशाओं का सवेरा में आपके लिए क्या अपीलिंग था अपना किरदार या कहानी?
सच कहूं तो मैंने किरदार और कहानी पर इतना गौर किया ही नहीं, मेरे पास अलग वजह इस शो को करने की थी.मैंने स्वस्तिक प्रोडक्शन हाउस के साथ कभी काम नहीं किया था. मुझे स्टार भारत चैनल के साथ काम करना था, क्योंकि मैंने लगभग हर चैनल के साथ काम किया है, सिर्फ इस चैनल के साथ काम नहीं किया था . इन सबके अलावा जो सबसे महत्वपूर्ण था, वो ये कि इस सीरियल की शूटिंग मुंबई में हो रही है. एक सीरियल के शूट के लिए आउटडोर रहने में मैं यकीन नहीं करता हूं क्योंकि मुझे लगता है कि इसमें आपके हीरो-हीरोइन आपकी स्क्रिप्ट होती है.सेट की भव्यता आपकी कहानी में ज्यादा कुछ एड नहीं करता है बशर्ते आपका शो ऐतिहासिक या पौराणिक हो. सोशल ड्रामा शोज के लिए मुंबई के बाहर जाकर शूट करने में मेरा यकीन नहीं है.
क्या इस वजह से आपने अतीत में किसी शो को ना कहा है?
मैंने ऐतिहासिक और पौराणिक शोज को ना कहा है. स्वास्तिक प्रोडक्शन हाउस की बात करुं तो पिछले सात सालों में उनके जितने भी ऐतिहासिक और पौराणिक शो आए हैं, उन्होंने सब मुझे ऑफर किया है, लेकिन उनके ज्यादातर सेट मुंबई के बाहर रहते हैं. इस बार जैसे ही मुझे पता चला कि शूट बॉम्बे में है. मैंने फ़ौरन हां कह दिया.
आप दो दशक से टीवी से जुड़े हैं क्या कभी दोस्ती और पहचान की वजह से शो को हां कहना पड़ जाता है?
वो सिर्फ इस मामले में हुआ है, वरना मैं हमेशा स्क्रिप्ट पहले ही देखता हूं.हां कोई शो पहले से ऑन एयर है, तो यह इस बात पर निर्भर करेगा कि मेरा किरदार कितना रोचक है. इसके अलावा शो के मेकर्स के साथ मेरी पहचान है.अगर मेरा कम्फर्ट लेवल रहता है, तो भी मैं हां कहूंगा, लेकिन जब मैं नया शो लेता हूं शुरूआत से उसके साथ जुड़ा हुआ हूं, तो निश्चिततौर पर मैं किरदार ही देखूंगा. सिर्फ इस सीरियल के साथ मेरी प्राथमिकता थोड़ी बदली, लेकिन जैसे ही मैंने स्क्रिप्ट और स्क्रीनप्ले पढ़ा तो मुझे किरदार दिलचस्प लगने लगा. बहुत सारे शेड्स उस किरदार में थे. काफी हद तक मैं अपने इस किरदार से रिलेट करता हूं
आपकी एक्टिंग का क्या प्रोसेस रहता है, क्या आप वर्कशॉप्स के जरिए किरदार अपने किरदार को समझना पसंद करते हैं?
शूटिंग से पहले वर्कशॉप मुझे पसंद नहीं है. मुझे लगता है कि वे एक एक्टर को मैकेनिकल बना देता है. नेचुरल तभी निकलता है, जिस पल सेट पर एक्शन बोला जाता है. मैं दूसरों की नहीं अपनी बात कर रहा हूं. अगर मुझे शो से जुड़े किसी एक्टर से मिलवाया ना जाए सीधे सेट पर बुला लिया जाए, तो भी एकदम सहज रहूँगा, क्योंकि अपने किरदार को मैं अपने दिमाग से सोचता हूं कि कैसे इस किरदार को निभाना है.जैसे मुझे नरेशन मिलता है, उसी पल से तय हो जाता है कि मैं उस किरदार को किस तरह से निभाऊंगा.
टीवी से आप लंबे समय से जुड़े है, क्या एक बदलाव आप टीवी में चाहते है?
पहले शोज की टेलीकास्ट सोमवार से शुक्रवार होती थी, वो अगर फिर से हो जाए, तो शोज की क्वालिटी बहुत बेहतरीन हो जाएगी. हर डिपार्टमेंट में सबको सोचने का वक़्त मिलेगा, चाहे वो सिनेमाटोग्राफी हो, एडिटिंग हो, परफॉरमेंस हो या फिर राइटिंग. हर चीज में आपको वक़्त मिलता है, तो आप और शिद्दत से कर सकते हो. अभी सोमवार से शनिवार शोज आ रहे है. उसमें बहुत मारा – मारी होती है.जिससे खाने में जैसे एक टेस्ट होता है, वैसा शोज में भी होता है. वो चला गया है.
टीवी में शूटिंग का फॉर्मेट अभी भी डेढ़ दशक पुराना है, उसका कई बार मजाक भी बनाया जाता है लेकिन वो अभी भी बरकरार है. इस पर आपकी क्या सोच है?
