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Guru Dutt Birth Anniversary: ‘ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या’ कहकर समाज की वास्तविकता को अपनी कविताओं की मदद से उजागर करने वाले भारतीय सिनेमा के निर्माता, निर्देशक और अभिनेता ‘गुरुदत्त’, फिल्म इंडस्ट्री का एक जाना-माना चेहरा रहे हैं. न केवल उनकी फिल्में बल्कि एक्टिंग ने भी दर्शकों का खुद दिल जीता है. वह ऐसे अभिनेता थे जो फिल्मों में एक्टिंग करने से लेकर फिल्म से जुड़ी सभी गतिविधियों पर बहुत बारीकी से काम करते थे. उन्होंने अपने करियर के दौरान प्यासा, कागज का फूल, चौदहवीं का चांद और साहब बीवी और गुलाम जैसी कई बेहतरीन फिल्में दी. आज 9 जुलाई 2024 को उनकी 99वीं जन्मतिथि है. ऐसे में आज हम उनसे जुड़ी अनसुनी बातें जानेंगे जो उन्हें औरों से काफी अलग बनाती है.
कैसी हुई गीता दत्त से मुलाकात?
भारतीय फिल्म निर्माता, निर्देशक और अभिनेता गुरुदत्त का असली नाम वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण था. 9 जुलाई 1925 को कर्नाटक में जन्में गुरु दत्त ने 39 की काफी कम उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया था. गुरु दत्त के करियर का शुरुआती जीवन काफी संघर्षमय रहा था, लेकिन कभी हार न मानने के उनके इस जज्बे की वजह से वह मायूस नही होते थे और दुगनी मेहनत करते थे. अपने करियर के शुरुआती दिनों में उन्होंने बहुत से फिल्म मेकर्स को एसिस्ट किया था. उसके बाद फिल्म बाजी से उन्होंने बतौर निर्देशक इंडस्ट्री में डेब्यू किया. इसी फिल्म के गाना ‘तदबीर से बिगड़ी हुई तकदीर बना ले’ की रिकॉर्डिंग के दौरान गुरु दत्त की मुलाकात गायिका गीता राय से हुई थी. पहली मुलाकात में गीता गुरुदत्त को दिल दे बैठी थीं. दोनों ने एक दुसरे को 3 साल डेट करने के बाद साल 1953 में शादी के बंधन में बंध गए थे. बाजी के सेट पर ही गुरु दत्त की मुलाकात जॉनी वॉकर से भी हुई थी, जो गुरुदत्त की कई फिल्मों का हिस्सा रहे.
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फिल्मों में गानों का फिल्मांकन बड़े ही बेहतरीन तरीके से करते थे
फिल्म निर्माता गुरुदत्त की सबसे अच्छी बात यह थी कि वह अपनी फिल्मों में गानों का फिल्मांकन कुछ इस प्रकार करते थे मानों कि केवल गाने के बोल में शब्दों का नहीं भावनाओं का आदान प्रदान हो रहा हो. गुरु दत्त की बाजी का बॉक्स ऑफिस पर बहुत अच्छा प्रदर्शन रहा था. इस फिल्म के बाद उन्होंने देव आनंद के साथ फिल्म ‘जाल’ बनाई थी. इसकी कहानी एक छोटे से गांव के मछुआरों के जीवन में संघर्ष पर आधारित है. एक बार फिर उन्होंने फिल्म के गानों को बड़े ही खूबसूरती से सबके सामने पेश किया था. दरअसल, इस फिल्म का गाना ‘ये रात ये चांदनी फिर कहां’ में उन्होंने नायिका की स्तिथि को खूबसूरती से प्रस्तुत किया था.
अपने काम से संतुष्ट नहीं होते थे गुरुदत्त
गुरुदत्त की एक आदत उन्हें औरों से काफी अलग बनाती थी. इंडस्ट्री के सबसे नामी निर्देशक और अभिनेता होने के बावजूद वह अपने काम से कभी संतुष्ट नहीं वह अपनी एक फिल्म में कई रीटेक लेते थे. सेट पे मौजूद हर एक शक्श उनके अभिनय पर जब तक संतोष नहीं जताता तब तक वह आगे नहीं बढ़ते थे. गुरु दत्त ने साल 1955 में अपनी प्रोडक्शन कंपनी गुरुदत्त फिल्म्स प्राइवेट लिमिटेड की शुरुआत की थी. जिसके तहत उन्होंने अपनी पहली फिल्म ‘आर-पार’ का निर्देशन किया. इस फिल्म की कहानी मुंबई के एक टैक्सी ड्राइवर कालू बिरजू (गुरुदत्त) की है. इस फिल्म के लिए उन्होंने दो रील बनाकर फिल्म वितरकों को दिखाईं थी. जिनमें से कुछ वितरकों को कालू के किरदार में गुरु दत्त कुछ खास नहीं भाए. जिसके बाद गुरु दत्त ने इस किरदार को निभाने के लिए शम्मी कपूर से आग्रह किया, जिसे उन्होंने इंकार कर दिया क्योंकि शम्मी कपूर का मानना था की बिरजू के किरदार को गुरु दत्त से बेहतर और कोई नही निभा सकता और उनका यह मानना सटीक भी था. इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था. ऐसे ही कई बदलवा उन्होंने अपनी कई फिल्मों में किया जैसे प्यासा, कागज का फूल.
शराब और आधे पढ़े उपन्यास के साथ मृत पाए गए
गुरु दत्त 9 अक्टूबर 1964 की शाम अपने दोस्त अबरार के साथ बातचीत करते हुए बिताया था. दोनों ने अपनी अगली फिल्म को लेकर बहुत देर तक चर्चाएं की थीं. चर्चा खत्म होने के बाद अबरार अपने घर लौट गए थे और अगले दिन 10 अक्टूबर 1964 को खबर आई की गुरु दत्त ने आत्महत्या कर ली है. उनकी लाश को निकलने के लिए जब दरवाजा तोड़ा गया तब वह वह शराब और आधे पढ़े उपन्यास के साथ मृत पाए गए थे. एक्टर की आखरी फिल्म ‘बहारे फिर भी आएंगी’ थी, जिसे एक्टर धर्मेंद्र ने पूरा किया था.