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रियल लाइफ में मां नहीं बनना चाहती : नारायणी शास्त्री

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नारायणी शास्त्री एक बार फिर छोटे परदे पर सीरियल ‘रिश्तों का चक्रव्यूह’ में नकारात्मक किरदार में दिखेंगी. वह खुद को लकी मानती हैं कि वह एक दशक से ज्यादा समय तक टेलिविजन में काम करने के बावजूद उन्हें लगातार सशक्त किरदार मिल रहे हैं. इस किरदार और उनकी शादी पर हुई उर्मिला कोरी की बातचीत […]

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नारायणी शास्त्री एक बार फिर छोटे परदे पर सीरियल ‘रिश्तों का चक्रव्यूह’ में नकारात्मक किरदार में दिखेंगी. वह खुद को लकी मानती हैं कि वह एक दशक से ज्यादा समय तक टेलिविजन में काम करने के बावजूद उन्हें लगातार सशक्त किरदार मिल रहे हैं. इस किरदार और उनकी शादी पर हुई उर्मिला कोरी की बातचीत :

सतरुपा के किरदार को शब्दों में परिभाषित करना हो तो कैसे करेंगी और आपका यह किरदार क्या निजी जिंदगी से मेल खाता है?
सतरुपा बिजनेस वूमन है. बहुत पैसा और पावर है. अपने काम को लेकर बहुत फोकस्ड है. पावर को छोड़ना नहीं चाहती है. फिर सतरुपा के सामने कोई भी आ जाये. वह जो चाहती है, वही करती है. इसके लिए वह किसी की जान लेने से भी पीछे नहीं रहती है. मैं सतरुपा की तरह मैं एक प्रतिशत भी नहीं हूं. मैं बिल्कुल भी महत्वाकांक्षी नहीं हूं. मैनिप्युलेटेड नहीं हूं. सतरुपा गेम प्लेयर है, पॉवर प्लेयर और वह रॉयल फैमिली से आती है. जो मैं नहीं हूं. कहीं से भी हमारा मेल नहीं है.

रियल लाइफ में फिर नारायणी कैसी हैं?
रियल लाइफ में मैं बेटी बहुत ही अच्छी हूं. वो टीवी में जिस तरह की बेटियां दिखायी जाती हैं, मैं वैसे ही हूं. एकदम आज्ञाकारी, परिवार का ख्याल रखने वाली. उनको बहुत चाहने वाली. हां घर से बाहर अलग हूं, तुनकमिजाज हूं, बहुत जल्दी गुस्सा आता है. घर में गाय हूं और बाहर तो मुझे हर दूसरी बात पर गुस्सा आ जाता है.

क्या चीजें हैं जो आपको गुस्सा दिलाती हैं?
(सेट पर मौजूद कुर्सियों की ओर इशारा करते हुए) कुर्सी की आवाज से भी मुझे गुस्सा आ सकता है. वैसे अब मुझमें बदलाव आया है. वरना अब तक तो मैं चिल्ला-विल्ला के बहुत कुछ कर गयी होती थी. लेकिन अब मैंने अपने गुस्से को कंट्रोल करना सीख लिया है क्योंकि हर छोटी-छोटी बात पर गुस्सा दिखाना मूर्खता की निशानी है और मैं किसी दूसरे के सामने मूर्ख क्यों बनती रहूं? अपने गुस्से पर सेल्फ वर्क करती आयी हूं. जिसका नतीजा ये है कि मुझे अब गुस्सा कम आता है.

इससे पहले ‘पिया रंगरेज’ में भी आपकी नकारात्मक भूमिका थी. क्या नकारात्मक भूमिकाएं निजी तौर पर आपके व्यक्तित्व को भी प्रभावित करती हैं?
‘पिया रंगरेज’ की भंवरी देवी की तरह यह भी नकारात्मक जरूर है. सतरुपा भी किसी की जान लेने से पहले सोचती नहीं है लेकिन भंवरी का किरदार काफी लाउड था. वहीं सतरुपा काफी सॉफिस्टिकेटेड महिला हैं. जहां तक निजी जिंदगी को प्रभावित करने की बात है, तो मुझे निगेटिव किरदार करने में बहुत मजा आता है. निगेटिव रोल की सबसे अच्छी बात यह है कि आपको अच्छे बने रहने का नाटक नहीं करना पड़ता है. निजी जिंदगी का सारा गुस्सा भी उस किरदार के साथ निकल जाता है. घर आप बहुत खाली होकर जाते हैं. टीवी के पॉजिटिव किरदार तो हद दर्जे के नकली होते हैं. ऐसा पॉजिटिव किरदार निभाकर आदमी फ्रस्ट्रेट हो जाये.

आप इन दिनों ज्यादातर मां के किरदार में हैं?
मैंने सबसे पहले मां का किरदार 23 साल की उम्र में सीरियल ‘कुसुम’ में निभाया था. मेरे किरदार का मेरी निजी जिंदगी से कोई लेना देना नहीं है. मुझे फिर चाहे पचास साल का बना दो या सत्तर साल का. एक एक्ट्रेस के तौर पर उस उम्र और किरदार को जीना मेरी जिम्मेदारी है. मैं बस अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाना चाहती हूं.