शॉट का हुश -हुश एंगल ये टीवी का फॉर्मेट हो गया है.इसको तोड़ने के लिए सभी की आपसी सहमति होनी चाहिए. हम सब मिलकर साथ में करेंगे तो ही यह होगा. दर्शक इस चीज को पिछले पंद्रह साल से देखते आ रहे हैं. यह पंद्रह साल से पहले इतना नहीं हुआ करता था, जितना अब है. आप दर्शक को जो दिखाते है. वही वह देखती है, डर ये है कि बुनियाद, हमलोग जैसे शूटिंग फॉर्मेट लेकर आ गए, तो हमारे दर्शक भाग जाएंगे. ये डर बैठ गया है.मैं बोलता हूं कि दर्शक भागेंगे, लेकिन कब तक उसके बाद तो वापस आएगें ही आएगें .दर्शकों को कंटेंट से मतलब है, ये जो कैमरा से खेला जाता है, इसकी उनको आदत डाली गयी है. हमलोगों ने आदत डाली है, तो हमें ही वो आदत बदलने पड़ेगी. यही सबसे बड़ा फर्क मुझे वेब सीरीज और टीवी शोज में लगता है. आप हमलोग, बुनियाद का सिर्फ लोगो बदलकर कोई ओटीटी का लोगो लगा दो. कोई यकीन ही नहीं करेगा कि वो टीवी शोज थे. सब उन्हें वेब सीरीज ही समझेंगे, क्योंकि उनके परफॉरमेंस एकदम नेचुरल होते थे. बैकग्राउंड म्यूजिक वहीं होती थी, जहां जरूरी होती थी.एडिटिंग भी बहुत स्मूथ होती थी. अक्सर मेकर्स ये भी दलील देते हैं कि उन्होने अलग तरह के कांसेप्ट वाले शोज लाए थे, लेकिन दर्शकों ने नहीं पसंद किया, तो बंद करने पड़े. अरे अलग तब तक बनाओ जब तक आपके दर्शक वापस ना आए, नहीं तो यह बदलाव कभी नहीं आएगा. बस ये चलता चला जाएगा.
आमतौर पर टीवी एक्टर टीवी से ब्रेक लेकर फिल्मों या ओटीटी की और रुख करते हैं, लेकिन आपने हमेशा टीवी को महत्व दिया है?
मैंने शुरूआत से ही टीवी को बहुत सम्मान के नज़र से देखा है.अपने हर किरदार और प्रोजेक्ट को मैंने फिल्म की तरह लिया है. ढाई घंटे की फिल्म में जब तक किरदार जिन्दा है तब तक फिल्म है. यही वजह थी कि जब तक मेरे किरदार का रस शो में रहा, तब तक मैं उससे जुड़ा रहा .इस वजह से मुझे कहीं और जाने की ज़रूरत नहीं पड़ी.एक एक्टर के तौर मैंने हमेशा सही किरदार के लिए इंतजार किया. ओटीटी का फॉर्मेट आज पॉपुलर हुआ है, लेकिन मैं उसे 2005 से फॉलो करता आ रहा हूं,जैसे मैंने हातिम किया. अगर मैं चाहता तो उसी तरह के किरदार करता या फिर मेन लीड. टीवी में ये शब्द बहुत पॉपुलर हैं, लेकिन मैं इसमें विश्वास नहीं करता हूं, क्योंकि मुझे लगता है कि मेन लीड स्क्रिप्ट होती है और कोई मेन लीड नहीं होता है.यही वजह है कि अपने कैरियर में हमेशा मैंने अलग -अलग किरदार ढूंढे. मैंने सीआईडी में नेगेटिव किरदार किया है.मैं पहला इंडियन लीड एक्टर हूं, जिसने फीमेल का किरदार किया है., बाबुल का आँगन छूटे ना एक शो था, जिसमे मैंने तवायफ का किरदार किया था. मैं ओटीटी करना चाहता हूं, लेकिन जब तक कुछ अलग ऑफर नहीं होता है. मैं टीवी में खुश हूं.
हातिम की बात चली है, तो उस दौर के अपने स्टारडम को किस तरह से याद करते हैं?
जब हमने हातिम शुरू किया था, तो किसी ने भी नहीं सोचा था कि वो एक क्लासिक शो बन जाएगा. वैसे हातिम जब पहली बार आया था, तो लोगों का उतना प्यार नहीं मिला, जब दो साल बाद रिपीट हुआ. उसके बाद हातिम का क्रेज शुरू हो गया. अब तक हातिम टीवी पर 25 बार से अधिक रिपीट हो चुका है.उस वक़्त सोशल मीडिया नहीं था, तो लोगों का प्यार मालूम नहीं पड़ता था. मुझे अब ज्यादा मालूम पड़ता है कि उस शो को लेकर लोगों की क्या दीवानगी थी.
इनदिनों पुराने सुपरहिट शोज के रिमेक बनाए जा रहे हैं क्या आप चाहते हैं कि हातिम का रिमेक बने?
मुझे नहीं लगता कि हातिम का रिमेक बन सकता है और मैं फिर से उस किरदार को निभा पाऊंगा. क्लासिक को ना छुआ जाए, उसी में समझदारी है.