छोटे परदे पर अपनी जर्नी को किस तरह से देखती आयी हैं?
मैं बहुत ज्यादा नहीं सोचती हूं. मैं एक समय पर एक काम लेना पसंद करती हूं. मैं खुद को बहुत लकी मानती हूं कि मुझे आज भी अच्छा काम लगातार मिल रहा है. जर्नी कभी दिमाग में आयी ही नहीं. हां अच्छा काम करना है, ये जेहन में रहता है. अच्छा काम नहीं मिलेगा, तो क्या मतलब है काम करने का? मैं अपने घर से बाहर निकलूं, खुद को भी टेंशन दूं और दूसरों को भी! सच्चाई बताऊं तो जब मैंने शुरुआत में काम किया था, तभी मैंने खुद के लिए जो सिक्योरिटी करनी थी, कर ली. अब मुझे पैसों के लिए काम करने की जरूरत नहीं है. अब मैं घर से बाहर निकलती हूं तो अच्छा काम करने के लिए. कोई बोरिंग काम करूंगी तो सेट पर सबका जीना हराम कर दूंगी.

‘क्योंकि सास बहू थी’ से अब तक एक एक्टर के तौर पर आप में क्या बदलाव आया है?
बहुत बदलाव आया है. बहुत शांत हो गयी हूं. जिंदगी में ठहराव आ गया है. पहले मैं सिर्फ मजे के लिए काम करती थी. रात-दिन काम करेंगे तो कितना मजा आयेगा, यह सोच मुझे बहुत खुशी देती थी. अपने करियर के शुरुआती दौर में मैं तीन महीने तक ठीक से सोयी नहीं थी. कभी दो घंटे की नींद, तो कभी तीन घंटे की. चार सीरियल साथ में किया था ‘कुसुम’, ‘पिया का घर’, ‘क्या हादसा क्या हकीकत’ और एक शो था जिसका नाम मुझे अभी याद नहीं आ रहा है. ‘क्या हादसा क्या हकीकत’ की शूटिंग पूरी रात करती थी. दिन में ‘कुसुम’ और ‘पिया का घर’ की शूटिंग करती थी. मुझे इतना काम करने से किक मिलता था. अभी मुझे बोलो तो मैं आपको सेट पर रात के आठ बजे के बाद दिखूंगी नहीं.

हाल ही में आपकी शादी की बात सामने आयी. शादी ने कितना आपको बदला?
कुछ भी नहीं. मैंने इसीलिए ऐसे शख्स से शादी की जो मेरी जिंदगी में कुछ भी बदले नहीं. जो भी है जैसा भी है, उसे उसी तरह से अपनाये. मैं काफी लंबे समय तक शादी नहीं करना चाहती थी क्योंकि मेरी सोच शादी को लेकर ऐसी थी. मुझे ऐसा आदमी चाहिए था, जिसकी सोच मुझ जैसी हो. अच्छी बात यह है कि मैंने जिनसे शादी की, वह मेरी तरह ही है. उन्हें भी पहले शादी नहीं करनी थी. शादी के बारे में हमारी सोच एक जैसी ही थी, इसलिए हमें लगा कि क्यों न हम-दोनों एक दूसरे से ही शादी कर लें. टोनी एक एेड एजेंसी में क्रिएटिव डायरेक्टर हैं. वह पेंटर भी हैं. वह पिछले नौ-दस सालों से भारत में ही रहे हैं. उन्हें लंदन से ज्यादा भारत पसंद है.

शादी को लेकर आपकी क्या सोच है?
मेरा मानना है कि मैं फलां इंसान के साथ रहना चाहती हूूं और समाज मुझे इसकी इजाजत दे, इसके लिए मैं शादी कर लूं. यह मुझे पसंद नहीं है. वाकई क्या आज किसी को जरूरत है इसकी? शादी से पहले लोगों में संबंध बन जाते हैं. जो करना होता है, वह कर लेते हैं. शादी के लिए सबसे जरूरी है कि वह ईमानदार हो. आपको प्यार करे. आपका ख्याल रखे. पैसे या सुरक्षित भविष्य या फिर बच्चों के लिए शादियां करना मुझे पसंद नहीं है. आधे से अधिक लोगों की शादियों की वजह यही होती है, इसलिए आजकल शादियां चलती नहीं हैं.

क्या आप मां नहीं बनना चाहतीं?
फिलहाल तो मैंने यही सोचा है, लेकिन ऐसा ही होगा. यह हम नहीं कह सकते हैं क्योंकि अब तक मैं शादी भी नहीं करना चाहती थी लेकिन देखिए दो साल होने को हैं. मैं बहुत ही खुशनुमा शादीशुदा जिंदगी जी रही हूं. टोनी जैसा ईमानदार इंसान मैंने आज तक नहीं देखा है. वह मुझसे कहते हैं कि सारी परेशानियों की जड़ झूठ है. झूठ मत बोलो. मैंयही कोशिश कर रही हूं.

एक्टिंग नहीं करती हैं तो क्या करना पसंद है?
मुझे घर पर टाइमपास करना पसंद है. मुझे हॉरर शो और फिल्में देखना बहुत पसंद है. हिंदी में तो हॉरर शो कम कॉमेडी शो ज्यादा लगते हैं, इसलिए मैं अंग्रेजी शोज देखती हूं. हॉरर के अलावा एक्शन, साइंस फिक्शन जैसे जॉनर भी मुझे पसंद हैं.

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